यात्रा
ब्रह्माकुमारीज संगठन की आध्यात्मिक यात्रा; साधारण रूप से शुरु होकर विश्व पटल पर छा जाने तक बहुत ही अनोखी रही है। आइए, इस विश्वव्यापी संगठन की शानदार, परंतु असाधारण और कठिन यात्रा के बारे में विस्तार से जानें।
ब्रह्माकुमारीज संगठन की आध्यात्मिक यात्रा; साधारण रूप से शुरु होकर विश्व पटल पर छा जाने तक बहुत ही अनोखी रही है। आइए, इस विश्वव्यापी संगठन की शानदार, परंतु असाधारण और कठिन यात्रा के बारे में विस्तार से जानें।
दादा लेखराज के पिता एक स्कूल मास्टर थे। हालांकि वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे, परंतु अपनी ईमानदारी और कड़ी मेहनत से जल्द ही वो भारत के अमीर व्यक्तियों में गिने जाने लगे। वैसे तो वे एक बहुत ही साधारण व्यक्ति थे, पर उनके अंदर कुछ अति विशिष्ट गुण थे। जैसे ही दादा की आयु 60 वर्ष की हुई, उनके जीवन में कुछ ऐसा घटित हुआ जिससे उनका पूरा जीवन ही परिवर्तित हो गया। उन्हें कई दैवीय साक्षात्कार हुए जिसने उनके जीवन की दिशा को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने स्वयं को एक ज्योति बिंदु प्रकाश; एक पवित्र आत्मा के रूप में अनुभव किया जोकि आनंद के सागर में डूबी हुई है। फिर उन्हें और भी कई साक्षात्कार हुए – जैसे कि विष्णु चतुर्भुज का, परमात्मा शिव (परमात्मा का एक ज्योति बिंदु प्रकाश) के रूप में अवतरण, वर्तमान दुनिया के विनाश का भयानक दृश्य और फिर नई दुनिया (स्वर्ग) की स्थापना का साक्षात्कार। यह सारी ही घटनाएं उनकी भौतिक शरीर की चेतना से परे थीं।
1935 से पहले
1935 से पहले
दादा लेखराज अपने परिवार के साथ
1935 में
साक्षात्कारों द्वारा दादा लेखराज के जीवन में बदलाव
1935 में
दादा लेखराज को हुए साक्षात्कारों का चित्रण
परमात्मा की गुप्त आवाज़ सुनने और उनके अवतरण के राज़ जानने के बाद, दादा ने अपने इन अनुभवों को मित्रों और संबंधियों के साथ साझा करना प्रारंभ कर दिया। उनके इन अनुभवों को सुनकर सभी ने पवित्र जीवन जीना शुरू कर दिया; और इस तरह से एक विशेष आध्यात्मिक सभा की शुरुआत हुई, जिसका नाम “ओम मंडली” पड़ा। इस मंडली में सभी व्यक्ति मिलकर ओम मंत्र का जाप करते थे और ऐसा करते हुए इससे उत्पन्न प्यार, आनंद और शक्ति की तरंगे सभा में उपस्थित सभी मनुष्य आत्माओं को महसूस होती थीं। वर्ष 1937 के अक्टूबर माह में यह संस्था प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के नाम से औपचारिक तौर पर स्थापित हुई और आठ युवा महिलाओं की समिति का एक आध्यात्मिक ट्रस्ट गठित किया गया, जिसकी प्रमुख ओम राधे थीं। ओम राधे ने संस्था के प्रशासन का कार्यभार संभाला और अग्रणी शिक्षक बन गईं। दादा जिन्हें प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से जाना जाता है, ने अपनी सारी संपत्ति इस ट्रस्ट के नाम करने के बाद स्वयं एक सलाहकार की भूमिका निभाई।
दादा लेखराज ओम मंडली के एक सत्संग के दौरान
युवा बच्चों के लिए आध्यात्मिक छात्रावास
1936
युवा बच्चों के लिए आध्यात्मिक छात्रावास
1936
ब्रह्मा बाबा द्वारा स्थापित “ओम मंडली” संस्था, हैदराबाद (सिंध) अब पाकिस्तान
उस समय, समुदाय का एक समूह ओम मंडली के विरोध में था और किसी भी कीमत पर मंडली के संचालन को बंद करना चाहता था। इस समूह को ओम विरोधी मंडली के नाम से जाना जाता था। इस समूह के लोग मंडली के परिसर में धरना देने लगे और सदस्यों को प्रवेश करने से रोकने लगे। इसके कारण काफी नुकसान भी हुआ और समुदाय में उथल पुथल मच गई। जिसके चलते भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया, इतना ही नहीं संस्था के आवास में आग लगाने के लिए खिड़कियों से मशालें भी फेंकी गईं। धरने के कारण कानूनी आपराधिक कार्यवाही हुईं। इन सब के चलते ओम मंडली ने हैदराबाद छोड़ने का निश्चय किया और अपनी गतिविधियों को करांची शहर में स्थानांतरित कर दिया। बाद में, सरकार ने ओम मंडली की गतिविधियों की जांच करने के लिए एक न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) नियुक्त किया। ट्रिब्यूनल द्वारा उन्हें निर्दोष घोषित किया गया, लेकिन जिन कानूनी और सामाजिक कठिनाइयों का उन्हें सामना करना पड़ा, उन सभी ने संस्था के संकल्प को और अधिक मजबूत करने का कार्य किया। यहां तक कि, ओम विरोधी मंडली ने इसके संस्थापक ब्रह्मा बाबा की हत्या करने का भी असफल प्रयास किया।
1938
ओम निवास, हैदराबाद, सिंध में ओम विरोधी मंडली द्वारा धरना (1938)
ओम निवास के सामने सिंध के मुखिया और चौधरी समेत कई लोग ओम मंडली के खिलाफ धरने के दौरान रास्ता रोककर खड़े हुए हैं। साथ ही ओम मंडली के छोटे बच्चे और अन्य सदस्य भी धरने के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं।
1938
धरना स्थल का नजारा
1938
हैदराबाद, सिंध में ‘ओम हाई स्कूल‘। ब्रह्मा बाबा द्वारा बच्चों के लिए खोले गए बोर्डिंग स्कूल में दादी चंद्रमणि उन्हें पढ़ा रही हैं।
1938
सिंध, पाकिस्तान में संस्था की प्रॉपर्टी
करांची (अब पाकिस्तान) में संस्था के सभी सदस्य गहन योग और आध्यात्मिक अध्ययन में अपना अधिकांश समय व्यतीत करने लगे। लगभग 300 की संख्या, जिसमें पुरुष, महिलाएं और बच्चे जिनकी उम्र 8 से 60 वर्ष के बीच थी, सभी शामिल थे। उनका प्रयास स्वयं को और स्वयं के वास्तविक स्वरूप को समझना था। वे इसके लिए तीव्रता से आत्म चेतना का अभ्यास करने लगे। इसके परिणाम स्वरुप उन्हें परमात्मा, आत्मा और परमात्मा के बीच के संबंध के विषय में गहरी अनुभूतियां हुईं। ईश्वरीय ज्ञान का अध्ययन और योग के अभ्यास द्वारा वे पवित्रता, शांति और आनंद के पूर्ण अवतार बन गए। फिर भारत – पाकिस्तान के विभाजन के पश्चात, 1950 में 14 वर्षों तक पूर्णतयः दुनियावी बातों से अलग थलग रहने के बाद संस्था, भारत के माउंट आबू में स्थानांतरित हो गई। यही स्थान आज संस्था द्वारा योग के गहन अनुभवों और ईश्वरीय ज्ञान प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण स्थान बना।
1950
संस्था का पाकिस्तान से माउंट आबू में स्थानांतरण
1940s
कराची (पाकिस्तान) में क्लिफ़टन बीच पर बच्चे
1950
लगभग 300 लोगों ने आत्म विकास, आध्यात्मिक अध्ययन और योग अभ्यास के लिए 14 वर्ष करांची में व्यतीत किए
1950
बी के समूह, आबू रोड से माउंट आबू तक की यात्रा के लिए तैयार
गहरे आत्म बोध और परमात्म प्राप्ति से खुद को सशक्त बनाने के बाद युवा ब्रह्माकुमारी बहनें एक या दो के समूहों में; जिनका दुनियावी संसाधनों का ज्ञान न के बराबर था, परंतु अपनी मासूमियत की धन संपदा, ईश्वरीय अनुभव और पवित्रता से भरपूर होकर, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में परमात्मा का संदेश देने निकल पड़ीं। सर्वप्रथम उन्होंने दिल्ली में वर्ष 1952-53 में ब्रह्मकुमारीज केंद्र खोला। उसके बाद वे कानपुर, लखनऊ और मेरठ भी गईं। और थोड़े समय पश्चात सहारनपुर, अमृतसर, पटियाला, अंबाला, बेंगलुरु, मुंबई, दिल्ली क्षेत्रों आदि में भी केंद्र स्थापित किए गए। इसके अलावा 1954 में, एक प्रतिनिधिमंडल कुछ बहनों और भाइयों के साथ “विश्व धार्मिक सम्मेलन” में भाग लेने के लिए जापान गया और वापस लौटते समय हांगकांग, मलेशिया, इंडोनेशिया और अन्य दूसरे देशों में भी परमात्म ज्ञान का संदेश देते हुए वापस लौटा। इस प्रकार से ईश्वरीय सेवा का आध्यात्मिक बीज भारत देश के बाहर बोया गया। अंततः वर्ष 1959 के अंत तक, ब्रह्मकुमारीज के कुल 19 सेवा केंद्र स्थापित किए जा चुके थे, जिन्हें इस संस्था की नई पौध कहना सर्वथा उचित है।
1954
जापान में आयोजित विश्व धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहला बीके प्रतिनिधिमंडल विदेश गया। ऊपर की लाइन में – जापान में दादी प्रकाशमणि और दादी रतन मोहिनी
1950s
माउंट आबू में ब्रह्मा बाबा और मम्मा अन्य बीके भाई बहनों के साथ योगाभ्यास करते हुए
1950s
बीके का पहला समूह “मानवता की सेवा” के लिए निकला। बंबई, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, अमृतसर, पटियाला और बैंगलोर शहर में केंद्र खोले गए
1954
जापान में विश्व धार्मिक सम्मेलन में दादी प्रकाशमणि और दादी रतनमोहिनी
यह दशक दो असाधारण महान आत्माओं के उत्थान का साक्षी रहा है। उनमें से एक- ओम राधे, जिन्हें प्यार से सभी मम्मा कहते थे। जो ब्रह्माकुमारीज की पहली प्रशासनिक प्रमुख थीं। मम्मा 24 जून, 1965 में अपने नश्वर शरीर को त्यागकर अव्यक्त वतनवासी हुईं। उन्होंने अपनी युवावस्था की परवाह किए बिना साफ और सच्चे दिल से, पूरी निष्ठा और समर्पण भाव के साथ न सिर्फ संगठन की सेवा की, बल्कि उसे कायम भी रखा। सभी ब्रह्मा वत्स उन्हें जगतमाता “मातेश्वरी जगदम्बा सरस्वती” के रूप में सम्मान देते हैं।
इसके पश्चात, 18 जनवरी 1969 को प्रजापिता ब्रह्मा ने पूर्णता की अंतिम अवस्था को प्राप्त किया। वे सर्वगुण संपन्न, गुणों में परमात्मा की छवि समान प्रथम संपूर्ण मनुष्य बने। इसके बाद “दादी प्रकाशमणि” को ब्रह्माकुमारीज़ का मुख्य प्रशासनिक प्रमुख नियुक्त किया गया। उनके असीम उत्साह, उदारता की भावना और भविष्य के प्रति तीक्ष्ण दृष्टिकोण के द्वारा संगठन ने वैश्विक विकास की ऊंचाइयों को छुआ। वर्ष 1969 तक, दुनिया भर में संगठन के 125 सेवा केंद्र स्थापित हो चुके थे, जहां कई लोगों ने राजयोग को जीवन जीने के तरीके के रूप में अपनाया।
1965
24 जून, 1965 को मातेश्वरी जगदम्बा अव्यक्त हुईं
1960s
ब्रह्मा बाबा और मम्मा अन्य भाई-बहनों के साथ
1968
“वर्ल्ड रिन्यूअल चेरिटेबल ट्रस्ट” चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत हुआ
Jan 1969
18 जनवरी 1969 को प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने अपना दैहिक शरीर त्यागा
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय एक ऐसी अनोखी संस्था है जिसका मार्गदर्शन और संचालन स्वयं परमपिता परमात्मा द्वारा किया जाता है। विश्व भर के कई आध्यात्मिक संगठन उनके संस्थापकों के स्वर्गवासी हो जाने के बाद अवनति को प्राप्त हो जाते हैं परंतु ब्रह्माकुमारीज संगठन इस मायने में अद्वितीय है क्योंकि इसके संस्थापक “ब्रह्मा बाबा” के निधन के बाद भी इस संस्था का प्रचार और प्रसार कई गुना बढ़कर पूरे विश्व पटल पर छा गया है। दादी जानकी जी ने अप्रैल 1974 में, अपनी गहन आध्यात्मिक अवस्था और परमात्मा के मार्गदर्शन अनुसार यूनाइटेड किंगडम में इस संस्था की आध्यात्मिक नींव डाली। आज लंदन इस आध्यात्मिक विश्वविद्यालय का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय है। साथ ही, विश्व के सभी महाद्वीपों में ब्रह्माकुमारीज केन्द्र प्रारम्भ किये गये। इस तरह से ब्रह्माकुमारीज़ संस्था संयुक्त राष्ट्र के गैर-सरकारी संगठनों का सदस्य बन गई। वर्ष 1978 में वैज्ञानिकों ने उत्सुकतावश दादी जानकी के मस्तिष्क में वायब्रेशन पैटर्न की जांच की, जिसमें दादी जानकी के दिमाग को ‘दुनिया का सबसे स्थिर दिमाग‘ घोषित किया गया था।
1974
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था का विदेश में पहला कदम
Early 1970s
भारत से बीके का एक उद्घाटन समूह विदेश में सेवाओं की शुरुआत करता है। बीके केंद्र लंदन और यूरोप, एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कई शहरों में शुरू किए गए।
1974
दादी जानकी जी ने भारत से लंदन जाकर अंतर्राष्ट्रीय सेवाओं की स्थापना की
1977
दादी प्रकाशमणि ने संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र का दौरा किया। अमेरिका में पहला बीके सेंटर स्थापित किया गया
1977
प्रथम राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली एवं माउंट आबू में आयोजित किया गया
1980 के दशक की शुरुआत में
लगभग 40 देशों में राजयोग केन्द्रों की स्थापना
1980
ब्रह्माकुमारीज यूनाइटेड नेशंस ऑफ़ पब्लिक इनफॉर्मेशन से संबद्ध हुई
1983
संयुक्त राष्ट्र का ECOSOC, संस्था को सामान्य परामर्शदात्री का दर्जा प्रदान करता है
1983
माउंट आबू में यूनिवर्सल पीस हॉल का उद्घाटन किया गया
1984
संस्था की आरई एवं आरएफ विंग की सेवाएं शुरू हुईं
1984
दादी प्रकाशमणि को संयुक्त राष्ट्र शांति पदक से सम्मानित किया गया
1985
भारत में अपनी ही तरह की पहली “अखिल भारतीय भारत एकता युवा पदयात्रा” का आयोजन किया गया
1986
‘मिलियन मिनट्स ऑफ पीस प्रोजेक्ट‘ लॉन्च किया गया, जिसमें एक अरब मिनट से अधिक समय के लिए शांति की अनुभूति की गई
1987
ब्रह्माकुमारीज़ को यूनिसेफ के साथ परामर्शदात्री का दर्जा प्राप्त हुआ
1987
ब्रह्माकुमारीज को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 7 शांति दूत पुरस्कारों से सम्मानित किया गया
1988
लंदन में संसद भवन से ‘बेहतर दुनिया के लिए वैश्विक सहयोग‘ परियोजना शुरू की गई
1989
भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और संयुक्त राष्ट्र के नेता माउंट आबू का दौरा करते हैं। साथ ही ‘अखिल भारतीय स्वास्थ्य जागरूकता अभियान’ शुरू किया गया
1991
माउंट आबू में ग्लोबल हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर की शुरूआत हुई
1992
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा दादी प्रकाशमणि को “डॉक्टर ऑफ लिटरेचर” की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया
1993
पहला अंतर्राष्ट्रीय रिट्रीट सेंटर, ग्लोबल रिट्रीट सेंटर, ऑक्सफोर्ड, इंग्लैंड में खोला गया
1993
दादी प्रकाशमणि को विश्व धर्म संसद द्वारा शिकागो में अध्यक्षीय भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया
1994
प्रजापिता ब्रह्मा का डाक टिकट भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय शंकर दयाल शर्मा द्वारा जारी किया गया
1995
माउंट आबू में ‘ज्ञान सरोवर, एकेडमी फॉर ए बेटर वर्ल्ड‘ का उद्घाटन किया गया
1999
माउंट आबू के शांतिवन में, 20 हजार से ज्यादा लोगों के लिए एक विशाल परिसर का निर्माण किया गया
1999
ब्रह्माकुमारीज का सबसे बड़ा रिट्रीट बेस, पीस विलेज, न्यूयॉर्क में खोला गया
2000
संयुक्त राष्ट्र ने शांति की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए ब्रह्माकुमारीज को ‘मैनिफेस्टो 2000 के लिए दूत‘ नामित किया
2000
‘ईश्वर अनुभूति ज्योतिर्लिंग रथयात्रा‘ के तहत 12 रथों ने कई स्थानों से माउंट आबू तक यात्रा की
2001
ओम शांति रिट्रीट सेंटर, भारत में दिल्ली शहर के पास खोला गया
2003 – 2005
भारत के 15 शहरों में, 50 हजार से लेकर 200000 लोगों को संबोधित करने वाले मेगा कार्यक्रम आयोजित किए गए
2004
हैदराबाद में शांति सरोवर रिट्रीट सेंटर की शुरूआत हुई
2006
हैदराबाद में शांति सरोवर रिट्रीट सेंटर की शुरूआत हुई
2006
भारत के युवाओं में अलख जगाने के लिए ‘स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा‘ का आयोजन किया गया
2006
ब्रिटेन में शांति पहल ‘जस्ट ए मिनट‘ शुरू की गई
2007
आबू रोड पर ‘राधा मोहन मेहरोत्रा ग्लोबल हॉस्पिटल ट्रॉमा सेंटर’ का शुभारंभ हुआ
2007
दादी प्रकाशमणि जी अव्यक्त हुए
2007
दादी जानकी जी ब्रह्माकुमारीज़ संस्था की प्रमुख बनीं
2007
बीके का पहला प्रतिनिधिमंडल, जापान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेश गया
2008
ग्रामीण स्वच्छता, स्वास्थ्य और यौगिक खेती को बढ़ावा देने के लिए ‘गोकुल गांव‘ राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया गया
2009
स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान ‘मेरा भारत, स्वस्थ भारत‘ शुरू हुआ
2009
ग्रेजुएट और पीजी पाठ्यक्रमों के लिए “वैल्यू एजूकेशन इन स्पिरिचुएलिटी” परियोजना शुरू की गई
2009
UNFCCC से मान्यता प्राप्त पर्यवेक्षक संगठन घोषित किया गया
2010
उन्नत सोच और स्वस्थ पर्यावरण के लिए ‘क्लीन द माइंड, ग्रीन द अर्थ‘ अभियान शुरू किया गया
2011
संगठन की प्लैटिनम जुबली (75 वर्ष) मुख्यालय और दुनिया भर के कई शहरों में मनाई गई
2011
24 घंटे का सामुदायिक एफएम रेडियो चैनल ‘रेडियो मधुबन‘ लॉन्च किया गया
2011
पीस ऑफ माइंड टीवी चैनल का प्रसारण शुरू हुआ
2012
मीडिया के माध्यम से आध्यात्मिक सेवाओं को बढ़ाने के लिए गॉडलीवुड स्टूडियो का निर्माण किया गया
2012
आबू रोड स्थित आनंद सरोवर परिसर ईश्वरीय सेवा के लिए खोला गया
2013
एक राष्ट्रव्यापी अभियान ‘मेरा भारत, नशा मुक्त भारत‘ शुरू किया गया
2013
एक राष्ट्रव्यापी अभियान “शांतिदूत युवा साइकिल यात्रा” शुरू की गई
2014
एक राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण अभियान ‘नारी सुरक्षा हमारी सुरक्षा‘ शुरू किया गया
2014
UNEP की संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा द्वारा पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया गया
2015
दादी जानकी जी को भारत सरकार द्वारा ‘स्वच्छ भारत मिशन‘ के राजदूतों में नामित किया गया
2015
नई दिल्ली में राष्ट्रीय अभियान ‘किसान सशक्तीकरण अभियान‘ शुरू किया गया
2016
दादी जानकी जी ने अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाई
2017
3 साल के लिए ‘मेरा भारत स्वर्णिम भारत‘, अखिल भारतीय प्रदर्शनी बस अभियान अहमदाबाद से शुरू किया गया
2017
माउंट आबू में ‘इंडिया वन सोलर थर्मल पावर प्लांट‘ चालू किया गया
2017
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था ने सफलतापूर्वक अपनी 80वीं वर्षगांठ मनाई
2009 – 2018
वैल्यू एजूकेशन पाठ्यक्रम के लिए 16 विश्वविद्यालयों और 7 कॉलेजों के साथ एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए गए
2018
पुणे में जगदम्बा भवन रिट्रीट सेंटर का उद्घाटन
2018
भारत सरकार के सहयोग से राष्ट्रव्यापी अभियान ‘स्वच्छता ही सेवा‘ आयोजित किया गया
2020
दादी जानकी जी अव्यक्त वतन वासी हुईं
अपने अथक परिश्रम, समर्पण, परमात्मा द्वारा निर्धारित आदर्शों के प्रति निष्ठावान रहकर मानवजाति का पालन पोषण और सदा सच्चाई और सफ़ाई की अवधारणा के साथ, दादी जानकी जी ने 2007 से 2020 तक मुख्य प्रशासनिक प्रमुख के रूप में संगठन का बहुत सफल नेतृत्व किया, दादी ने 104 वर्ष की आयु में, 27 मार्च 2020 को अपने नश्वर शरीर का त्याग किया।
वर्ष 1969 में, ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त वतनवासी होने के बाद, निराकार परमात्मा शिव और ब्रह्मा बाबा ने दादी गुलजार को विश्व सेवा कार्य अर्थ हेतु अपना साकार माध्यम चुना; जिन्होंने अपने दिव्य और अलौकिकता से भरपूर फरिश्ते स्वरूप व्यक्तित्व द्वारा संपूर्ण मानवजाति के लिए तन, मन से सेवाएं प्रदान की। उनके चेहरे पर परमात्म शक्तियों का प्रकाश और फरिश्ते समान चमक साफ झलकती थी। उन्होंने दादी जानकी जी के बाद 11 मार्च 2021 तक ब्रह्माकुमारीज के मुख्य प्रशासनिक प्रमुख की भूमिका भी निभाई, जिसके बाद वे अपनी अव्यक्त अवस्था को प्राप्त हुईं। वर्तमान में दादी रतनमोहिनी जी ब्रह्माकुमारीज की मुख्य प्रशासनिक प्रमुख हैं, जो 96 वर्ष की उम्र में भी अथक और अद्भुत तरीके से अपनी जिम्मेदारियों और सेवाओं का निर्वहन कर रही हैं। इससे पूर्व वह संगठन के लिए प्रतिबद्ध बहनों के प्रशिक्षण और उनकी नियुक्ति से संबंधित कार्य संभालती थीं।
वर्तमान में
ब्रह्माकुमारीज एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक आंदोलन है जो व्यक्तिगत परिवर्तन और विश्व नवीनीकरण के लिए समर्पित है। प्रजापिता ब्रह्मा बाबा द्वारा 1936 में हैदराबाद, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में स्थापित, ब्रह्माकुमारीज़ का विश्व के सभी महाद्वीपों और 137 से अधिक देशों में प्रसार है और एक अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन के रूप में कई क्षेत्रों में इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है। हालाँकि, इसकी वास्तविक प्रतिबद्धता व्यक्तियों को दुनिया के प्रति उनके दृष्टिकोण को भौतिकता से आध्यात्मिकता में बदलने में मदद करना है। साथ ही, यह शांति की गहरी सामूहिक चेतना और प्रत्येक आत्मा की व्यक्तिगत गरिमामय अवस्था का समर्थन करती है। हालाँकि समय के साथ-साथ सेवाओं के तरीकों में कुछ बदलाव आए हैं। ब्रह्माकुमारीज दुनिया के हर कोने में प्रत्येक व्यक्ति के लिए; एक परमात्मा-एक दुनिया का संदेश फैला रही हैं। आज, 130 से अधिक देशों में इस आध्यात्मिक विश्वविद्यालय की 8700 से अधिक शाखाएँ हैं।
2021
दादी गुलजार जी अव्यक्त वतन वासी हुईं
2021
दादी रतनमोहिनी जी को ब्रह्माकुमारीज़ का मुख्य प्रशासनिक प्रमुख नियुक्त किया गया
2021
भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा राजयोगिनी दादी जानकी जी की स्मृति में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया
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