शक्तियों के 108 नाम प्रसिद्ध हैं। वे सभी लाक्षणिक अथवा गुणवाचक नाम हैं। उनसे या तो उनके पवित्र जीवन का, उनकी उच्च धारणाओं का परिचय मिलता है या जिस काल में वे हुई, उसका ज्ञान होता है। या परमपिता परमात्मा के साथ तथा मनुष्यमात्र के साथ उनके संबंध का बोध होता है और या तो उनके कर्तव्यों का पता चलता है।
उदाहरणार्थ, शक्तियों के जो सरस्वती, विमला, तपस्विनी, सर्वशास्त्रमयी, त्रिनेत्री इत्यादि नाम हैं, उनसे यह परिचय मिलता है कि उनमें ज्ञान शक्ति, योग शक्ति और पवित्रता की शक्ति थी। ‘कुमारी’, ‘कन्या’ इत्यादि नामों से यह परिचय मिलता है कि ये कौमार्य (ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करती थी। उनके ‘आद्या’, ‘आदि देवी’ इत्यादि जो नाम हैं, उनसे यह ज्ञात होता है कि वे सृष्टि के आदिकाल में अर्थात् सतयुगी सृष्टि की स्थापना के कार्य के समय हुई थी। इसी प्रकार, उनके ‘ब्राह्मी’, ‘सरस्वती’, ‘भवानी’ (शिव पुत्री), ‘भव-प्रिया’ (शिव को प्रिय), ‘शिवमयी शक्तियाँ’ इत्यादि नामों से यह बोध होता है कि वे प्रजापिता ब्रह्मा की ज्ञान-पुत्रियाँ थी और उन्हें परमात्मा शिव ने ब्रह्मा द्वारा ज्ञान शक्ति, योग शक्ति तथा पवित्रता की शक्ति दी थी।
देवियों के अलौकिक और कर्तव्य वाचक नाम
देवियों के दैहिक जन्म से संबंधित नाम और माता-पिता तो भिन्न थे परंतु जब उन्होंने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा परमात्मा शिव से ज्ञान प्राप्त किया और परमपिता परमात्मा से आत्मिक संबंध जोड़ा, तब उनके सरस्वती, शारदा, ज्ञाना, ब्राह्मी, कुमारी इत्यादि अलौकिक नाम प्रसिद्ध हुए। तब उन्होंने अन्य मनुष्यों को भी ईश्वरीय ज्ञान दिया। उस द्वारा उनके आसुरी लक्षणों का अंत किया तथा उनकी आत्माओं को शान्त और शीतल किया। इस कारण उनके शीतला, दुर्गा तथा असुर-संहारक शक्तियाँ इत्यादि नाम प्रसिद्ध हैं।
प्रजापिता अथवा जगत पिता ब्रह्मा की कुमारी ‘सरस्वती’ को ‘अम्बा’ अथवा जगदम्बा भी इसीलिए कहा जाता है कि उन्होंने ज्ञान द्वारा सभी मनुष्यात्माओं को नया आध्यात्मिक जन्म अथवा मरजीवा जन्म दिया। वरना आप समझ सकते हैं कि लौकिक अर्थात् दैहिक रीति से तो सारे जगत की कोई भी एक माता नहीं हो सकती। परन्तु आज भक्त लोग इन रहस्यों को नहीं जानते। यद्यपि वे सरस्वती को ‘जगदम्बा’ नाम से संबोधित करते हैं तथापि वे यह नहीं जानते कि ‘जगतपिता’ कौन हैं?
शक्तियों का गायन-वन्दन रात्रि में ही क्यों?
रात्रि में ही शक्तियों के गायन-वन्दन, रात्रि को ही जागरण, स्मरण इत्यादि की जो परिपाटी चली आती है, उसके पीछे भी एक महत्वपूर्ण इतिहास छिपा हुआ है। यहाँ ‘रात्रि’ शब्द उस रात्रि का वाचक नहीं है जो 24 घंटे में एक बार आती है बल्कि यह उस रात्रि’ का बोधक है जो ‘शिवरात्रि’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। लाक्षणिक दृष्टि से सतयुग और त्रेतायुग को ब्रह्मा का दिन कहना चाहिए क्योंकि उस काल में जन-जीवन प्रकाशमय होता है। द्वापर और कलियुग को ‘ब्रह्मा की रात्रि’ कहना चाहिए क्योंकि उन दो युगों में मनुष्य अज्ञान अंधकार में होते हैं, तमोगुणी होते हैं और तमोगुण नाम अंधकार का है।
जब कलियुग का अथवा ब्रह्मा की रात्रि का अंत होता है तब सभी आत्मायें आसुरी गुणों से पीड़ित, अज्ञान निद्रा में सोई हुई और आत्मिक शक्ति से हीन होती हैं। ऐसी अज्ञान रात्रि के समय परमपिता परमात्मा ज्योतिर्लिंगम शिव एक साधारण मनुष्य के वृद्ध तन में अवतरित (प्रविष्ट) होते हैं और उनका दैहिक जन्म के समय का नाम बदलकर अब उसका कर्तव्यवाचक नाम ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ रखते हैं। उनके मुखारविन्द द्वारा जो नर-नारियाँ ज्ञान सुनकर अपने जीवन को परिवर्तित करके नया आध्यात्मिक जन्म पाते हैं, वे ही सच्चे अर्थ में ‘ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ हैं। उन्हीं ब्रह्मचर्य व्रत धारिणी कन्याओं-माताओं को ‘शिव-शक्तियाँ’ कहते हैं क्योंकि वे ब्रह्मा द्वारा परमात्मा शिव से ज्ञान-शक्ति, योग-शक्ति और पवित्रता-शक्ति प्राप्त करती हैं।
अतः उस रात्रि की याद में तथा उन शक्तियों की स्मृति में आज भी लोग ‘रात्रि’ को ही शक्तियों का गुणगान करते और नवरात्रि का त्योहार मनाते हैं। अब भी नवरात्रों में भक्तजन शक्तियों के चित्रों अथवा मूर्तियों के सामने दीपक जगाकर कहते हैं हे अम्बे, जैसे यह दीपक चहुँ ओर के अंधकार को हरकर प्रकाश कर रहा है, आप भी हमारे जीवन में प्रकाश कर दो, हमारे अज्ञान अंधकार को हर लो। माँ हमें भी शक्ति दो…!
भक्ति करते हैं, प्राप्ति नहीं करते
आज लोग शक्तियों की भक्ति करते हैं परन्तु उनकी तरह शक्ति की प्राप्ति नहीं करते । वे नवरात्रि के दिनों में मिट्टी का दीपक जगाते हैं परंतु उस सदा जागती ज्योति शिव से, जिसने कि शक्तियों को भी शक्ति दी थी, योग लगाकर स्वयं अपनी आत्मा की ज्योति नहीं जगाते। वे शक्तियों को तो ‘तपस्विनी’,’ ‘ब्रह्मचारिणी’ इत्यादि मानते हैं परंतु स्वयं केवल नवरात्रों में ही ब्रह्मचर्य का पालन करके फिर से पतित हो जाते हैं। वे सरस्वती को ‘माँ’ अथवा ‘अम्बे’ शब्द से पुकारते हैं परंतु वे उस अलौकिक एवं पवित्र माँ की तरह स्वयं पवित्र नहीं बनते। वे 10-12 घंटे की अवधि वाली रात्रि को ही रात्रि समझते हैं, उन्हें ‘शिव-रात्रि का पता नहीं है। वे कहते हैं कि अब तो कलियुग है, आज के युग में पवित्र बनना असंभव है। परंतु वास्तव में ऐसा न समझकर उन्हें आज के युग को ‘कर युग’ समझना चाहिए और बजाय शाब्दिक स्तुति के स्वयं ज्ञानवान तपस्वी, विमल और शक्तिवान बनने का पुरूषार्थ करना चाहिए क्योंकि अब वही ‘रात्रि’ आ चुकी है। इस कल्याणकारी रात्रि में ज्ञान द्वारा जो जागेंगे ही नहीं, वे शक्ति कैसे पायेंगे?
शक्तियों के हाथ में अस्त्र-शस्त्र
‘शक्ति’ से अभिप्राय आध्यात्मिक शक्ति अथवा ज्ञान, योग तथा पवित्रता की शक्ति से है, न कि माया की शक्ति या हिंसा करने की शक्ति। परंतु आज भक्त लोग समझते हैं कि काली या दुर्गा में शत्रुओं का अथवा असुरों का संहार करने की शक्ति थी। चित्रों में शक्तियों के हाथों में भाले, खड्ग इत्यादि भी प्रदर्शित किये होते हैं। परंतु हिंसाकारी व्यक्तियों का पूजन कभी नहीं हुआ करता । वंदनीय शक्तियों के पास असुरों का वध करने के स्थूल शस्त्र नहीं थे बल्कि आसुरी लक्षणों का अंत करने के लिए ‘ज्ञान-शस्त्र’ थे। मानो कोई व्यक्ति हमें उपदेश देता है कि ज्ञान रूपी तलवार से काम रूपी असुर को मारो। इस उपदेश को चित्रकार चित्र के रूप में अंकित करते समय हमारे हाथ में तलवार दिखायेगा और हमारे सामने काम को भयानक असुर के रूप में खड़ा कर देगा। इसी प्रकार शक्तियों की अनेक भुजाएँ तथा उनमें नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र दिखाने का भी यही अभिप्राय है कि काम, क्रोधादि आसुरी लक्षणों का अंत करने के लिए उनमें बहुत शक्ति थी और ज्ञान की अनेक धारणाएँ थी।
जगदम्बा सरस्वती और श्री लक्ष्मी
माया पर विजय प्राप्त करके जगदम्बा सरस्वती इत्यादि शक्तियों ने विश्व का चक्रवर्ती स्वराज्य पाया था। इसलिए वर्ष में एक बार नवरात्रि के पश्चात् विजयदशमी का त्योहार (जो कि स्त्री और पुरूष के पाँच- पाँच विकारों पर विजय का प्रतीक है) मनाया जाता है। ईश्वरीय ज्ञान द्वारा उस विजय के फलस्वरूप सरस्वती जी ने भविष्य के जन्म में विश्व महारानी श्री लक्ष्मी का पद प्राप्त किया था। इसलिए ही उक्ति प्रसिद्ध है कि ज्ञान द्वारा नर से श्री नारायण और नारी से श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति होती है । परन्तु यह रहस्य आज किसी को भी ज्ञात नहीं है। जगदम्बा सरस्वती की तथा विश्व महारानी श्री लक्ष्मी की इस जीवन कहानी को जानकर अब हमें भी ज्ञान शक्ति प्राप्त करनी चाहिए। उससे हम भी श्री लक्ष्मी की तरह अखुट धन-धान्य, शांति प्राप्त कर सकेंगे।