महाशिवरात्रि - एक सार्वभौमिक पर्व

महाशिवरात्रि एक अत्यंत महत्वपूर्ण वृतांत का स्मरण उत्सव है। यह सारी सृष्टि की समस्त मनुष्य आत्माओं के परमपिता के दिव्य जन्म अथवा अवतरण का यादगार पर्व है इसलिए यह अन्य सभी जन्मोत्सव वा जयंतियों की तुलना में सर्वोत्कृष्ट है।

परमपिता शिव परमात्मा का दिव्य अवतरण कलयुग के अंत समय में विषय विकारों की कालिमा में लिपटे हुए और अज्ञानता की निद्रा में सोए हुए; मनुष्य मात्र को जगाने के लिए ही होता है। परमात्मा शिव संपूर्ण सृष्टि के पिता हैं इसलिए उनके “दिव्य एवं कल्याणकारी कर्तव्य” समूचे विश्व के लिए हैं। वे अपने तीन दिव्य कर्तव्यों क्रमशः नई पावन सृष्टि की स्थापना, पालना और पुरानी पतित सृष्टि से सर्व बुराइयों का विनाश करके, सभी मनुष्यों का कल्याण करते हैं और सर्व को गति और सद्गति प्रदान करते हैं।

Kaliyug mahashivratri

महाशिवरात्रि में "रात्रि" का महत्व

महाशिवरात्रि का पर्व, वर्ष के अंतिम मास; फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की 14वीं अंधेरी रात्रि को मनाया जाता है, जोकि इस सृष्टि चक्र के अंत में घोर अज्ञानता और अपवित्रता की महारात्रि है। हम सभी जानते हैं कि सभी देवी-देवताओं तथा महापुरुषों का जन्मदिन जयंती के रूप में मनाया जाता है जैसे, श्रीकृष्ण का जन्म घोर अंधियारी रात में हुआ था, फिर भी कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। परंतु सारी सृष्टि के रचयिता, सर्व के कल्याणकारी परमात्मा शिव के अवतरण दिवस ‘महाशिवरात्रि’ के साथ “रात्रि” शब्द जोड़ा जाता है जो अनेक रहस्यों को उजागर करता है। 

“रात्रि” अज्ञानता का सूचक है। साधारण तौर पर “रात्रि” अज्ञान, अंधकार, पाप, भ्रष्टाचार और तमोगुण की निशानी है। जिसमें मनुष्य रिश्ते-नाते, अलौकिकता भूल कर मानवीय मूल्यों को ताक पर रख देता है। ऐसे समय पर पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ समझे जाने वाले मनुष्यों में आसुरी प्रवृत्तियां भर जाती हैं और पूरी दुनिया में अत्याचार, भ्रष्टाचार, पापाचार और हिंसा का नामाचार हो जाता है। मनुष्य अज्ञानता के अंधकार के वश होकर काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार में लिप्त होकर विकर्म करना अपना परम कर्तव्य समझने लगता है।

रात्रि शब्द सृष्टि चक्र के द्वितीय भाग का भी परिचायक है। सृष्टि चक्र के प्रथम यानि आधे भाग, सतयुग और त्रेता युग को ब्रह्मा का दिन कहते हैं और दूसरे आधे भाग, द्वापर और कलयुग को ब्रह्मा की रात कहते हैं। अतः इस भावार्थ को लेकर द्वापर और कलयुग को रात्रि और सतयुग तथा त्रेता युग को दिन कहा गया है। अतः कलयुग के इसी तमोगुणी समय को दिन होते हुए भी रात की संज्ञा दी जाती है।

शिवरात्रि के अनेक रस्मों का आध्यात्मिक रहस्य

हमारे देश में हर वर्ष शिवरात्रि का पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन शिवभक्त शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेलपत्र, बेर, अक के फूल, भांग, धतूरा आदि चढ़ाते हैं और उपवास तथा रात्रि जागरण करते हैं। सबसे रोचक बात तो यह है कि शिव की पूजा अन्य सभी देवी-देवताओं की पूजा से बिलकुल अलग रस्मों द्वारा की जाती है। इन सब रस्मों का आध्यात्मिक रहस्य यह दर्शाता है कि शिव भोलेनाथ की मनुष्य आत्माओं से यही आशा है कि भांग, धतूरा और अक के फूल जैसे निरर्थक अवगुण; जो मनुष्य की मानवीयता को तार-तार कर रहे हैं उन्हें परमात्मा के ऊपर अर्पित कर, उनसे मिल रहे प्रेम, आनंद, सुख और शांति  के गुणों से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाएं।

आएं शिवरात्रि में की जाने वाली हर रस्म के आध्यात्मिक रहस्य को समझ अपने जीवन में अपना कर सच्ची सच्ची शिवरात्रि मनाएं।

Shiv mahashivratri

महाशिवरात्रि में "शिव" का महत्व

कलयुग के अंतिम चरण में जब मनुष्य धर्म भ्रष्ट और कर्म भ्रष्ट होकर तुच्क्ष बुद्धि बन जाता है, तब परमात्मा शिव संसार के कल्याण हेतु सभी मनुष्यों को दुख-दर्द, अशांति एवं विकारों के चंगुल से छुड़ाकर, ज्ञान की ज्योति और पवित्रता की किरणें बिखेर कर सुख-शांति, आनंद संपन्न मनुष्य में दिव्यता की पुनः स्थापना करते हैं। परमात्मा के अवतरण की दिव्य घटना परकाया प्रवेश द्वारा ऐसे समय पर घटती है। परमात्मा शिव के “दिव्य और अलौकिक जन्म” की पुनीत स्मृति में ही शिवरात्रि अर्थात् शिव जयंती का त्यौहार मनाया जाता है।

हम सभी सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव को अपने जीवन में आने वाली कठिनाईयों, पापों की क्षमा मांगने हेतु और अपनी मदद करने के लिए प्रार्थनाओं, भजनों और रीति-रिवाजों द्वारा पुकारते आए हैं। हम हर दिन उनकी पूजा-अर्चना करते हैं लेकिन क्या हम उनके यथार्थ स्वरूप को जानते हैं कि, उनका नाम, रूप, देश और कर्तव्य क्या हैं और इस धरा पर उनके अवतरण का समय कौन सा है?

भारत के कोने कोने में “शिव” के अनेकों मंदिर हैं, जिनमें शिव का प्रतीक शिवलिंग के रूप में स्थापित है। शिव को “स्वयंभू” भी कहा जाता है जिसका अभिप्राय है कि, वे स्वयं प्रकट होकर अपना यथार्थ परिचय देते हैं इसलिए उनका अवतरण होता है, जन्म नहीं। निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा का गुण और कर्तव्य वाचक नाम “शिव” है, वह परम चैतन्य शक्ति हैं और उन्हें सत् चित् आनंद स्वरूप कहते हैं। वे सदा शाश्वत हैं जो जीवन-मरण के चक्र से परे हैं और सभी गुणों के सागर हैं।

इस परिवर्तन की अंतिम बेला में देवों के देव महादेव; स्वयं परमपिता शिव परमात्मा अज्ञान निद्रा में सोए हुए मनुष्यों को ज्ञान और योगबल द्वारा मनुष्यों के दृष्टिकोण और सोच विचार को महान बनाने का दिव्य कर्त्तव्य करते हैं जिससे उनके जीवन में परिवर्तन आता है और वह दैहिक संबंधों को भूलकर आत्मिक संबंधों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं।

परमात्मा शिव के दिव्य कर्त्तव्य

परमात्मा शिव सारी सृष्टि के पिता होने के कारण उनके दिव्य एवं कल्याणकारी कर्तव्य भी समस्त विश्व के लिए होते हैं। परमात्मा का नाम, रूप, गुण और कर्म लौकिक मनुष्यों से भिन्न हैं। अतः उनके कर्त्तव्य भी लौकिक न होकर अलौकिक ही होने चाहिए। आइये परमात्मा के कई गुणों एवं कर्तव्यों में से कुछ को जानते हैं

Swarnim mahashivratri

शिवरात्रि : स्वर्णिम प्रभात का आगाज

सदियों से भारत वर्ष में मनाए जाने वाले पर्व अनेक ईश्वरीय और दैवीय घटनाओं के यादगार हैं। इनमें से कुछ ऐसे महापर्व होते हैं, जो सृष्टि की नई सुबह का आगाज़ करने वाले होते हैं।
 
“महाशिवरात्रि –  आत्मा और परमात्मा के मिलन का सुखद संयोग” – अज्ञान अंधकार की घोर रात्रि से निकाल कर सृष्टि परिवर्तन के द्वारा एक सुखद, सुजान सुबह के आने का  इशारा करता है। इस अभूतकाल को सृष्टि सृजन का महापर्व भी कहा जा सकता है क्योंकि महाशिवरात्रि बसंत ऋतु के शुभ आगमन का सूचक भी है। इस समय पशु – पक्षी, जीव – जन्तु, पेड़ – पौधे आदि अपने पुराने कलेवर को बदल कर नवीनता धारण करते हैं। पेड़ों की टहनियों में नई – नई कलियों, पत्तों और फूलों को पल्लवित होते देखा जा सकता है। हर तरफ नयापन, भरपूरता व खुशहाली होती है। इस समय धरती भी अपने गर्भ में सुगंधित पुष्पों को खिलाकर खुशहाली और सद्भावना का संदेश देती है। इससे स्पष्ट होता है के महाशिवरात्रि का यह कल्याणकारी समय पुरानी दुनिया के अंत और स्वणिंम प्रभात के आगाज़ का शुभ संदेश देता है।
 
इस कल्याणकारी कर्त्तव्य को करने हेतु इस समय जगत नियंता परमात्मा शिव बूढ़े नन्दी बैल अर्थात् साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करके इस पुरानी दुनिया के परिवर्तन का महान कार्य करने आते हैं। अज्ञानता की रात्रि को मिटाकर आध्यात्मिक ज्ञान और आध्यात्मिक शक्ति से स्वणिंम युग लाने का महान कार्य स्वयं भगवान शिव करते हैं। इसी का यादगार महाशिवरात्रि है और सतयुग / स्वणिॅम संसार की महिमा का ध्योतक  बसंत ॠतु है।

भारत में परमात्मा शिव के यादगार

केवल भारत ही नहीं विश्व के कोने-कोने में परमपिता शिव परमात्मा की यादगार मिलती है। चाहे चीन, मिस्र, जापान, यूनान सभी देशों में शिवलिंग की पूजा व ध्यान किसी न किसी रूप में किया गया है। भारतवर्ष में भी 12 ज्योतिर्लिंगम भी परमात्मा शिव की ही यादगार में स्थापित किए गए हैं। द्वाद्वश ज्योतिर्लिंग आज भी महान तीर्थ स्थान के रूप में माने जाते हैं। भारत के चारों कोनों में शिवलिंग की पूजा अवश्य ही होती है। उनके मंदिरों के जो नाम हैं वो भी गुणवाचक और कर्तव्यवाचक हैं। परमात्मा की महिमा के रूप में मंदिरों के नाम भी उसी अनुसार रखे हुए हैं। यदि जंगल को कलम और समुद्र को स्याही बना दिया जाए तो भी हम परमपिता परमात्मा की महिमा को लिख नहीं सकते हैं।

Gita mahashivratri

शिवरात्रि ही हीरे - तुल्य गीता जयंती

युगों – युगों से महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित गीता को शास्त्रों में सर्वोपरि माना गया है l श्रीमदभागवत गीता को जीवन जीने की कला सिखाने वाली और हर क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुँचाने वाला सर्वोत्तम ज्ञान – दर्शन कहा गया है शास्त्रों में वर्णित है की श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान दिया परन्तु यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि गीता ज्ञान की आवश्यकता इस घोर कलयुग की अंतिम वेला में है जब सारे विषय – विकार अपने चरम पर हैं इस अज्ञान – अंधकार के समय में ज्योति – स्वरूप परमात्मा शिव धरा पर अवितरित होकर सच्चा गीता ज्ञान सुनाते हैं 
 
इस घोर अज्ञान रात्रि के समय जब पृथ्वी पर सभी मानवीय मूल्यों का ह्रास हुआ है और अनाचार, अत्याचार, पापाचार की अति हुई है, सदाशिव परमात्मा धरती पर अवतरित होकर अज्ञान निद्रा में सोए हुए नर – नारियों का कल्याण करने के लिए श्रेष्ठ ज्ञान सुनाते हैं, जिसे शिव भगवानुवाच कहा जाता है
 
कल्याणकारी परमात्मा शिव कर्मों की गुहा गति का भेद बताने व मनुष्यों के उत्तम चरित्र निर्माण हेतु जो सर्वोत्तम शिक्षा अर्थात् सच्चा गीता ज्ञान सुनाते हैं जिससे सभी मनुष्य आत्माओं को श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा मिलती है और उनका जीवन सुखमय और शांतिमय बन जाता है। उस ज्ञान का नाम “गीता” अर्थात्‌ गाया हुआ है। उस ज्ञान को जिस ग्रंथ का रूप दिया गया, उसे ही श्रीमद्भगवद्गीता कहा गया है। परमपिता शिव परमात्मा द्वारा उच्चारित गीता ज्ञान हमें विषय  – विकारों से छुड़ाने की युक्ति बताकर हमारा जीवन कौड़ी से हीरे – तुल्य बनाता है इसलिए शिव के दिव्य अवतरण के दिन यानि शिव-रात्रि को  सच्ची – सच्ची “हीरे – तुल्य गीता जयंती” कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी
Shiv amantran

परमपिता शिव परमात्मा का सर्व प्रति ईश्वरीय निमंत्रण

पूरे भारत तथा विश्व भर में मनाए जाने वाले महाशिवरात्रि के इस पावन समय पर परमपिता शिव परमात्मा साधारण तन में अवतरित होकर, अपने अलौकिक कर्तव्यों द्वारा कलयुग की इस अंतिम बेला को परिवर्तित करने का श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं। यह सृष्टि के बदलाव का शुभ संकेत है। अतः परमात्मा शिव और शिवरात्रि के महापर्व को यथार्थ रूप से पहचान कर अपनी बुराइयों और विकारों को स्वाहा करें और दैवीय गुण धारण करके परमात्मा के नई दुनिया की स्थापना हेतु इस पुनीत और पावन कार्य के द्वारा स्वयं को लाभान्वित करें और उनसे जन्म-जन्मांतर के लिए अविनाशी सुख, शांति का अधिकार प्राप्त करें। 

जन जन के कल्याण हेतु परमात्मा शिव इस कलियुगी समय में श्रेष्ठ कर्म करने की प्रेरणा एवं ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा वर्त्तमान समय में दे रहे हैं। इस अंधकार के समय में जहां दुःख और अशांति सर्वत्र है, ऐसे समय में परमात्मा के साथ अपना बुद्धि योग लगा कर स्वयं को धन्य अनुभव करें इस क्षण की याद में ही कहा गया है “अभी नहीं तो कभी नहीं 

हमारे प्यारे परमात्मा शिव का सर्व आत्माओं के लिए ईश्वरीय निमंत्रण है कि, परमात्मा को पहचान कर अपने जीवन में दैवी गुणों का समावेश करें तथा इस शिवरात्रि प्राण प्यारे परमात्मा शिव के साथ सुन्दर मिलन मनाएं

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