12th dec 2024 soul sustenence hindi

December 12, 2024

क्या आपका आत्म-सम्मान हार-जीत पर निर्भर करता है? (भाग 1)

हम अक्सर सुनते हैं कि हम सभी एक दौड़ में हैं और जीवन का हर पल उस दौड़ को जीतने पर टिका हुआ है। जब हम अपने जीवन में पढ़ाई, करियर, रिश्तों या खेल आदि किसी भी क्षेत्र में सफल होते हैं तो हमें बहुत खुशी होती है। लेकिन जब हम असफल होते हैं या अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते, तो हमें दुख होता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि आज हमारा आत्म-सम्मान जीवन के इन उतार-चढ़ावों पर निर्भर हो गया है। हम भूल गए हैं कि ये सब जीवन के अस्थायी हिस्से हैं। लोग हमें सफलता और असफलता के चश्मे से देखने लगे हैं और लेबल करने लगे हैं। लेकिन हमें खुद के और दूसरों के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए। हमारे बच्चे भी आज इसी वजह से परेशान हो रहे हैं क्योंकि हम उन्हें पढ़ाई, खेल और अन्य क्षेत्रों में जीत और हार के आधार पर जज करते हैं। आइए उन तीन तरीकों पर विचार करें जिनसे हम इस समस्या को दूर कर सकते हैं –

 

  1. जीत और हार बाहरी है … अगर मैं खुश और संतुष्ट हूं, तो मैं हमेशा विजेता हूं। सबसे पहला कदम है यह समझना कि “सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट यानि सबसे योग्य की उत्तरजीविता” के सिद्धांत ने समाज में गहरी प्रतिस्पर्धा लाई है। इसने जीवन को इतना कठिन बना दिया कि अब हम खुद ही इस दौड़ में दिन  रात दौड़ रहे हैं और फंस गए हैं। चाहे हमारी पर्सनल, प्रोफेशनल लाइफ़ हो या स्कूल-कॉलेज की शिक्षा हो; हर जगह बाहरी सफलता पर जोर है। आंतरिक सफलता की कोई कहीं बात ही नहीं करता जो आज की आवश्यकता है। बहुत से लोग अंदर से दुखी हैं क्योंकि वे इस दौड़ से बाहर निकलना नहीं जानते। वास्तव में, हम यह भूल गए हैं कि हम सब आध्यात्मिक आत्माएं हैं। हमारे लिए असली जीत; शुद्ध, सकारात्मक और शांति, प्रेम, खुशी, शक्ति आदि जैसे मूल गुणों से भरपूर होना है। जब हम केवल बाहरी जीत और हार पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो जीवन का आनंद खो देते हैं। हम बस और ज्यादा पाने की कोशिश में लगे रहते हैं और हर दिन आत्मिक और भावनात्मक रूप से खाली होते जाते हैं। हमारे गुण कम होते जाते हैं।

(कल जारी रहेगा …)

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