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28th mar 2024 soul sustenence hindi

March 28, 2024

अपनी लिमिट्स (सीमाओं) और मेंटल बैरियर से ऊपर उठें (भाग 2)

मुश्किल हालातों से बाहर आने की हमारी सफ़लता दर में बड़ी गिरावट आने का महत्वपूर्ण कारण है; हमारे मन का उलझा हुआ होना या फिर सकारात्मक सोच की कमी। सकारात्मकता में यह कमी; हमारे मन की विभिन्न गतिविधियों के कारण होती है जो हमारी दृढ़ता की शक्ति या विश्वास की शक्ति के लिए अच्छा नहीं हैl क्या आप उस हाथी की कहानी जानते हैं जिसका एक पैर बचपन से ही एक छोटी सी रस्सी से बांध दिया गया था और उसे जहां चाहे वहां घूमने में आजादी की कमी महसूस होती थी। उस उम्र में हाथी को बांधने के लिए छोटी सी रस्सी ही काफी थी। जैसे-जैसे हाथी बड़ा होता गया, उसके पास रस्सी तोड़ने और स्वतंत्र रूप से घूमने की शारीरिक शक्ति आ गई, लेकिन उसने रस्सी तोड़ने के लिए अपनी ताकत का उपयोग नहीं किया और उसने उसी छोटी सी जगह तक अपने को सीमित रखा, जहां उसे बांधा जाता था, क्योंकि उसके दिमाग में यह फीड हो चुका था कि, वह रस्सी नहीं तोड़ सकता, यह मेंटल लिमिटेशन का बेस्ट एग्जाम्पल है। इसी तरह, हमारे मन का इनर रीजन वह स्थान है जहां हम अपने बचपन की स्टेज में आशावादी या सकारात्मकता की कमी के चलते अलग अलग प्रकार की रस्सियों से बंधे रहने के आदी हो गए हैं। जैसे कि मैं अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता या मैं उतना अच्छा नहीं हूं या मैं दूसरों जितना सफल नहीं हूं या मुझमें आत्मविश्वास की कमी है या मैं कम उपलब्धि हासिल करने वाला हूं। यह रस्सियाँ कुछ लोगों के अंदर इतनी मजबूत होती हैँ कि उनके बड़े होने पर जीवन में सक्सेस कई रूप में उनके सामने आती है और साथ ही, उन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यथोचित उपलब्धियाँ भी हासिल की होती हैं। लेकिन फिर भी इस समय जब वे इन रस्सियों को आसानी से तोड़ सकते थे, लेकिन उनकी आशावादिता की कमी के कारण, उनके सक्सेसफुल होने की फ्रीडम और बड़ी उपलब्धि हासिल करने की उनके पोटेंशियल को सीमित कर देती है जो उनके दोस्तों और करीबी लोगों द्वारा की जाती है।

 

अधिकांश मामलों में हमारी छिपी हुई क्षमताओं का कोई भी उपयोग न होना; एक कमज़ोर मानसिक स्थिति या कमजोर कॉन्शियसनेस को दर्शाता हैl हमारी यह कमजोरी कई वर्षों से, हमारे कमजोर विचारों और भावनाओं के रूप में भावनात्मक लिमिटेशन के कारण होती है। कई बार बिना ये जाने कि, कैसे हमारे हर एक संकल्प और भावना का नकारात्मक प्रभाव आस-पास की परिस्थितियों पर पड़ता है; हम उन विचारों और भावनाओं को व्यक्त कर देते हैं और ये नकारात्मक थॉट्स बार-बार हमारे पास वापस आते रहते हैंl अपनी लाइफ जर्नी में, ये लिमिट्स हम खुद ही बनाते हैं, नाकि ये समाज या हालात द्वारा पैदा की गई होती हैं, जैसा कि हममें से कुछ लोग सोचते या अनुभव करते हैंl हम अक्सर कहते हैं कि, मैं कमज़ोर महसूस करता हूँ क्यूंकि इस इंसान ने सारी जिंदगी मुझे दबायाl लेकिन वो डॉमिनेटेड पर्सन मेरे लो सेल्फ एस्टीम के लिए जिम्मेवार नहीं है, बल्कि हम स्वयं ही उसके शब्दों वा कर्मों के अनुरूप अपने मन में यह सब क्रिएट करते हैं कि, हमारी गलत सोच और गिरते हुए आत्म विश्वास के लिए वे जिम्मेदार हैं।

(कल जारी रहेगा )

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