दादी भूरी जी यज्ञ की आदि-रत्न थी। आबू में, बाबा ने उनको पार्टियों को रिसीव करने तथा यज्ञ की सभी प्रकार की खरीदारी करने की सेवा सौंपी। दादी ने एकनामी, इकॉनामी का अवतार बन अथक होकर सब सेवायें कर सबके दिल में जगह बनाई। अंत तक बाबा के भंडारे की सेवा भी बहुत प्यार से की। आपने 2 जुलाई, 2010 को अपना पुराना शरीर छोड़ बापदादा की गोद ली।
ब्र.कु.ओमप्रकाश भाई (मधुबन), भूरी दादी के साथ का अनुभव इस प्रकार सुनाते हैं –
भूरी दादी शुरू से यज्ञ में आई। आबू आने के बाद दादी की आलराउण्ड सेवा रही। उन दिनों यज्ञ में कोई यातायात साधन नहीं था। बाबा के बच्चे, चाहे कोई रात की गाड़ी से आता था या दिन की गाड़ी से, सबको आबू रोड में रिसीव करके ऊपर पांडव भवन में बाबा तक पहुँचाने की सेवा अथक रूप से भूरी दादी ने की। यूँ तो हम भी अपनी-अपनी रीति से सभी अथक सेवाधारी हैं पर भूरी दादी खास अथक सेवाधारी इसलिए थी कि बाबा दिन में कभी भी उन्हें कहते थे, बच्ची, अभी आबू रोड जाना है तो हमने देखा, दिन में चार या पाँच बार जाकर वापस भी आ जाती थी। नीचे-ऊपर आने-जाने के लिए उस समय बस के अलावा और कोई साधन नहीं था। पहाड़ी रास्ते में, बस में बार-बार आना-जाना आप समझ सकते हैं, कितना मुश्किल होता है, पर दादी ने यह सेवा दिल से की। ऐसी सेवा तभी हो सकती है जब सदा यह याद रहे कि यह जो मैं सेवा कर रही हूँ, स्वयं भाग्यविधाता भगवान द्वारा दी गई है, हम निमित्त मात्र हैं। करन-करावनहार शिवबाबा है।
दादी का बाबा पर संपूर्ण निश्चय रहा। ज्ञानी जीवन का आधार ही निश्चय है। इसमें भी स्वयं पर निश्चय, परिवार पर निश्चय, ड्रामा पर निश्चय तथा प्यारे बाबा पर निश्चय-इन चारों में भूरी दादी सदा पास रही। कभी मैंने भूरी दादी को एक मिनट भी खाली बैठे नहीं देखा। निर्माणचित्त बहुत थी। कोई ने कुछ कहा तो भी उनके मुख से कभी गुस्से का या ऐसा शब्द नहीं निकला। यज्ञ की सारी खरीदारी, उन दिनों में, आबू रोड से ही होती थी और भूरी दादी ही इसके निमित्त थी। सब्जी आदि सब भूरी दादी ही लेकर आती थी। वे इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी, इतना हिसाब भी नहीं जानती थी, फिर भी एक्यूरेट हिसाब रखती थी। यह उनकी बहुत बड़ी विशेषता थी। भूरी दादी लास्ट के दिनों में शरीर से थोड़ी ढीली हुई पर लास्ट तक भोजन ठीक-ठाक करती रही। अंत के कुछ समय तक उनको कम दिखाई पड़ने लगा था फिर भी हरेक को पहचानती और बात भी करती थी। लास्ट के दिनों में सेवा करते-करते हाथ भी थोड़े हिलने लगे थे फिर भी सेवा में अथक रही। सभी त्यौहारों पर दादी को खर्ची भी अवश्य देती थी। ऐसी यज्ञ स्नेही, दधीचि सम हड्डियाँ सेवा में लगाने वाली दादी भूरी को श्रद्धासुमन समर्पित हैं।
भूरी दादी निमित्त भोग तथा वतन का सन्देश शशी बहन जी द्वारा
आज सर्व भाई- बहनों की यादप्यार लेकर जब मैं वतन में पहुंची, तो वतन का नज़ारा बहुत सुन्दर था। चारों ही तरफ बहुत सुन्दर सजावट थी। सजावट के बीच में एक ऐसा स्थान बना हुआ था जहाँ पर भूरी दादी का बहुत सुन्दर फरिश्ते जैसा श्रृंगार किया हुआ था, उसके ऊपर गोल्डन रिफ्लेक्शन पड़ रहा था। जैसे ही में नजदीक पहुंची तो भूरी दादी का साक्षात देवी और फरिश्ते का रूप दिखाई दे रहा था। थोड़े समय के बाद बाबा आये, बाबा भी भूरी दादी को देख मुस्करा रहे थे। बाबा ने कहा, बच्ची, क्या सोच रही हो? मैंने कहा, यह भूरी दादी है? बाबा ने कहा, ध्यान से देखो। भूरी दादी के स्वरूप में शक्ति और स्नेह का रूप दिखाई दे रहा था। स्नेहरूप ज्यादा था और शक्ति का रिफ्लेक्शन पड़ रहा था। मैंने कहा, आज तो आप बहुत सुन्दर लग रही हो। तो कहा, क्यों नहीं लगूँ, बाबा ने आज मेरा प्यार से श्रृंगार किया है। मैं तो बाबा की गोदी में, स्नेह में झूल रही हूँ। बाबा ने कहा, बच्ची का आज बाबा क्यों श्रृंगार कर रहे हैं, क्योंकि इस बच्ची ने शुरू से ही एक तो अथक सेवा द्वारा अनेक आत्माओं को सुख दिया है। दूसरा, जब से बाबा की बनी है इसका बाबा से, दैवी परिवार से और खास करके दादियों से बहुत प्यार था। उस प्यार में जैसे खो जाती थी। जब बाबा ने यह कहा तो उसकी आंखों में स्नेह के मोती दिखाई देने लगे।
फिर मैंने कहा, दादी आप तो बाबा के पास पहुँच गयी। तो कहती है, मैं तो बाबा के पास ही थी। बाबा रोज़ मेरे को सूक्ष्मवतन में बुलाके ऐसे अनुभव कराता, कभी झूले में झुलाता, कभी अन्य स्थान पर ले जाता था। मैं तो बहुत खुशी का अनुभव कर रही हूँ। बाबा ने कहा, मैं इसे कहाँ ले जाता था, बताऊं? तो इतने में एक पुष्पक विमान आया। बाबा ने कहा, चलो बच्ची, इसमें बैठो। तो कहा, मैं नहीं बैठूंगी, मैं तो बाबा के साथ ही रहूंगी। उस पुष्पक विमान में चारों तरफ बहुत से फरिश्ते दिखाई दे रहे थे जो उसको बुला रहे थे। बाबा ने कहा देखो तुम्हें कौन बुला रहा है! फिर बाबा उसे लेकर उसमें चले। जैसे ही वो उसमें बैठने लगी, सभी फरिश्ते माला लेकर उसका स्वागत कर रहे थे। बाबा ने कहा, शुरू से लेकर तुम अनेक महारथियों को, ब्राह्मण परिवार की अनेक आत्माओं को रिसीव करती थी, गाड़ियों में बिठाकर उन्हें प्यार से भेजने की व्यवस्था करती थी, तो आज सभी भाई-बहनें उस स्नेह का रिटर्न दे रहे हैं। उस रिटर्न में सभी इतनी माला लेकर खड़े हैं। फिर जैसे ही पुष्पक विमान में चढ़ी तो उस विमान में एक तरफ बाबा, एक तरफ एडवान्स पार्टी के महारथी थे, बीच में भूरी दादी थी। विमान ऊपर उड़ते हुए, ऐसे दृश्य दिखाता है जैसे सतयुगी दुनिया के नज़ारे सामने आते जाते हैं। बाबा ने कहा, देखो तुमने सबको सुख दिया है। ये जो नज़ारे देख रही हो, ये सतयुगी दुनिया के नज़ारे नहीं हैं, ये वो सुख के नज़ारे हैं जिस सुख का तुमने अनुभव कराया है, जिनको अनुभूति हुई है वो अनुभूति स्नेह के रूप में, दुआओं के रूप में आज सब परिवार वाले तुम्हारे प्रति प्रकट कर रहे हैं। सुनते हुए डिटैच हो गई, कहती है, बाबा यह सब आपने किया। फिर यह दृश्य पूरा हुआ।
फिर बाबा, बड़ी दादी और सब दादियां तथा और भी कई भाई-बहनें थे। बीच में भूरी दादी थी जो उन सबको देख भी रही थी। बाबा ने कहा, बच्ची, तुम इनकी विशेषता को जानती हो? मैंने कहा, भूरी दादी की तो बहुत-सी विशेषतायें हैं, हरेक ने इनसे बहुत कुछ सीखा है। बाबा ने कहा, एक तो निश्चयबुद्धि, दूसरा, बाबा के स्नेह में सदा लवलीन रहती थी, तीसरा, सबको सुख देने का पुरुषार्थ करती थी। चौथा, बच्ची सदा एकनामी और इकॉनामी से चलते अपने चेहरे से बाबा का साक्षात्कार कराती थी। जहाँ भी यह जाती थी, चाहे ब्राह्मण परिवार, चाहे लौकिक में तो इसके चेहरे से उनको लगता था कि यह कोई फरिश्ता आया है। अपने अन्दर की खुशी, दातापन के संस्कार के द्वारा बहुतों को अनुभव कराती थी। तो वो बहुत मुस्करा रही थी, कुछ बोलती नहीं थी। मैंने कहा, सब मधुबन वाले आपको याद कर रहे हैं। तो कहती है, मधुबन निवासियों को तो मैं कभी भूल नही सकती। सब मधुबन वालों ने मुझे बहुत स्नेह दिया है, ये बाबा के रत्न हैं, बाबा के बच्चे हैं। बहुत खुशी में उसकी आंखों में स्नेह का रूप दिखाई दे रहा था। फिर मैंने कहा, आपके सेवा साथी, तो कहती है, हाँ, सब दादियाँ मेरे सेवा साथी हैं, सब दादियों ने मेरी पालना की है। फिर मैंने कहा, दूसरे सेवा साथी भी तो हैं! मधुबन वाले, संगम भवन वाले, हॉस्पिटल वाले, दिव्या भाई, प्रीति बहन सभी प्यार से सेवा करते थे। तो जैसे ही मैंने कहा, उसी समय एक तख्त पर लोटस फ्लावर बना हुआ था, उसके बीच में भूरी दादी और लोटस फ्लावर की पंखुड़ियों पर सभी दादियाँ दिखाई दी। पीछे एक सर्किल था जिसमें सब मधुबन वाले खड़े थे। सामने उनके सभी सेवाधारी खड़े थे। लोटस फ्लावर की एक-एक पंखुड़ी उठती गई तो उस पर लाइट पड़ती गई, लाइट पड़ने से उनके गुणों का सर्किल बन गया। माला नहीं गहनों का रूप था। एक गहना, दूसरा और तीसरा। तीन प्रकार के गहने थे। मैंने कहा हमेशा तो माला होती है, आज गहने दिखाई दे रहे हैं। तो बहुत हंसती है। बाबा ने कहा, यह बच्ची सदा अपने को श्रृंगार करके, बहुत साफ- स्वच्छ रहती थी। तो आज बाबा और दैवी परिवार के भाई-बहनें इनका दैवी गुणों से श्रृंगार कर रहे हैं। तो बाबा ने कहा, बाबा भी सदा तुमको श्रृंगार करके सभी के सामने एक दर्शनीयमूर्त रखना चाहता है। जैसे दूसरों को बाबा का अनुभव कराती रही हो, ऐसे ही बाबा आगे भी आपसे सेवा कराते रहेंगे।
फिर मैंने कहा, किसी को याद देना है? तो कहती है, सबको बहुत याद देना, ओमप्रकाश भाई को याद किया। कहा, यह भी बहुत प्यार से सेवा करता है। फिर बाबा ने कहा, देखो, संगम भवन के आसपास के स्थानों पर इस बच्ची ने रहकर, सभी जगह पर बाबा के प्यार के बीज बोये हैं। उस प्यार की रिजल्ट यह संगम भवन है। संगम भवन के सब भाई-बहनों को याद दिया। दिव्या (दादी का सेवाधारी) को खास याद दिया। बाबा ने कहा, इस बच्चे ने भी बहुत प्यार से सेवा की है। तो दादी देखकर मुस्कराती थी, कहती है इसको जब भी कुछ कहो तो हंसते-हंसते सेवा करता था और मुझे भी हंसाता था। फिर मैंने कहा, दादी, आपके लिए भोग लाये हैं। बाबा ने खोला और कहा, देखो तुम्हारे लिए मधुबन से भोग आया है। तो स्नेह में खो गई और कहा, बाबा, यह तो आपको खाना है। फिर बाबा ने उसको अपने हाथ से खिलाया। भोग खाते-खाते कुछ सेकण्ड के लिए बाबा की तरफ देखने लगी। देखते हुए कहती है, बाबा मेरे को लास्ट तक भी ऐसे अनुभव हो रहा था कि जैसे मैं आपकी गोदी में बैठी हूँ, बाबा, आप तो मेरा हाथ पकड़कर चलाते रहे हैं, आगे बढ़ाते रहे हैं। ऐसे कहते, बाबा को कहती है, जिन्होंने सेवा की है उन्हों का कितना बड़ा पुण्य का खाता जमा हुआ है। बाबा ने कहा, तुम्हारे स्नेह और बाबा के प्यार के कारण सबने प्यार से सेवा की है। उससे पुण्य का खाता तो क्या, अनेक वरदानों को प्राप्त किया है। फिर बाबा ने सबको याद दी। दादी भी सबको याद दे रही थी, बाबा को देख रही थी, बहुत खुश हो रही थी। फिर तो मैं वापस आ गई।
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