“दीपावली” जगमगाते हुए दीपों की रोशनी का त्यौहार है। तो आइए इस बार एक नई सोच के साथ एक नए तरह से दीपावली मनाएं। इस पर्व के हर एक रीति रिवाज के पीछे के आध्यात्मिक रहस्य को गहराई से जानें तथा अपने जीवन को एक नई सोच और नई दिशा दें। इस नए साल पर नए युग के आगमन का शुभारंभ करें, अपने यथार्थ अस्तित्व को जानकर परमपिता परमात्मा से जुड़कर अपना आत्मा रुपी दिया जगाएं और हर एक को स्नेह भरी शुभकामनाओं और शुभभावनाओं रूपी अमूल्य गिफ्ट दें। इस दीपावली स्वास्तिक बनाते हुए उसकी चार भुजाओं के द्वारा इस धरा के चार युगों को जानें। साथ ही दीपावली पर स्वादिष्ट “दिलखुश मिठाई” की मिठास स्वयं भी चखें और औरों में भी बांटे। भाईदूज के तिलक के महत्व को जानकर सदा ही अपनी आत्मिक स्मृति का तिलक हर दिन अपने मस्तक पर सजाएं।
इसके साथ आप दीपावली पर हर साल नई चीजों की खरीदारी करते आए हैं। इस बार उन चीजों के साथ साथ नए संस्कार भी अपने जीवन में धारण कर नवीनता लाएं जिससे आपके मन में और जीवन में खुशहाली छा जाए। और अंततः यह सब अपने जीवन में धारण करने से आप अपने जीवन के सभी बही खातों को सही तरीके से सेटल कर पाएंगे।
इस नई सोच के साथ दीपावली पर्व मनाने के लिए नीचे दिए गए आइकन्स को क्लिक करें और अपने और अपनों के जीवन में दीपावली की सच्ची सच्ची रोशनी भरें।
दीपावली माना “दीपों का त्यौहार”, जिसे दीपमाला भी कहते हैं; जिसका अर्थ है “एक दिए से दूसरे दियों को जलाना माना ज्योत से ज्योत जगाना”।
हम सभी ने अपने अपने घरों में यह सुना होगा, देखा होगा कि, घरों में जलने वाले दिए की लौ कभी भी बुझने न पाए वरना अशुभ होगा, ये हमेशा जलती रहे, प्रज्ज्वलित रहे, तो जीवन में सबकुछ शुभ ही शुभ होगा। लेकिन क्या, हमने कभी इसमें छिपे रियल मीनिंग को जानने और समझने की कोशिश करी है कि, कैसे एक दिए की लौ से जीवन में शुभ या अशुभ हो सकता है?
तो आइए आज दीपावली पर्व के संदेश द्वारा दिए/ दीपक के रियल स्वरूप को समझते हैं:
मिट्टी का दिया माना मिट्टी का शरीर और उसमें आत्मारूपी बाती को जलाने के लिए घी या तेल के रूप में परमात्मा का ज्ञान चाहिए, जिससे वो आत्मा हमेशा जागृत रहेगी और अपने प्यार, शांति और खुशी के ओरिजिनल संस्कारो से अपने आस पास की आत्माओं को भी जागृत कर देगी। इसलिए जब भी जीवन में कोई भी तूफान आए और हमारे दिए की लौ थोड़ा टिमटिमाने लगे तो, हमें तुरंत कुछ क्षण रुक कर परमात्मा की याद में, उनके ज्ञान का घी डालकर अपनी लौ को वापस तेज कर देना है।
हम सभी अपने रिश्तों से बहुत सारी चाहनाएँ और एक्सपेक्टेशन रखते हैं जैसेकि; प्यार चाहिए, सम्मान चाहिए, शांति चाहिए, विश्वास चाहिए, आशाएँ पूरी होनी चाहिए, हर रिश्ते में हर किसी को कुछ ना कुछ चाहिए, लेकिन हम कभी भी देने की बात नहीं सोचते, तो अगर हर किसी को हर किसी से कुछ न कुछ चाहिए तो हम सभी लेने वालों की लाइन में खड़े हैं जिसमे कभी मिलेगा और कभी नहीं मिलेगा, इसलिए सबसे जरूरी बात है कि, हमें दूसरों पर डिपेंडेंट नहीं रहना है। और इसके लिए हर एक घर में एक दिया अर्थात दीपक चाहिए जो सबको देने वाला हो; इसके लिए हम हर रोज इन थॉट्स को रिवाइज कर सकते हैं;
मैं सबको देने वाली आत्मा हूं, मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए। मैं आत्मा, मेडिटेशन के अभ्यास द्वारा परम ज्योति यानी कि, परमात्मा से प्यार, शांति, शक्तियां और ज्ञान लेकर भरपूर होती हूं और अपने सभी रिश्तों में प्यार, शांति, शक्ति, ज्ञान और सम्मान देती हूं। सबको देती हूं और हमेशा देती हूं जिससे उनकी आत्मा रूपी लौ सदा जलती रहे और हमारे जीवन में सब शुभ ही शुभ होता रहे ।
तो हमेशा याद रखें कि, हर एक घर में एक दिया बहुत जरूरी है और जब यह एक दिया जलता है, जागृत होता है तो, यह अपने आस पास की सभी आत्माओं को भी जागृत करता है। इस प्रकार से एक दिए से दूसरा दिया जलता जाता है और दीपमाला बनती जाती है।
इन्हीं सही अर्थों के साथ हम अपने दिलों में, अपने घरों में और इस सृष्टि पर सच्ची सच्ची दीपावली मना सकते हैं।
दीपावली पर्व से जुड़ी विशेष रीतियों के बारे में जानने की श्रृंखला में हमने जाना कि, कैसे “दिया” माना देने वाली आत्मा, जिसकी ज्योत जगी हुई है, वह भरपूर है, उसे किसी से कुछ नहीं चाहिए यानि जीवन में सब शुभ ही शुभ है।
आइए, अब दीपावली पर्व वा अन्य पूजन की शुभ शुरुआत करते हुए बनाए जाने वाले “स्वास्तिक चिन्ह“ के आध्यात्मिक महत्व को समझते हैं। हम सभी दीपावली के दिन स्वास्तिक बनाते हैं और श्री लक्ष्मी जी का आह्वान और गणेश-लक्ष्मी का पूजन करते हैं।
स्वास्तिक का सही आध्यात्मिक अर्थ है अस्तित्व, जो कि शुभ आत्मा की यात्रा को दर्शाता है। स्वास्तिक की चार भुजाएं चार युगों के बारे में बताती हैं कि, पहले आत्मा कहां थी, अभी कहां है और आगे कहां जाना है। तो अगर हम देखें तो स्वास्तिक का पहला भाग एक होराइजंटल लाइन है जो देने का भाव दर्शाती है जैसे हाथ देने की मुद्रा में होते हैं। यह सतयुग को रिप्रेजेंट करता है जिसे हम स्वर्ग, पैराडाइज, जन्नत, बहिश्त आदि नामों से भी जानते हैं। इस युग में सभी आत्माएं भरपूर थी, उनकी ज्योत जगी हुई थी, वह सबको दुआएं देने वाली थी।
सतयुग के बाद आता है त्रेता युग; जिसमें स्वास्तिक की रेखा नीचे की ओर जाती है जिसका अर्थ है, आत्मा की शक्ति थोड़ी थोड़ी कम होना शुरू हो गई है।
उसके बाद द्वापर युग में, स्वास्तिक की रेखा वा हाथ का आकार मांगने की मुद्रा में आ गया, जिसमें आत्मा भूल गई कि वह भरपूर है। वह जो सब को देने वाली आत्मा थी, अब उसने दूसरों से मांगना शुरू कर दिया है।
और आखिर में कलयुग माना; जब मांगने के बाद भी नहीं मिला तो, स्वास्तिक का हाथ ऊपर की ओर चला जाता है यानि मारने की मुद्रा में आ जाता है तब शुरू होता है कलह क्लेश का युग।
इस तरह से हमने स्वास्तिक के सही अर्थ को समझा और जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, आज घोर कलयुग वा अंधकार का समय चल रहा है जिसके बाद सतयुगी सवेरा आना ही है।
भारत के कुछ क्षेत्रों में, दीपावली का पर्व नए साल के रूप में भी मनाया जाता है। तो जब हम अपने रियल अस्तित्व को जान जाते हैं, आत्मा जागृत हो जाती है तो हमें सभी को नए साल के साथ साथ नए युग की दुआएं या शुभकामनाएं देनी चाहिए क्योंकि, ऐसे ही हम इस सृष्टि पर सतयुग ला सकते हैं क्योंकि, हम मन और बुद्धि से सबको देने वाली आत्माएं हैं जिससे सभी के संस्कार बदल जाएंगे और सृष्टि पर एक नया सतयुगी सवेरा आएगा।
दीपावली पर्व का एक और सुंदर रिचुअल है; श्री लक्ष्मी का आह्वान। श्री लक्ष्मी उस आत्मा को दर्शाती है, जिसका लक्ष्य है सर्व को सदा देने का और स्वयं में सदा भरपूर रह औरों को संतुष्ट करने का। अगर आज हम सभी अपनी चेकिंग करें तो पाएंगे कि, हमारे जीवन में सारी भौतिक सुख सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं असंतुष्टता का एहसास है क्योंकि हम सभी मांगने वालों की या “चाहिए” की लाइन में खड़े हैं। जब तक हम देने वाले की लाइन में नहीं आएंगे, हमारे जीवन में संतुष्टता और खुशी नहीं आ पाएगी। इसलिए इस दीपावली स्वयं के अंदर लक्ष्मी के यथार्थ अर्थ को धारण कर अपने जीवन में सुख, शांति, संपन्नता का आह्वान करें ।
श्री गणेश बुद्धि के देवता माने जाते हैं। दीपावली पर श्री लक्ष्मी के साथ-साथ श्री गणेश का पूजन बड़े प्यार से किया जाता है जिससे हमें प्रेरणा मिलती है कि संपन्नता की देवी श्री लक्ष्मी का आह्वान करने से प्राप्त हुई धन संपत्ति को “बुद्धि के देवता गणेश जी“ की मदद से सुबुद्धि और सदविवेक के साथ यूज़ करना है।
इस प्रकार, अपने हर कार्य की शुरुआत स्वास्तिक बनाकर, उसके अर्थ को समझकर फिर श्री लक्ष्मी एवं श्री गणेश का आह्वान करें, तो हम सब देने वाली जागृत आत्माओं से जीवन सतयुगी बन जाएगा। और हम इस सृष्टि पर नए साल के साथ-साथ, नए युग, नई सृष्टि की रचना भी कर पाएंगे।
आइए, दीपावली की इन शुभ घड़ियों में मिठाईयां बनाने, खाने और खिलाने के रियल अर्थ को समझते हैं
दीपावली के स्नेह मिलन के समय परिवार के हर सदस्य का मुख मिठाई से मीठा किया जाता है। दीपावली में मिठाई खिलाना इतना जरूरी क्यों होता है? यह किस बात को दर्शाता है? मिठाई का यथार्थ अर्थ है मीठे बोल। वह बोल जिनमे सुख, सम्मान और स्नेह की मिठास हो। जिससे हमारा और सामने वाले का मन मीठा हो जाए। तो इस दीपावली क्यों नहीं किसी की भी गलती पर भी उन्हें प्यार से समझाएं? लेकिन चेक करें कभी कभी मीठे शब्दों के पीछे कमेंट या टॉन्ट करने की नेगेटिव एनर्जी होती है जो सामने वाले को दुखी कर देती है। इसलिए मिठाई खिलाने के साथ साथ सबके लिए दिल से, मन से मीठे बोल बोलें।
पहले के जमाने में लोग अपने अपने घरों में, बड़े प्यार से परमात्मा की याद में मिठाई बनाते थे, जिसमें परमात्मा की याद, प्यार, शांति और शक्ति होती थी, जो खाने वाले को भी परमात्मा के इन गुणों से भरपूर कर देती थी। हर आत्मा को आज के समय में इन शक्तियों की चाह है। तो इस दीपावली आप अपने प्रियजनों, दोस्तों और संबंधियों को सिर्फ मिठाई नहीं खिलाएं, बल्कि उन्हें परमात्मा की याद में बना हुआ मिठाई रूपी प्रसाद खिलाएं जिससे उनका मुख भी मीठा हो और उन आत्माओं को मीठा बनने की शक्ति मिले क्योंकि परमात्मा के ज्ञान और शक्ति से आत्माएं मीठी बन सकती हैं।
इस दीपावली अपने घर में परमात्मा की याद में “दिलखुश मिठाई” बनाएं और सर्व को बड़े प्यार से खिलाएं जो हर दिल को परमात्म शक्तियों की प्राप्ति की ख़ुशी से भरपूर कर दे और पूरी सृष्टि पर खुशहाली छा जाए।
दीपावली के इस प्यारे से त्यौहार पर हम घर की सफाई के साथ साथ मन की सफाई करते हैं, नए समान लाने के साथ साथ, नए संस्कार भी खुद में धारण करते हैं और इसके साथ ही दीपावली में बड़े प्यार और भावना से एक दूसरे को गिफ्ट भी देते हैं।
दीपावली पर गिफ्ट देने की रस्म क्यों है?
दीपावली पर गिफ्ट देना प्यार से भरपूर सात्विक भाव को दर्शाता है जिसके द्वारा हम अपनी शुभ भावनाएं और शुभ कामनाएं दुआओं के रूप में देते हैं। भावनाओं को दर्शाने के लिए हमने बड़े प्यार से, चाव से स्थूल गिफ्ट का भी लेन देन करते हैं जिसमें प्यार और स्नेह की मिठास और अपनेपन की भावना होती है। और यह हम सब का अनुभव है के यह दिल की भावना ही हर गिफ्ट को सुन्दर और विशेष बनती है।
परन्तु कई बार ना चाहते हुए भी हमारा ध्यान गिफ्ट के रूप में स्नेह भरे प्रेम की भावना के बदले गिफ्ट के प्राइज और उसके साइज की तरफ चला जाता है जिसके कारण वह गिफ्ट प्रेम का नहीं परन्तु मजबूरी का भाव उत्पन करता है।
इस दीपावली करें एक नई पहल
आइए इस दीपावली किसी स्थूल चीजों का लेन देन न करके केवल दिल की शुभभावनाओ का आदान प्रदान कर एक प्यारी और मीठी सी शुरुआत करें और ये केवल किसी विशेष दिन नहीं बल्कि सदा के लिए हो। भले ही किसी का व्यवहार कैसा भी हो, पर हमारे दिल में उनके लिए दुआएं और शुभ कामनाएं हों। क्योंकि सबसे पहले यह भाव हमारे दिल को छूकर सामने वाले के दिल तक पहुंचते हैं और साथ ही पूरे वायुमंडल में भी प्यार के प्रकंपन फैलाते हैं। आएं इस सुंदर अहसास के साथ सही मायने में सच्ची सच्ची दीपावली मनाएं।
दीपावली पर घर के कोने कोने की सफाई होती है और सफाई के बाद घर को नई और सुन्दर चीज़ों से सजाया जाता है। दीपावली के बाद हर घर की रौनक देखने लायक होती है। लेकिन क्या इस दीपावली हम मन की भी इसी तरह से चेकिंग कर रहे हैं के वो भी स्वच्छ बना के नहीं? देखा जाता है जो बातें हमे लगा था हम भूल चुके हैं, पर दुबारा चेकिंग करने पर समझ आता है के कुछ बातों को अभी भी पकड़ा हुआ हैं।
क्योंकि जिस दिन वह बात हुई थी हमने कहा था मैं यह बात कभी नहीं भूलूंगी। मना वह बात और उससे जुड़ा हुआ हमारा अनुभव अभी हमारे मन से गया नहीं है। मन उस बात को उस इमोशन को वैसे ही फील कर रहा है तभी तो उस गुस्से को या उस दर्द को आज भी वैसे ही महसूस कर रहे हैं जैसे आज की ही बात हो। इससे स्पष्ट है के वह बात मन में गहरे में बैठी है।
इसलिए दीपावली में सफाई के साथ नवीनता का महत्व हैं। जैसे आज जब हमारे घरों की सफाई होती है उसके बाद हम दीपावली पर कुछ नया ज़रूर खरीदते हैं। हर चीज़े हमें जो नई खरीदनी हैं हम दीपावली के समय ही खरीदते हैं। दीपावली के आने का इंतज़ार करते हैं। तो दीपावली में ऐसा क्या नया हैं जो हमें हर नया समान दीपावली पर ही खरीदनी होगी? क्योंकि जब सफाई होगी तो नवीनता आनी ही आनी हैं।
उसी तरह जैसे जैसे हम मन की सफाई करना शुरू करते हैं आत्मा के पुराने संस्कार खत्म होते जाते हैं और जब पुराने संस्कार खत्म होंगे तो नाते संस्कार इमर्ज होते जाएंगे। जैसे जैसे पुराना सोचने का तरीका छोड़ते जाएंगे नया सोचने का तरीका आना ही हैं। पुराने फीलिंग्स और अनुभवों को खाली करेंगे या मिटायेंगे तो उसकी जगह नई फीलिंग्स अपनी जगह बनाएंगी ही। जैसे आपने अपनी चेकिंग की और पुरानी बातों को निकला ऑटोमेटिकली वह बातें नई सोच नए नज़रिये से रिप्लेस होती जाती हैं।
जैसे की मानिये हमारे अंदर किसी के व्यवहार के कारण दुखी होने का संस्कार हैं या किसी कि भी कोई बात बहुत जल्दी बुरी लग जाती हैं। अब जब हमने सफाई की हमने कहा चलो कोई बात नहीं यह उनका संस्कार था। उन्होंने मेरे बारे में जो कहा वह मेरे बारे में नहीं था वह उनके संस्कार को दर्शाता हैं, वह उनकी मनोस्थिति को दर्शाता हैं। किसी के अंदर अगर हीनता का भाव हैं या इर्षा, अहंकार या निंदा जैसे दुःख दायी आदतें हैं, तो यह उनका संस्कार हैं, उनकी सोच और उनका जीवन जीने का तरीका हैं, इसमें मेरा कोई रोल नहीं है। अब जब हम उस मन में पड़ी हुई उस पुरानी फाइल को खोलकर दुबारा देखते हैं तो समझ में आता है वह अपने मनोस्थिति से बोल रहे थे और वह ऐसा क्यों कर रहे थे? क्योंकि उनका मन डिस्टर्ब था। और जब हमें महसूस हुआ के अंदर से वह इतने परेशान हैं तो हमारे मन में उनके प्रति करुणा और सहानुभूति जागृत हुई ना कि गुस्सा या घृणा।
इस तरह से हमने हमारे अंदर पुराने संस्कार को निकल नए संस्कार को जागृत किया। इन श्रेष्ट अनुभूतियों से जैसे की शांति, निःस्वार्थ प्यार निस्वार्थ स्वीकार भाव, शमा भाव, एकता, सहनशीलता, से आत्मा की ज्योत अब भुजेगी नहीं बल्कि अखंड जलेगी।
तो अगले कुछ दिन अपने साथ और समय बिताएं, और सोचें मुझे कोनसी नई आदत लानी है ? किस बात को बदलना हैं? कोनसी नवीनता लानी है? तो इस दीपावली हर चीज़ के साथ हर सोच, फीलिंग, बोल, व्यवहार , खान पीन नया हो, हमारा जीवन जीने का तरीका ही नया हो। क्योंकि यह सारे नए संस्कार ही नया सतयुगी संसार इस सृष्टि पर लाएंगे।
दीपों के पर्व दीपावली के बाद भाई दूज का प्यारा सा पर्व आता है जिसमें बहनें बड़े स्नेह से अपने भाईयों के मस्तक पर तिलक लगाती हैं। आइए जानते हैं कि तिलक लगाने के पीछे का भाव क्या है और इसे भृकुटी के बीच ही क्यों लगाते हैं?
जब हम आत्माओं ने परमात्मा के साथ जुड़कर अपनी आत्मा रूपी ज्योत जगा ली तो इस ज्योत को सदा स्मृति में रखने के लिए हम भृकुटि पर तिलक लगाते हैं क्योंकि यह आत्मा का निवास स्थान है, जिसे तीसरा नेत्र भी कहते हैं। इस प्रकार से अपनी सत्यता यानि आत्मिक स्मृति में टिकना ही टीका या तिलक लगाना है।
तो आज से जिनके साथ भी हम कार्य व्यवहार में आएं, स्वयं आत्मा होने के भान में रहकर उन्हें भी आत्मा देखें। सदा स्मृति में यह भाव रहे कि हम सब परमात्मा की संतान हैं और मैं आत्मा, आत्मा भाई से बात कर रही हूं, आत्मा भाई के साथ काम करती हूं। इस अहसास के साथ हमारा व्यवहार सदा मधुरता से भरा हुआ होगा और हर एक आत्मा के लिए हमारे मन से एक समान प्यार भरे विब्रेशन्स पैदा होंगे।
भाई दूज की इस प्यारी सी रस्म को एक नए आत्मिक अंदाज में आत्मिक स्मृति का टीका लगाते हुए मनाना है और जीवन भर इसी सत्य की स्मृति में टिके रहना है। इन मीठे भावों से सारे विश्व में एक धर्म, एक राज्य, एक भाषा वाली सतयुगी सृष्टि सजेगी और पूरा विश्व पुनः एक प्यारा सा परिवार बन जायेगा।
दीपावली पर व्यापारी जन एक बहुत सुंदर रस्म का पालन करते हैं, नए अकाउंट बुक को खोल और पुराने को क्लोज करने कि, जहां उस नए अकाउंट बुक की पूजा होती है और स्वस्तिक बनाया जाता है। ये हमें क्या याद दिलाता है? यह हमारे जो एक दो के साथ कार्मिक अकाउंट है उसको दर्शाता है।
चाहे किसी ने कुछ बोला या व्यवहार किया तो हमारा एक कार्मिक कनेक्शन बनता है जो ज्यादातर बहुत सुन्दर होता है परन्तु कभी कभी किसी आत्मा के साथ यही अकाउंट नेगेटिव बन जाता है जहाँ रिश्तों में तनाव आ जाता है और जहाँ कई प्रयास या मेहनत के बाद भी अकाउंट अर्थात कार्मिक अकाउंट ठीक नहीं हो पाता है। यह अकाउंट हमारे अंदर दर्द को पैदा है। और अगर काफी समय तक उसे ठीक ना किया गया तो वह दर्द बढ़ता जाता है।
इस नेगेटिव कार्मिक अकाउंट में नेगेटिव एनर्जी का संचालन होती है और यह नेगेटिव कार्मिक अकाउंट आत्मा के नेगेटिव कार्मिक कनेक्शन बन जाते हैं जो हमारे साथ वर्तमान में भी रहते हैं और जिस दिन आत्मा शरीर छोड़ती है उस दिन आगे भी साथ जाते हैं।
दीपावली पर बहुत आवश्यक है की हम हर रोज़ यह चेकिंग करें के मेरा हर आत्मा के साथ कार्मिक अकाउंट कैसा है? मतलब मेरी ओर से जाने वाली एनर्जी, जिस पर मेरा पूरा कंट्रोल है वह कैसी है? दूसरे से आने वाली एनर्जी हमारे कंट्रोल में नहीं है, क्योंकि दूसरे के कर्मों को कंट्रोल नहीं किया जा सकता। परन्तु अपने कार्मिक एकाउंट्स को चेक किया जा सकता है।
जिस भी आत्मा के साथ हमारा कार्मिक अकाउंट होता है वह आत्मा हमारे मन पर बहुत रहती है। और जब नेगेटिव कार्मिक अकाउंट होता है तो मन में उस आत्मा के प्रति एनर्जी अच्छी नहीं होती, हमारे मन में उनके लिए अच्छी फीलिंग्स नहीं आती , उनके व्यवहार को याद करके हमें बुरा अनुभव होता है। यह नेगेटिव कार्मिक एकाउंट्स है। और किसी के साथ तो हमने व्यवहार ही गलत कर दिया है या किसी से हमारी बातचीत ही बांध है, तो ऐसी आत्मा के साथ बहुत भरी कार्मिक अकाउंट बन गया है।
तो अब पुरानी बातों को खत्म कर नए कि शुरु वात करनी है और आज अपने कार्मिक एकाउंट्स को बदलना है। चाहे कितनी भी पुरानी बात हो और चाहे कितना भी भरी कार्मिक अकाउंट हो या कितनी भी भरी वह नेगेटिव एनर्जी थी, आज नए अकाउंट बुक को खोलने का समय है। नया कार्मिक अकाउंट अर्थात बीती हुई बात को, इमोशन को और अनुभवों को बिंदी लगाना या मन से निकलना।
दीपावली पर शुभ कर्म करने की रस्म हम सभी के घरों में है तो इस दीपावली कुछ दिनों के लिए मैडिटेशन में जब हम परमात्मा से जुड़ते है, किसी एक कार्मिक अकाउंट को ले लीजिये। मुझे इस दीपावली यह कार्मिक अकाउंट को समाप्त करना है। और उस एक आत्मा को रोज़ इमर्ज कीजिये। दिन के दो मिनट उस आत्मा के लिए रख उन्हें बहुत प्यार से मैसेज दीजिये
यह मैसेज हर रोज़ भेजना है ताकि उनके ऊपर भी लगी हुई चोट की भी हीलिंग शुरू हो जाये। नेगेटिव कर्मा हमारे तरफ से भी साफ़ हो जाए ओर उनके तरफ से भी हमारे दुआओं के कारण साफ़ हो जाए। इस विधि से शुभ दीपावली को मनाएं।
कार्मिक अकाउंट हमारे साथ आगे जाते है तो बहुत संभल कर हर कार्मिक अकाउंट का ध्यान देना है। कोई ऐसा कार्मिक अकाउंट मन में ना हो जो मेरे आज को भी भरी करें ओर मेरे अगले जन्म में भी भारीपन लाये। और फिर जीवन में कोई बात आये के लगे मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मेरे साथ जो भी होता है वह मेरे कार्मिक अकाउंट का एक हिस्सा है।
अपने साथ, मन के साथ, शरीर के साथ, लोगों के साथ और सृष्टि के साथ के कार्मिक अकाउंट को नया बनाये।
जब यह नए कार्मिक अकाउंट खुल जायेंगे तो सृष्टि पर सतयुग या दिवाली तो आनी ही है।
अपने दिन को बेहतर और तनाव मुक्त बनाने के लिए धारण करें सकारात्मक विचारों की अपनी दैनिक खुराक, सुंदर विचार और आत्म शक्ति का जवाब है आत्मा सशक्तिकरण ।
ज्वाइन पर क्लिक करने के बाद, आपको नियमित मेसेजिस प्राप्त करने के लिए व्हाट्सएप कम्युनिटी में शामिल किया जाएगा। कम्युनिटी के नियम के तहत किसी भी सदस्य को कम्युनिटी में शामिल हुए किसी अन्य सदस्य के बारे में पता नहीं चलेगा।