Bk laxman bhai anubhavgatha

बी के लक्ष्मण भाई – अनुभवगाथा

दिल्ली, मालवीय नगर से भ्राता ब्रह्माकुमार लक्ष्मण जी कहते हैं कि मेरा जन्म सन् 1933 में करांची (सिन्ध) में हुआ। मेरी 9 वर्ष की आयु में ही लौकिक पिता ने शरीर छोड़ दिया था। मेरी तीन बहनें हैं। एक मेरे से बड़ी, दो छोटी। हमें जीवन में काफी मानसिक तथा आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा। हमारा परिवार भारत का विभाजन होने के पश्चात्, नवम्बर 1947 में दिल्ली में आ गया। फिर भी भाग्य अनुसार हम सभी भाई-बहनें अच्छी पढ़ाई कर पाये। मैंने बचपन से ही जीवन में निराशा, दुःख तथा वैराग्य का अनुभव किया। परन्तु माता-पिता द्वारा प्राप्त भक्ति के प्रबल संस्कार, व्रत, गीता के अध्ययन और कॉलेज में स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी तथा महात्मा गाँधी जी की जीवन कहानियों को पढ़ने का मेरे जीवन पर पूरा प्रभाव रहा जिससे जीवन में सहनशक्ति, धैर्य, प्रभु-प्रेम, आध्यात्मिकता तथा पवित्रता की तरफ़ झुकाव हो गया। मेरे अन्दर भगवान को पिता के रूप में मिलने की तीव्र इच्छा बढ़ती ही गयी।

परमात्मा बाप ने अपनी बाहों में मुझे समा लिया

उस समय जीवन में निराशा ज़्यादा, आशा कम थी। सन् 1958 में, 25 वर्ष की आयु में परमात्मा का ज्ञान प्राप्त हुआ जिससे मुझ आत्मा का टिमटिमाता हुआ दीपक, परमात्मा के प्यार तथा ज्ञान की रोशनी से जग गया। ज्ञान और राजयोग के अभ्यास से मुझे ज़बरदस्त सहारा मिला। कुछ ही समय के बाद आबू आने का अवसर प्राप्त हुआ। जब साकार में शिव बाबा से ब्रह्मा बाबा के तन में मिला तो सचमुच उनका बन गया। वो मिलना ऐसे था जैसे बच्चे और बाप का। परमात्मा बाप ने अपनी बाँहों में मुझे समा लिया। प्यार व ख़ुशी का ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था और बाप से फिर-फिर मिलने का आकर्षण बढ़ता ही गया। जैसे एक बच्चा अपने बाप से एक ही बार मिलकर तृप्त नहीं होता है वैसे ही मेरे साथ हुआ। बाप से अनेक बार मिलन मनाते उसका सुख लेता रहा। ऐसा अनुभव हुआ कि मुझे स्वयं परमात्मा आकर मिले हैं।

बाबा ने मुझे पवित्र गृहस्थाश्रमी बनाया

आदि से लेकर मुझे भगवान ने दिव्य दृष्टि का वरदान भी दिया। जब भी प्रभु-स्मृति में बैठता था तो सूक्ष्म शरीर द्वारा ब्रह्माण्ड की सैर करने के साथ-साथ स्वर्ग के अनेक अद्भुत और सुन्दर दृश्य भी देखता था। ऐसे अनुभव होते थे कि मैं भगवान के साथ एक रथ वा उड़न खटोले में बैठकर सैर कर रहा हूँ। दिन-प्रतिदिन बाप की ओर आकर्षण तथा उनके प्रति प्रेम बढ़ता ही गया और ज्ञान पर भी पूरा निश्चय हो गया। मेरे परिवार के सभी सदस्य इस ज्ञान-योग के मार्ग पर साथ-साथ चल पड़े जिससे मुझे इस आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में बहुत सहयोग मिला। 

सन् 1962 में 29 वर्ष की आयु में मेरा दिव्य (गंधर्व) विवाह ब्रह्मा बाबा ने करवाया, जिसका लक्ष्य पवित्र और योगी जीवन में रहकर परमात्मा के कार्य में सहयोगी बनना था। ऐसे जीवन में रहते हुए पवित्रता की शक्ति तथा प्रभु की विशेष पालना का अनुभव किया। हम जो भी शुभ संकल्प रखते थे उन्हें बाबा अवश्य ही पूरा करते थे। साकार बाबा ने हमें महावीर तथा महावीरनी कहकर इस मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहित किया और परमपिता परमात्मा शिव बाबा ने रूहानी शक्ति देकर सफलता दी। परमात्मा अपने बच्चों को ड्रामा में विशेष पार्ट देकर सारे विश्व तथा ईश्वरीय परिवार में महिमा योग्य बनाना चाहते थे और यह साबित करना चाहते थे कि प्रवृत्ति में रहते हुए मन एवं तन से सम्पूर्ण पावन रहना इस संगमयुग पर अति सहज सम्भव है। क्योंकि परमात्मा स्वयं गाइड बनते हैं तथा आने वाली सतयुगी सृष्टि को पवित्र और सतोप्रधान बनाकर श्री लक्ष्मी, श्री नारायण का राज्य स्थापन करते हैं। इस सफलता का पूर्ण श्रेय बापदादा को है। बापदादा ने ही हमें पवित्रता और सत्यता की राह पर चलाकर स्वर्ग का ऊँच मालिक बनने की मंज़िल स्पष्ट दिखायी है।

साकार बाबा के साथ जो घड़ियाँ बितायी हैं वा उनके साथ की मुलाक़ातों में जो सम्मुख बातचीत हुई है, उसकी स्मृति से ही रोमांच हो जाता है तथा प्यार से आँखें गीली हो जाती हैं। साकार बाबा ने हमारे प्रति जो भी महावाक्य बोले, वे सभी हमारे लिए वरदान बन गये हैं। बाबा ने एक बार सभा में कहा कि ये बच्चे बहुत लक्की हैं। यही अनुभव हमें जीवन के हर क़दम-क़दम में हो रहा है। बाबा ने हमारे जीवन को हल्का, अनासक्त तथा अति सुखमय बना दिया है। साथ में जीवन का लक्ष्य दिया है कि बाप को फॉलो करके उन समान बनना है। सर्व आत्माओं को अपनी वाणी तथा कर्म द्वारा परमपिता का सन्देश देकर मुक्ति और जीवनमुक्ति की दुनिया में पवित्रता, सुख, शान्ति का वर्सा दिलाना है।

मेरा जीवन सब प्राप्तियों से भरपूर हो गया

भगवान आकर न केवल अलौकिक जीवन का उत्थान करते हैं लेकिन वे लौकिक जीवन की प्राप्तियों से भी हमें हर प्रकार से सम्पन्न कर देते हैं। ऐसा ही मेरे जीवन में हुआ है। एक क्लर्क की नौकरी से आगे बढ़ाकर मुझे सरकारी कंपनी के मुख्य प्रबन्धक के पद पर पहुंचाया। जीवन में सुख के सभी साधनों एवं सुविधाओं से भलीभाँति भरपूर किया। लौकिक कार्यार्थ देश और विदेश में ले जाकर ईश्वरीय सेवाओं द्वारा मेरी अविनाशी कमाई करायी। जीवन में सन्तुष्टता, सुख तथा यश की प्राप्ति हुई। मेरा यह निश्चय है कि भगवान आये हैं, उन्हें अपना जीवन अर्पण करने से ही मुझे आध्यात्मिक उन्नति तथा सफलता प्राप्त हुई है। परिवार तथा समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य पूरा करने में समर्थ तथा सफल बनाकर उन्होंने मुझे सुखमय तथा सन्तुष्ट बना दिया है।

बाबा का बनने पर अनेकानेक अनुभव तथा प्राप्तियाँ हुई हैं जिनसे मैं समझता हूँ कि निराकार शिव परमात्मा इस धरती पर मेरे ही कल्याण के लिए आये हैं। इसलिए ही उनका गायन है, ‘पतित पावन’, ‘नैनहीन को राह दिखाने वाला‘ तथा ‘गरीब निवाज़’...। वाह बाबा, वाह!! आपने मुझ नैनहीन आत्मा को ज्ञान का नैन दिया और पावन बनाया! ग़रीब निवाज़ बनकर आपने मुझे सम्पन्न बना दिया और मुझ भूले-भटके राही का हाथ पकड़ कर कहा “ओ मेरे लाडले बच्चे, अभी चलो मेरे साथ सत्यता और पवित्रता के मार्ग पर, मैं तुम्हें सतयुग (स्वर्ग) की मंजिल तक पहुंचा दूँ।”

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

अनुभवगाथा

Bk gurumukh dada anubhavgatha

गुरुमुख दादा 50 साल की उम्र में ब्रह्माकुमारी ज्ञान में आए। सहारनपुर में रेलवे में नौकरी करते हुए, उन्होंने अपनी दुःखी बहन के माध्यम से ब्रह्माकुमारी आश्रम से परिचय पाया। बाबा की दृष्टि और बहनों के ज्ञान से प्रेरित होकर,

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Dada anandkishore ji

दादा आनन्द किशोर, यज्ञ के आदि रत्नों में से एक, ने अपने अलौकिक जीवन में बाबा के निर्देशन में तपस्या और सेवा की। कोलकाता में हीरे-जवाहरात का व्यापार करने वाले दादा लक्ष्मण ने अपने परिवार सहित यज्ञ में समर्पण किया।

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Dadi situ ji anubhav gatha

हमारी पालना ब्रह्मा बाबा ने बचपन से ऐसी की जो मैं फलक से कह सकती हूँ कि ऐसी किसी राजकुमारी की भी पालना नहीं हुई होगी। एक बार बाबा ने हमको कहा, आप लोगों को अपने हाथ से नये जूते

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Bk geeta didi batala anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी गीता बहन का बाबा के साथ संबंध अद्वितीय था। बाबा के पत्रों ने उनके जीवन को आंतरिक रूप से बदल दिया। मधुबन में बाबा के संग बिताए पल गहरी आध्यात्मिकता से भरे थे। बाबा की दृष्टि और मुरली सुनते

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Bk damyanti didi junagadh anubhavgatha

दमयन्ती बहन जी, जूनागढ़, गुजरात से, 40 साल पहले साकार बाबा से पहली बार मिलीं। उस मुलाकात में बाबा की नज़रों ने उनके दिल को छू लिया और उन्हें आत्मिक सुख का अनुभव कराया। बाबा की मधुर मुस्कान और उनकी

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Bk mahesh bhai pandav bhavan anubhav gatha

ब्रह्माकुमार महेश भाईजी, पाण्डव भवन, आबू से, अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे बचपन से ही आत्म-कल्याण की तीव्र इच्छा उन्हें साकार बाबा की ओर खींच लाई। सन् 1962 में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े और 1965 में

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Bk sudhesh didi germany anubhavgatha

जर्मनी की ब्रह्माकुमारी सुदेश बहन जी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि 1957 में दिल्ली के राजौरी गार्डन सेंटर से ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें समाज सेवा का शौक था। एक दिन उनकी मौसी ने उन्हें ब्रह्माकुमारी आश्रम जाने

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Bk mohindi didi madhuban anubhavgatha

मोहिनी बहन बताती हैं कि बाबा का व्यक्तित्व अत्यंत असाधारण और आकर्षणमय था। जब वे पहली बार बाबा से मिलने गईं, तो उन्होंने बाबा को एक असाधारण और ऊँचे व्यक्तित्व के रूप में देखा, जिनके चेहरे से ज्योति की आभा

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Bk aatmaprakash bhai ji anubhavgatha

मैं अपने को पद्मापद्म भाग्यशाली समझता हूँ कि विश्व की कोटों में कोऊ आत्माओं में मुझे भी सृष्टि के आदि पिता, साकार रचयिता, आदि देव, प्रजापिता ब्रह्मा के सानिध्य में रहने का परम श्रेष्ठ सुअवसर मिला।
सेवाओं में सब

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Experience with dadi prakashmani ji

आपका प्रकाश तो विश्व के चारों कोनों में फैला हुआ है। बाबा के अव्यक्त होने के पश्चात् 1969 से आपने जिस प्रकार यज्ञ की वृद्धि की, मातृ स्नेह से सबकी पालना की, यज्ञ का प्रशासन जिस कुशलता के साथ संभाला,

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