
A Universal Man – Brahma Baba
When we mention the birth place of Brahma Baba, we say that he had his physical birth in Sindh. But, his personality and character were
महाशिवरात्रि, कल्याणकारी परमपिता परमात्मा शिव के द्वारा इस धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट, अज्ञान, अंधकारपूर्ण समय पर दिव्य अवतरण लेकर, विकारों के पंजे से सर्व आत्माओं को स्वतंत्र कराकर, ज्ञान की ज्योति से पवित्रता की स्निग्ध किरणें बिखराकर सुख, शांति, आनन्द संपन्न दैवी सृष्टि की स्थापना की एक पवित्र स्मृति है । मानवता में नवजीवन सृजन का बोधक यह दिवस अनेक शाश्वत सत्यों को सजीव करने का परम महत्व रखता है । शिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जो कलियुग के अंत में होने वाली घोर अज्ञानता और अपवित्रता का द्योतक है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से द्वापर युग और कलियुग को रात्रि अथवा कृष्ण पक्ष कहा गया है। कलियुग का पूर्णान्त होने से कुछ वर्ष पहले का जो समय है वह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी-रात्रि के समान है। इसलिए शिव का संबंध रात्रि से जोड़ा जाता है और रात्रि में ही पूजा-पाठ को महत्व दिया गया है। अन्य देवी-देवताओं का पूजन दिन में होता है क्योंकि श्री नारायण एवं श्रीराम आदि देवता सतयुग और त्रेतायुग रूपी दिन में थे। परंतु परमात्मा शिव की पूजा के लिए तो भक्त लोग स्वयं भी रात्रि का जागरण करते हैं।
शिव मंदिरों में शिव की प्रतिमा के ऊपर रखे हुए घड़े से प्रतिमा पर बूंद-बूंद जल निरंतर पड़ता ही रहता है। इसका आध्यात्मिक रहस्य यह है कि सच्चे स्नेह के साथ परमात्मा शिव से बुद्धि रूपी कलश से भरे ज्ञान रूपी अमृत के बिन्दुओं का तादात्म्य शिव परमात्मा की ओर निरन्तर लगा रहे । परमात्मा निराकार त्रिमूर्ति शिव हैं। वे स्थापना, पालना तथा विनाश के दिव्य कर्तव्यों के लिए तीन सूक्ष्म देवताओं ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर की रचना करते हैं । इसीलिए भक्तजन शिवलिंग पर बेल-पत्र चढ़ाते हैं जिसमें तीन पत्ते होते हैं। कितना अद्भुत है कि प्रकृति ने भी त्रिमूर्ति परमात्मा शिव की स्मृति में ही तीन पत्रों वाले बेल पत्र की रचना की है।
शिवभक्त शिवरात्रि पर उपवास अथवा व्रत भी रखते हैं । वास्तव में सच्चा व्रत काम, क्रोध आदि विकारों का मन से व्रत करना है। उपवास का अर्थ है परमात्मा के पास वास करना अर्थात् मन से शिव को याद करना है। भक्त लोग शिवरात्रि के अवसर पर सारी रात को जागरण करते हैं और यह सोचकर कि खाना खाने से आलस्य, निद्रा और मादकता का अनुभव होने लगता है इसलिए ये अन्न का त्याग करते हैं, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हों । परन्तु मनुष्यात्मा को तमोगुण में सुलाने वाली और रूलाने वाली मादकता तो यह माया अर्थात् पांच विकार ही हैं। जब तक मनुष्य इन विकारों का त्याग नहीं करता, तब तक उसकी आत्मा का सच्चा जागरण नहीं हो सकता। आशुतोष भगवान शिव जो काम के शत्रु हैं, वे कामी मनुष्य पर कैसे प्रसन्न हो सकते हैं? दूसरी बात यह है कि फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चौदहवीं रात्रि को मनाया जाने वाला शिवरात्रि महोत्सव तो कलियुग के अंत में उन वर्षों का प्रतिनिधि है, जिनमें भगवान शिव ने मनुष्यों को ज्ञान द्वारा पावन करके कल्याण का पात्र बनाया । अतः शिवरात्रि का व्रत तो उन सारे वर्षों में रखना चाहिए। आज यह समय चल रहा है जबकि शंकर द्वारा इस कलियुगी सृष्टि के महाविनाश की सामग्री एटम बम तथा हाइड्रोजन बमों के रूप में तैयार हो चुकी है तथा परमपिता शिव विश्व नवनिर्माण का कर्तव्य पुनः कर रहे हैं, तो सच्चे भक्तजनों का कर्तव्य है कि अब महाविनाश के समय तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें तथा मनोविकारों पर ज्ञान – योग द्वारा विजय प्राप्त करने का पुरुषार्थ करें। यही महाव्रत है जो शिवव्रत के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे तो सभी देवी-देवताओं, महात्माओं, धर्म संस्थापकों, महान विचारकों, राजनीतिज्ञों तथा महापुरुषों की जयंती से सर्वोच्च तथा श्रेष्ठतम यही एक शिव जयंती है।
संसार में जो भी जन्मदिन मनाए जाते हैं वह किसी विशेष धर्म या संप्रदाय के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण होते हैं जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा श्रीराम नवमी को सनातन धर्म के लिए लोग अधिक महत्व देते हैं परंतु शिवरात्रि तो सभी धर्मों के भी पारलौकिक परमपिता परमात्मा का जन्मदिन है । इसे सारी सृष्टि के सभी मनष्यों को बड़े भाव एवं उत्साह से मनाना चाहिए परन्तु आज परमात्मा को सर्वव्यापी अथवा नाम रूप से न्यारा मानने के कारण शिव जयंती का महत्व बहुत कम हो गया है। पतित पावन परमात्मा शिव के गुणों एवं कर्तव्यों की विशालता तो अपरमपार है। वर्तमान समय में परमात्मा इस सृष्टि पर अवतरित हो सतोप्रधान पावन सतयुगी सृष्टि का नवनिर्माण कर रहे हैं। महाशिवरात्रि उनके इसी दिव्य कर्मों का यादगार पर्व है
When we mention the birth place of Brahma Baba, we say that he had his physical birth in Sindh. But, his personality and character were
“By the right choice and true application of thought, man ascents to the Divine Perfection; by the abuse and wrong application of thought, he descents
The most profound need of the human spirit is to love and be loved, to belong and to manifest the highest principles, values and virtues,
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