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ईश्वर को जीवन अर्पण करने वाली - अनुभवगाथा

जिस पेड़ की जड़ें जितनी ज्यादा गहरी होती हैं, वो उतना ही ज्यादा मजबूत और टिकाऊ होता है। इसी प्रकार, किसी भी संगठन को चलाने वाले निमित्त व्यक्तियों की भी त्याग, तपस्या की जड़ें जितनी गहरी होती हैं, वह संगठन भी उतना ही शक्तिशाली, दीर्घजीवी और निर्विघ्न होता है। प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय इस अर्थ में एक अद्वितीय संगठन है। इस संगठन के एक-एक आधारमूर्त, आदि रत्न ऐसे ही तपस्वी हैं जिन्होंने अपने आप को, अपने त्याग को गुप्त रखते हुए, अथक होकर, निःस्वार्थ भाव से श्रीमत प्रमाण श्वास-श्वास से मानवता की आजीवन आध्यात्मिक सेवा की।

Dadi brijindra ji

आप बाबा की लौकिक पुत्रवधू थी। आपका लौकिक नाम राधिका था। पहले-पहले जब बाबा को साक्षात्कार हुए, शिवबाबा की प्रवेशता हुई तो वह सब दृश्य आपने अपनी आँखों से देखा। आप बड़ी रमणीकता से आँखों देखे वे सब दृश्य सुनाती थी। बाबा के अंग-संग रहने का सौभाग्य दादी को ही प्राप्त था।

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Bk kamlesh didi ji anubhav gatha

प्यारे बाबा ने कहा, “लौकिक दुनिया में बड़े आदमी से उनके समान पोजिशन (स्थिति) बनाकर मिलना होता है। इसी प्रकार, भगवान से मिलने के लिए भी उन जैसा पवित्र बनना होगा। जहाँ काम है वहाँ राम नहीं, जहाँ राम है वहाँ काम नहीं।” पवित्र जीवन से सम्बन्धित यह ज्ञान-बिन्दु मुझे बहुत मनभावन लगा।

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Dadi situ ji anubhav gatha

हमारी पालना ब्रह्मा बाबा ने बचपन से ऐसी की जो मैं फलक से कह सकती हूँ कि ऐसी किसी राजकुमारी की भी पालना नहीं हुई होगी। एक बार बाबा ने हमको कहा, आप लोगों को अपने हाथ से नये जूते भी सिलाई करने हैं। हम बहनें तो छोटी आयु वाली थीं, हमारे हाथ कोमल थे। हमने कहा, बाबा, हम तो छोटे हैं और जूते का तला तो बड़ा सख्त होता है, उसमें सूआ लगाना पड़ता है

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Didi manmohini anubhav gatha

दीदी, बाबा की ज्ञान-मुरली की मस्तानी थीं। ज्ञान सुनते-सुनते वे मस्त हो जाती थीं। बाबा ने जो भी कहा, उसको तुरन्त धारण कर अमल में लाती थीं। पवित्रता के कारण उनको बहुत सितम सहन करने पड़े।

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Mamma anubhavgatha

मम्मा की कितनी महिमा करें, वो तो है ही सरस्वती माँ। मम्मा में सतयुगी संस्कार इमर्ज रूप में देखे। बाबा की मुरली और मम्मा का सितार बजाता हुआ चित्र आप सबने भी देखा है। बाबा के गीत बड़े प्यार से गाती रही परंतु पुरुषार्थ में गुप्त रही इसलिए भक्तिमार्ग में भी सरस्वती (नदी) को गुप्त दिखाते हैं।

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Bk jagdish bhai anubhavgatha

प्रेम का दर्द होता है। प्रभु-प्रेम की यह आग बुझाये न बुझे। यह प्रेम की आग सताने वाली याद होती है। जिसको यह प्रेम की आग लग जाती है, फिर यह नहीं बुझती। प्रभु-प्रेम की आग सारी दुनियावी इच्छाओं को समाप्त कर देती है।

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Bk nirwair bhai ji anubhavgatha

मैंने मम्मा के साथ छह साल व बाबा के साथ दस साल व्यतीत किये। उस समय मैं भारतीय नौसेना में रेडियो इंजीनियर यानी इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर था। मेरे नौसेना के मित्रों ने मुझे आश्रम पर जाने के लिए राजी किया था। वहाँ बहनजी ने बहुत ही विवेकपूर्ण और प्रभावशाली तरीके से हमें समझाया। चार दिन बाद हमें योग करवाया। योग का अनुभव बहुत ही शक्तिशाली व सुखद था क्योंकि हम तुरंत फरिश्ता स्टेज में पहुँच गये थे।

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Bk aatmaprakash bhai ji anubhavgatha

मैं अपने को पद्मापद्म भाग्यशाली समझता हूँ कि विश्व की कोटों में कोऊ आत्माओं में मुझे भी सृष्टि के आदि पिता, साकार रचयिता, आदि देव, प्रजापिता ब्रह्मा के सानिध्य में रहने का परम श्रेष्ठ सुअवसर मिला।
सेवाओं में सब प्रकार से व्यस्त रहते हुए भी बाबा सदा अपने भविष्य स्वरूप के नशे में रहते थे। मैं कल क्या बनने वाला हूँ, यह जैसे बाबा के सामने हर क्षण प्रत्यक्ष रहता था।

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Dadi gulzar ji anubhav

आमतौर पर बड़े को छोटे के ऊपर अधिकार रखने की भावना होती है लेकिन ब्रह्मा बाबा की विशेषता यह देखी कि उनमें यह भावना बिल्कुल नहीं थी कि मैं बाप हूँ और यह बच्चा है, मैं बड़ा हूँ और यह छोटा है। यदि हमारे में से किसी से नुकसान हो जाता था तो वो थोड़ा मन में डरता था पर पिताश्री प्यार से बुलाकर कहते थे, बच्ची, पता है नुकसान क्यों हुआ? ज़रूर आपकी बुद्धि उस समय यहाँ-वहाँ होगी। बच्ची, जिस समय जो काम करती हो उस समय बुद्धि उस काम की तरफ होनी चाहिए, दूसरी बातें नहीं सोचना।

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Dadi hridaypushpa ji

एक बार मैं बड़े हॉल में सो रही थी परंतु प्रातः नींद नहीं खुली। मैं सपने में देख रही हूँ कि बाबा से लाइट की किरणें बड़े जोर से मेरी तरफ आ रही हैं, मैं इसी में मग्न थी। अचानक आँखें खुली तो देखा, बाबा और उनके साथ अन्य दो-तीन बहनें मेरे सामने खड़े, मुझे दृष्टि दे रहे थे। मैं शर्मसार हुई और उठकर चली गई। परंतु बाबा की उस कल्याणकारी दृष्टि ने मेरी आँखों से व्यर्थ नींद चुरा ली और मैं जागती ज्योति बन गई।

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Bk ramesh bhai ji anubhavgatha

हमने पिताश्री जी के जीवन में आलस्य या अन्य कोई भी विकार कभी नहीं देखे। उम्र में छोटा हो या बड़ा, सबके साथ वे ईश्वरीय प्रेम के आधार पर व्यवहार करते थे।इस विश्व विद्यालय के संचालन की बहुत भारी ज़िम्मेवारी उनके सिर पर थी फिर भी कभी भी वे किसी प्रकार के तनाव में नहीं आते थे और न ही किसी प्रकार की उत्तेजना उनकी वाणी या व्यवहार में दिखाई पड़ती थी।

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Dadi chandramani ji

आपको बाबा पंजाब की शेर कहते थे, आपकी भावनायें बहुत निश्छल थी। आप सदा गुणग्राही, निर्दोष वृत्ति वाली, सच्चे साफ दिल वाली निर्भय शेरनी थी। आपने पंजाब में सेवाओं की नींव डाली। आपकी पालना से अनेकानेक कुमारियाँ निकली जो पंजाब तथा भारत के अन्य कई प्रांतों में अपनी सेवायें दे रही हैं।

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Dadi gange ji

आपका अलौकिक नाम आत्मइन्द्रा दादी था। यज्ञ स्थापना के समय जब आप ज्ञान में आई तो बहुत कड़े बंधनों का सामना किया। लौकिक वालों ने आपको तालों में बंद रखा लेकिन एक प्रभु प्रीत में सब बंधनों को काटकर आप यज्ञ में समर्पित हो गई।

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Experience with dadi prakashmani ji

आपका प्रकाश तो विश्व के चारों कोनों में फैला हुआ है। बाबा के अव्यक्त होने के पश्चात् 1969 से आपने जिस प्रकार यज्ञ की वृद्धि की, मातृ स्नेह से सबकी पालना की, यज्ञ का प्रशासन जिस कुशलता के साथ संभाला, उसे तो कोई भी ब्रह्मावत्स भुला नहीं सकता। आप बाबा की अति दुलारी, सच्चाई और पवित्रता की प्रतिमूर्ति, कुमारों की कुमारका थी। आप शुरू से ही यज्ञ के प्रशासन में सदा आगे रही।

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Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा? मैंने कहा, मुरली में श्रीमत मिलती है, आप ही कहते हो कि मेरे हाथ में है किसका भाग्य बनाऊँ, किसका ना बनाऊँ।

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