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Day Of Divinity – Dadi Gulzar
March 11

इस धरा पर ईश्वरीय ज्ञान को सर्व मनुष्यात्माओं तक पहुँचाने के निमित्त साकार माध्यम दादी हृदयमोहिनी जी एक अलौकिक दिव्य शक्ति सम्पन्न, बाल-ब्रह्माचारिणी और तपस्विनी थी। 9 वर्ष की अल्पायु में शोभा नाम की कन्या ने हैदराबाद, सिन्ध में अपनी माता जी के साथ ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया तथा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा के सानिध्य में अपने आध्यात्मिक जीवन को प्रारंभ किया। पिताश्री ब्रह्मा बाबा के अलौकिक जीवन से प्रेरित होकर आपने अपना सम्पूर्ण जीवन विश्व परिवर्तन के कार्य के लिए समर्पित कर दिया, तब से आप हृदयमोहिनी जी के नाम से जानी गयीं। आप “ओम मंडली” की सबसे कम उम्र की परंतु बाल्यकाल से दिव्यता, सरलता, सत्यता, पवित्रता और शांति की साक्षात्कारमूर्त थी।
मौन की अतल गहराइयों में पहुँचकर गहन तपस्या करना दादी जी की सर्वकालीन विशेषता थी, जिसके आधार पर स्वयं परमात्मा शिव ने आपको अपना रथ बनाना स्वीकार किया। दादी हृदयमोहिनी जी ने परमात्म शक्तियों को प्रत्यक्ष धारण करके अज्ञानता में भटकती आत्माओं के जीवन की दिशा और दशा का सत्य मार्गदर्शन किया। लाखों भाई-बहनों को आत्तमानुभूति, परमात्मानुभूति कराने में निमित्त दादी जी ने लगभग 53 वर्षो तक निरंतर ईश्वरीय संदेशवाहक बन करके इस महारूद्र ज्ञान यज्ञ की पालना की |
अव्यक्त अर्थात् भौतिक देह व दुनिया से परे दिव्य, सम्पूर्ण स्वरुप स्थिति। जिस प्रकार दादी हृदयमोहिनी जी ने पारलौकिक परमपिता परमात्मा का दिव्य रथ बन कर सभी आत्माओं को अव्यक्त स्थिति का अनुभव कराया था, उसी तरह उनकी स्मृति में बना यह अव्यक्त लोक भी एक ऐसी पावन स्थली है जो हम मनुष्य आत्माओं को व्यक्त में रहते अव्यक्त स्थिति का अनुभव कराने के निमित्त बनेगा।