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Bk aatmaprakash bhai ji anubhavgatha

बी के आत्म प्रकाश भाई जी – अनुभवगाथा

मैं अपने को पद्मापद्म भाग्यशाली समझता हूँ कि विश्व की कोटों में कोऊ आत्माओं में मुझे भी सृष्टि के आदि पिता, साकार रचयिता, आदि देव, प्रजापिता ब्रह्मा के सानिध्य में रहने का परम श्रेष्ठ सुअवसर मिला। उस तेजोमय रूहानी आभा वाले चुम्बकीय व्यक्तित्व, परमपिता परमात्मा शिव के भाग्यशाली रथ पिताश्री जी के अंग-संग बिताए गए दिन, उनसे श्रीमत लेकर की गई सेवाएँ और कदम-कदम पर मिली उनकी अमूल्य शिक्षाएँ, मानस पटल पर स्मृतियों के माध्यम से साकार हो उठे हैं।

बाबा को लिखा पत्र

बात सन् 1957 की है। बाबा देहली के रजौरी गार्डन सेवाकेन्द्र पर ठहरे हुए थे। इक्कीस वर्ष की आयु में, इंजीनियरिंग के विद्यार्थी के रूप में बाबा से वहाँ पहली बार मेरा मिलना हुआ। प्रात:कालीन ईश्वरीय महावाक्य सुने, मीठे बाबा की गोद में गए और फिर बाबा ने कहा, बच्चे, यह पढ़ाई काम में आने वाली नहीं है, किसी न किसी धन्धे में लग जाओ। प्यारे बाबा का अनमोल मार्ग-दर्शन पाकर हम खुशी-खुशी वापस आ गए और घर आकर हमने मीठे बाबा को पत्र लिखा, (मूल पत्र अंग्रेजी में था और उसका उत्तर भी अंग्रेजी में ही बाबा ने दिया था) बाबा, मैं इंजीनियर बनकर भवन निर्माण करना नहीं चाहता परन्तु आपकी विश्व नव निर्माण की प्रक्रिया का नींव पत्थर बनना चाहता हूँ। मैं मशीनरी नहीं बनाना चाहता परन्तु किंग और क्वीन बनाने की आपकी मशीनरी का एक पुर्जा बनना चाहता हूँ। मैं हाइवे और रोड बनाना नहीं चाहता वरन् परमधाम और सुखधाम का जो रास्ता आपने दिखाया है उस पर तीव्र गति से दौड़ना चाहता हूँ।

शिवबाबा का फोटो तो आएगा नहीं

बाबा का जवाब आया, बच्चे ! यह सब ठीक है परन्तु अभी अपने परिवार वालों को और साथी इंजीनियर्स को भी यह सन्देश दो। फिर हमने प्यारे बापदादा की श्रीमत प्रमाण लौकिक परिवार को ज्ञान देना प्रारम्भ किया। माता-पिता, भाई-बहनों समेत सारा परिवार बाबा के ज्ञान में चलने लगा। थापर इन्स्टीट्यूट पटियाला में भी साथी इंजीनियर्स की ज्ञान-सेवा प्रारम्भ की। वहाँ होस्टल की कई आत्माएँ सम्पर्क में आने लगीं और कुछ ने अच्छा ज्ञान उठाया भी। सन् 1957 में ही पहली बार मधुबन में आए। एक बार जब बाबा टेनिस खेल रहे थे, मेरे पास कैमरा था। मैंने बाबा का फोटो खींचना चाहा तो बापदादा खेलते-खेलते रुक गए और कहा, बच्चे ! (शिव बाबा का) फोटो तो आएगा नहीं और यह शरीर पावन नहीं है। फोटो खींचने से क्या फायदा ? मैं रुक गया। बाबा ने कहा, बच्चे, फिर भी आपका दिल है तो खींच लो। इस प्रकार हमारा दिल रखने के लिए बाबा ने आज्ञा दे दी परन्तु देह के भान में लाने वाली हर बात से पार ले जाना ही उनका लक्ष्य रहता था।

चित्रों और साहित्य की सेवा

सन् 1961 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके परिवार सहित जब बाबा से मधुबन में मिलने गए तो प्यारे बापदादा ने हमें दिल्ली में भ्राता जगदीश जी के पास साहित्य विभाग में सेवा के लिए भेज दिया। त्रिकालदर्शी बाबा मुझ आत्मा के पार्ट के आदि-मध्य-अन्त को जानते थे इसलिए मानो बाबा मुझे इस कार्य की ट्रेनिंग दिलाना चाहते थे। कुछ समय बाद मुम्बई में विश्व नव-निर्माण आध्यात्मिक प्रदर्शनी का बनना प्रारम्भ हुआ तो हमने 6×4 का सीढ़ी का एक चित्र बनाकर बाबा के पास भेजा। बाबा को बहुत पसन्द आया और तभी बाबा ने मुझे अपने हाथों से पत्र लिखने शुरू किये कि बच्चे, प्रदर्शनी के चित्रों की सेवा में लग जाओ। बाबा ने सीढ़ी के चित्र के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न सुझाव, आदेश, निर्देश समय-समय पर दिये जिनसे यह चित्र अधिक सुग्राह्य हो गया। उदाहरण के लिए देवियों की पूजा कर उनको पानी में डालना अर्थात् अन्धश्रद्धा की पूजा, काँटों की शैय्या पर लेटा हुआ गरीब भारत आदि-आदि। इस प्रकार दिल्ली, कृष्णानगर में चित्रशाला की स्थापना हो गई और कई कलाकारों को लगाकर जोर-शोर से यज्ञ के ज्ञान के चित्र बनने शुरू हो गये।

बाबा ने अपने साथ गद्दी पर बिठाया

जब आयल पेन्ट की पहली प्रदर्शनी बनाकर हम मधुबन में बाबा के पास लाए तो उन चित्रों को छोटे हाल में रखवाया गया, बाबा उन चित्रों को देखने आये, वे एक-एक चित्र को बड़े ध्यान से देखते रहे और मैं साथ-साथ व्याख्या करता रहा। सारे चित्रों का अवलोकन करने के बाद बाबा ने मुझे अपने कमरे में बुलाया। मैं गया तो देखा, बाबा गद्दी पर बैठे थे। मैं नीचे बैठने लगा तो प्यार के सागर बाबा ने इशारा करके कहा, बच्चे! आओ, गद्दी पर बैठो। मैं गद्दी पर ही बैठ गया। फिर बाबा ने महावाक्य उच्चारण किए, मीठे बच्चे, जो बाप की गद्दी सो बच्चों की गद्दी। ये प्यार और अधिकार भरे बोल सुन आत्मन् गद्गद् हो उठा। आज भी बाबा के कमरे में जाते हैं तो यह सीन मन की आँखों के सामने आ जाता है, रोमाँच खड़े हो जाते हैं और नेत्रों से प्यार के सागर के प्रेम में अश्रूधारा बहने लगती है।

बेबी बुद्धि का टाइटल

बाबा हमेशा कहते थे, फलाँ म्यूजियम बहुत सुन्दर बनाओ तो बाबा खुद आकर देखेगा। जब कोई नया चित्र बनता था तो बाबा चाहते थे कि बच्चे बाबा को दिखाएँ। जब पहले-पहले शिव बाबा का किरणों वाला चित्र बना और मथुरा में लगी प्रदर्शनी में दिखाया गया तो बाबा के पास भी समाचार पहुँचा कि नया चित्र बना है। पहले तो बाबा ने मुरली में खूब महिमा की कि बच्चों ने अच्छा विचार सागर मन्थन किया है परन्तु बाद में यह भी कह दिया कि बच्चे बेबी बुद्धि हैं, जो बाबा को दिखाया भी नहीं। फिर तो हमने शीघ्र ही एक सैम्पल प्राण प्यारे बापदादा के पास भेज दिया। कार्य में देरी होने पर या मन पसन्द कार्य न होने पर जब बाबा के मुख से हमारे लिए बेबी या बेबी बुद्धि बच्चे शब्द निकलता तो यह शब्द भी हमारी खुशी का पारा चढ़ा देता क्योंकि इसमें मीठी शिक्षा के साथ-साथ बाबा का अपार प्यार भी समाया रहता।

शब्दों की सही लिखत पर ध्यान

बाबा हर कार्य को बिल्कुल ठीक रीति से करते और कराते थे। जब पहली बार परमात्मा के परिचय की किताब पर चार रंग में ‘सर्वात्माओं का पिता’ यह टाइटल और दूसरी तरफ ‘सतयुगी दैवी स्वराज्य आपका जन्म सिद्व अधिकार है’ यह छपा तो बाबा को रंगीन टाइटल बहुत पसन्द आया। लेकिन स्लोगन की लाइन को देखकर तुरन्त पत्र लिखा कि इसमे ‘ईश्वरीय’ शब्द मिस है। ईश्वर के घर का बच्चा बने बिना यह जन्म-सिद्व अधिकार नहीं मिल सकता। इस प्रकार शब्दों को सही-सही लिखा जाए इस बात पर बाबा बहुत-बहुत ध्यान देते थे।

भविष्य स्वरूप का नशा

सेवाओं में सब प्रकार से व्यस्त रहते हुए भी बाबा सदा अपने भविष्य स्वरूप के नशे में रहते थे। मैं कल क्या बनने वाला हूँ, यह जैसे बाबा के सामने हर क्षण प्रत्यक्ष रहता था। एक बार गीता का भगवान कौन, शिव या श्रीकृष्ण (इस चित्र में श्रीकृष्ण के बचपन के पालना और पढ़ाई के चित्र भी है)? यह चित्र लेकर हम बाबा के पास गए तो बाबा ने उसे छोटे हाल के प्रवेश द्वार पर लगवाया और मुरली सुनाकर जब हाल से बाहर जाते तो उसको देखकर अपने भविष्य के स्वरूप के नशे में कहते, देखो! मैं कल यह मिचनू बनूँगा, मैं ऐसे पदूँगा। बाबा के नारायणी नशे में डूबे हाव-भाव देखकर हम भी देह की सुध-बुध भूल जाते और बाबा के साथ-साथ नई सतयुगी दुनिया के नज़ारों में रमण करने लगते।

कदम-कदम पर शिवबाबा की याद

बाबा सिखाते थे कि चित्र बड़े-बड़े होने चाहिएँ ताकि अन्धों के आगे आइने का काम करें। बाबा सदा अपने को छिपाना चाहते थे और हर बात में शिव बाबा की महिमा को प्रत्यक्ष करना चाहते थे और अपने इस पुरुषार्थ में वो एक सेकण्ड के लिए भी प्यारे शिव बाबा की स्मृति को ओझल नहीं होने देते थे। एक बार जब हम छोटे हाल में फुल साइज का त्रिमूर्ति का चित्र फिट कर रहे थे तो बाबा ने ब्रह्मा का चित्र देखकर कहा, यह मेरा चित्र इतना बड़ा क्यों बनाया है? हमने कहा, बाबा जब विष्णु फुल साइज का है तो ब्रह्मा भी तो फुल साइज का बनाना पड़ेगा। बाबा कभी भी अपनी महिमा सुनना पसन्द नहीं करते थे। यदि मुरली पूरी होने के बाद क्लास में कोई भी कविता आदि सुनाता और उसमें साकार बाबा की महिमा होती तो बाबा झट चुप करा देते। वे सदैव कहते कि यदि महिमा है तो एक शिव बाबा की। जब कोई उन्हें फूल भेंट करता तो कहते, मम्मा को दो क्योंकि वह कुमारी है। इस प्रकार हमने देखा, कदम-कदम पर बाबा शिव बाबा की याद दिलाते और सभी को अपने से आगे रख, आगे बढ़ाते। उनके जीवन में सद्गुणों के अमूल्य रत्न छिपे हुए थे, वे सभी के थे और सभी उनके थे। परन्तु प्यार के सागर होते भी पल में न्यारे होने की कला में भी निपुण थे। कितनी महिमा करें, कितने गुण बखान करें ? ऐसे सर्वोच्च बापदादा के सानिध्य में ज्ञान-रत्नों से सजकर हमारा भी जीवन धन्य हो गया। 

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

अनुभवगाथा

Bk nirwair bhai ji anubhavgatha

मैंने मम्मा के साथ छह साल व बाबा के साथ दस साल व्यतीत किये। उस समय मैं भारतीय नौसेना में रेडियो इंजीनियर यानी इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर था। मेरे नौसेना के मित्रों ने मुझे आश्रम पर जाने के लिए राजी किया था। वहाँ बहनजी ने बहुत ही विवेकपूर्ण और प्रभावशाली तरीके से हमें समझाया। चार दिन बाद हमें योग करवाया। योग का अनुभव बहुत ही शक्तिशाली व सुखद था क्योंकि हम तुरंत फरिश्ता स्टेज में पहुँच गये थे।

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Dadi brijindra ji

आप बाबा की लौकिक पुत्रवधू थी। आपका लौकिक नाम राधिका था। पहले-पहले जब बाबा को साक्षात्कार हुए, शिवबाबा की प्रवेशता हुई तो वह सब दृश्य आपने अपनी आँखों से देखा। आप बड़ी रमणीकता से आँखों देखे वे सब दृश्य सुनाती थी। बाबा के अंग-संग रहने का सौभाग्य दादी को ही प्राप्त था।

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Bk ramesh bhai ji anubhavgatha

हमने पिताश्री जी के जीवन में आलस्य या अन्य कोई भी विकार कभी नहीं देखे। उम्र में छोटा हो या बड़ा, सबके साथ वे ईश्वरीय प्रेम के आधार पर व्यवहार करते थे।इस विश्व विद्यालय के संचालन की बहुत भारी ज़िम्मेवारी उनके सिर पर थी फिर भी कभी भी वे किसी प्रकार के तनाव में नहीं आते थे और न ही किसी प्रकार की उत्तेजना उनकी वाणी या व्यवहार में दिखाई पड़ती थी।

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Dadi chandramani ji

आपको बाबा पंजाब की शेर कहते थे, आपकी भावनायें बहुत निश्छल थी। आप सदा गुणग्राही, निर्दोष वृत्ति वाली, सच्चे साफ दिल वाली निर्भय शेरनी थी। आपने पंजाब में सेवाओं की नींव डाली। आपकी पालना से अनेकानेक कुमारियाँ निकली जो पंजाब तथा भारत के अन्य कई प्रांतों में अपनी सेवायें दे रही हैं।

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Bk kamlesh didi ji anubhav gatha

प्यारे बाबा ने कहा, “लौकिक दुनिया में बड़े आदमी से उनके समान पोजिशन (स्थिति) बनाकर मिलना होता है। इसी प्रकार, भगवान से मिलने के लिए भी उन जैसा पवित्र बनना होगा। जहाँ काम है वहाँ राम नहीं, जहाँ राम है वहाँ काम नहीं।” पवित्र जीवन से सम्बन्धित यह ज्ञान-बिन्दु मुझे बहुत मनभावन लगा।

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Dadi situ ji anubhav gatha

हमारी पालना ब्रह्मा बाबा ने बचपन से ऐसी की जो मैं फलक से कह सकती हूँ कि ऐसी किसी राजकुमारी की भी पालना नहीं हुई होगी। एक बार बाबा ने हमको कहा, आप लोगों को अपने हाथ से नये जूते भी सिलाई करने हैं। हम बहनें तो छोटी आयु वाली थीं, हमारे हाथ कोमल थे। हमने कहा, बाबा, हम तो छोटे हैं और जूते का तला तो बड़ा सख्त होता है, उसमें सूआ लगाना पड़ता है

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Experience with dadi prakashmani ji

आपका प्रकाश तो विश्व के चारों कोनों में फैला हुआ है। बाबा के अव्यक्त होने के पश्चात् 1969 से आपने जिस प्रकार यज्ञ की वृद्धि की, मातृ स्नेह से सबकी पालना की, यज्ञ का प्रशासन जिस कुशलता के साथ संभाला, उसे तो कोई भी ब्रह्मावत्स भुला नहीं सकता। आप बाबा की अति दुलारी, सच्चाई और पवित्रता की प्रतिमूर्ति, कुमारों की कुमारका थी। आप शुरू से ही यज्ञ के प्रशासन में सदा आगे रही।

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Dadi gange ji

आपका अलौकिक नाम आत्मइन्द्रा दादी था। यज्ञ स्थापना के समय जब आप ज्ञान में आई तो बहुत कड़े बंधनों का सामना किया। लौकिक वालों ने आपको तालों में बंद रखा लेकिन एक प्रभु प्रीत में सब बंधनों को काटकर आप यज्ञ में समर्पित हो गई।

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Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा? मैंने कहा, मुरली में श्रीमत मिलती है, आप ही कहते हो कि मेरे हाथ में है किसका भाग्य बनाऊँ, किसका ना बनाऊँ।

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Bk jagdish bhai anubhavgatha

प्रेम का दर्द होता है। प्रभु-प्रेम की यह आग बुझाये न बुझे। यह प्रेम की आग सताने वाली याद होती है। जिसको यह प्रेम की आग लग जाती है, फिर यह नहीं बुझती। प्रभु-प्रेम की आग सारी दुनियावी इच्छाओं को समाप्त कर देती है।

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