Invoke 8 Power On This Navratri
Know Your 8 Power Festival of Navratri is just around the corner, it’s time to rejoice and invoke spirituality within us. Let’s understand the real
धरती के समस्त प्राणियों, वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं में जीवन-शक्ति का संचार करने वाली जल की बूंदे बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण जहर का कहर बनकर मानवता के अस्तित्व पर संकट का बादल बनकर छा रही है। आधुनिकता, विकास और अंतरिक्ष में बस्तियों को बसाने का सपना देखने वाला मनुष्य एक बहुत बड़ी भूल कर रहा है। यदि उसने जल के संरक्षण पर तुरंत ध्यान नहीं दिया, तो इस धरती से ही उसकी बस्तियाँ उजड़ जाएंगी और वह केवल इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जायेगा। अतः स्वच्छ पेयजल का संकट इस धरती पर मानव के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट है। इसके समाधान के लिए व्यक्तियों, संस्थाओं और सरकारों को तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है।
मनुष्य भौतिक उन्नति और वैज्ञानिक उपलब्धियों की चाहे जितनी भी ऊँचाइयों को स्पर्श कर ले, परन्तु जल के स्पर्श के बिना उसका जीवन अधूरा है। हम सभी को समझना यह आवश्यक है कि केवल जल संरक्षण और जल प्रबन्धन के द्वारा ही हम अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे इस संकट का सामना कर सकते हैं। नदियों और परम्परागत जल स्रोतों के क्षेत्रफल का निरन्तर घटता हुआ आकार मनुष्य के भविष्य पर आपदाओं के क्रूर प्रहार के रूप में दिखाई दे रहा है।
जल ही अमृत है
हज़ारों वर्षों से पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित अमृत की खोज में भटकता हुआ मनुष्य यह समझ नहीं सका है कि शुद्ध और प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होने वाला जल ही वह अमृत है, जो उसे जीवन शक्ति और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान कर क्रियाशील बनाता है। जल ही जीवन है परन्तु आधुनिकता और भौतिकता की अंधी दौड़ में दौड़ता हुआ मनुष्य इस परमतत्व के महानता और महत्व को भूलने के कारण ही स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियों और पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है।
मनुष्य अपनी लोभवृत्ति के कारण जल के प्राकृतिक और परम्परागत स्रोतों को नष्ट कर रहा है। अंधाधुन्ध शहरीकरण व औद्योगिकरण के कारण उत्पन्न होने वाले विषाक्त रासायनिक पदार्थ और जल-मल के कारण भूमिगत जल तथा नदियों का प्रदूषण निरंतर बढ़ रहा है, जिसके कारण स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता वर्तमान समय में एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। वैज्ञानिक तकनीक और विधियों से प्राप्त हो रहा पेयजल कभी भी शुद्ध एवं प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले पेयजल का विकल्प नहीं हो सकता है।
जल है तो कल है
मनुष्य का सुनहरा भविष्य चाँद पर निर्माण होने वाली बस्तियों में नहीं बल्कि शुद्ध प्राकृतिक पेयजल पर निर्भर है। शुद्ध पेयजल ही मानवता का स्वर्णिम भविष्य है। सतयुग वह दुनिया है, जहाँ शुद्ध और सात्विक जल प्राकृतिक स्रोतों के द्वारा उपलब्ध होता है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि मनुष्य के विचारों से उत्पन्न होने वाली पवित्र और सकारात्मक तरंगें जल को शुद्ध, स्वच्छ और सात्विक बनाती हैं।
जल संरक्षण से ही मनुष्य सम्पन्नता और आर्थिक समृद्धि को प्राप्त कर सकता है। इसलिए जल संरक्षण हमारी प्राथमिक और अनिवार्य आवश्यकता है। स्वच्छ जल से ही स्वच्छ हवा प्राप्त हो सकती है। जल मनुष्य मौन भाषा में कह रहा है ‘तुम मुझे संरक्षित करो, मैं तुम्हें जीवन दूँगा ।’
जल संरक्षण की आवश्यकता
रेगिस्तानों के बढ़ते हुए क्षेत्रफल को घटाकर धरती को हरा-भरा करने, नदियों की निरन्तर सिमटती जा रही जल धाराओं को विस्तार देने, भूमिगत जलस्तर को ऊंचा उठाने तथा मनुष्य के सुस्वास्थ्य, प्रगति और समृद्धि के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है।
बरसात के जल का संरक्षण करने के लिए अपने घर-आँगन, खेतों, खुले पड़े मैदानों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ बनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना सबसे बड़ी आवश्यकता और समय की पुकार है। व्यर्थ बहने वाले पानी को छोटे-छोटे बांध बनाकर रोकने से भूमिगत जलस्तर को ऊंचा उठाया जा सकता है। भू-गर्भ जल का उपयोग केवल न्यूनतम आवश्यकतानुसार करना भी जल संरक्षण की दिशा में एक सार्थक कदम है।
जल संरक्षण के प्रति जागरूकता
जल संरक्षण के लिए लोगों में विशेष जागरूकता उत्पन्न करने में राजयोग एवं अध्यात्म की विशेष भूमिका है। जल की पवित्रता और शुद्धता का भाव लोगों में उत्पन्न करने से जल संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है। लोगों के मन में जल के प्रति आस्था का भाव उत्पन्न करके जल संरक्षण के प्रति उन्हें सहज ढंग से जागरूक बनाया जा सकता है। मानव जीवन के अस्तित्व के लिए जल संरक्षण के प्रति जागरूकता अति महत्वपूर्ण है।
राजयोग मेडिटेशन द्वारा प्रकृति का शुद्धीकरण
राजयोग मेडिटेशन मनुष्य में आंतरिक चेतना, मानवीय मूल्यों तथा प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता वा जागृति के विकास का अत्यन्त प्रभावशाली माध्यम है। इसके अभ्यास से मनुष्य के अन्दर सात्विक वृत्तियों का विकास होता है, जिससे मनुष्य और प्रकृति के बीच चल रहे संघर्ष और बढ़ती दूरी की भावना समाप्त होती है। वास्तव में, प्रकृति और अध्यात्म में अत्यन्त गहरा सम्बन्ध है।
वैज्ञानिक शोधों द्वारा यह प्रमाणित तथ्य है कि राजयोग के अभ्यास से उत्पन्न शक्तिशाली, सकारात्मक विचार तरंगें वायुमण्डल तथा प्रकृति पर गहरा प्रभाव डालती है। इससे पौधों तथा फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा ज़हरीले रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों पर निर्भरता पूर्णतः समाप्त हो जाती है। इस कारण प्रत्यक्ष रूप से जल और भूमि दोनों का संरक्षण और संवर्द्धन होता है।
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था द्वारा जल संरक्षण में योगदान
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के अन्तर्राष्ट्रीय मुख्यालय शांतिवन, ज्ञान सरोवर सहित अनेक स्थानों पर जल संरक्षण के लिए इको-फ्रेन्डली सिस्टम का निर्माण किया गया है। शांतिवन परिसर में भूमिगत जलस्तर को बनाये रखने के लिए 32 लाख लीटर जल को स्टोरेज करने की व्यवस्था की गई है तथा चेन फिल्टर विधि से 8 लाख लीटर जल का शुद्धीकरण किया जाता है और प्रयोग किए गए जल को रिसाइकिल विधि से पुनः स्वच्छ बनाकर पौधों की सिंचाई करके परिसर को हरा-भरा बनाया जाता है।
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य देशों द्वारा जल और प्रकृति के संरक्षण पर आयोजित सम्मेलनों, सेमिनारों और अभियानों में नियमित रूप से भाग लेती है। यहां युवाओं को जीवन मूल्यों के साथ- साथ जल और प्रकृति के संरक्षण की शिक्षा दी जाती है तथा ऑनलाइन कोर्स भी कराया जाता है। ब्रह्माकुमारीज़ की राजयोग शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (Rajyoga Education & Research Foundation) का ग्रामीण विकास प्रभाग इस दिशा में सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर रहा है।
जल – जन अभियान
मनुष्य तथा मनुष्यता को बचाने के लिए भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय तथा ब्रह्माकुमारीज़ संस्था के द्वारा संयुक्त रूप से संचालित जल-जन अभियान, जल संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। लोगों में जल एवं प्रकृति के संरक्षण के प्रति सामूहिक चेतना का निर्माण करके ही जल संरक्षण के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसी लक्ष्य को लेकर इस अभियान की योजना बनाई गई है।
जन जन अभियान का उद्देश्य
1) जल प्रबन्धन द्वारा जल संरक्षण के प्रति लोगों में जागृति उत्पन्न करना।
2) लोगों को उनके पास उपलब्ध भूमि में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’ द्वारा जल संरक्षण के लिए प्रेरित करना।
3) जल संरक्षण के पारम्परिक स्रोतों जैसे तालाब की खुदाई तथा नाला या ढलान वाली भूमि पर छोटे-छोटे जल संग्रह बनाने के लिए प्रेरित करना।
4) लोगों को खाली पड़ी भूमि एवं खेतों के किनारे पेड़ लगाने के लिए प्रेरित करना ।
5) फौव्वारा (स्प्रिंकलर) विधि से सिंचाई करके जल की बचत करने के लिए किसानों को प्रेरित करना ।
6) राजयोग मेडिटेशन द्वारा लोगों में जल संरक्षण के प्रति सकारात्मक चेतना उत्पन्न करना।
7)जल संरक्षण के प्रति जागृति उत्पन्न करने के लिए सेमिनार
8)स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों में जल संरक्षण के प्रति जागृति उत्पन्न करने के लिए निबंध एवं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।
9) जल संरक्षण मेले का आयोजन करके किसानों एवं ग्रामीणों को जल संरक्षण के प्रति जागरूक करना।
10) धार्मिक व समाजसेवी संस्थायें, युवाओं और महिलाओं की जल संरक्षण के प्रति जागृति लाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
11) प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मिडिया द्वारा जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना। 12) हर घर में जल संरक्षण के प्रति जागृति लाना ।
ब्रह्माकुमारीज़ संस्था का संक्षिप्त परिचय
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना सन् 1937 में अविभाजित भारत के सिन्ध प्रान्त में पिताश्री ब्रह्मा बाबा के माध्यम से हुआ था। विभाजन के बाद सन् 1950 में संस्था का मुख्यालय कराची (पाकिस्तान) से माउंट आबू (भारत) में स्थानांतरित हुआ। वर्तमान समय, ब्रह्माकुमारी संस्था 140 देशों में हज़ारों सेवाकेन्द्रों के माध्यम से मानवता की सेवा कर रही है।
इस संस्था ने भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत तथा मानवीय मूल्यों को नारी सत्ता द्वारा एक वैश्विक आध्यात्मिक क्रान्ति में बदलने का कार्य किया है। इसके अलावा, इस संस्था ने संयुक्त राष्ट्र संघ से गैर सरकारी संगठन के रूप में सम्बद्ध होकर वैश्विक स्तर पर अनेक अभियानों का सफल नेतृत्व किया है। यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के जनसूचना विभाग से गैर सरकारी सदस्य (NGO) के रूप में तथा आर्थिक-सामाजिक परिषद (ECOSOC) से सलाहकार सदस्य के रूप में जुड़ी हुई है। ब्रह्माकुमारीज़ की विशिष्ट सेवाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे सात शांति पुरस्कारों से सम्मानित किया है।
एक आध्यात्मिक संस्था के रूप में ब्रह्माकुमारी संस्था सभी जाति व धर्म के लोगों में आत्मिक शक्ति तथा मानवीय मूल्यों का विकास करने की निःशुल्क सेवा करती है। यह संस्था अपने 20 विभिन्न प्रभागों द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों के लिए सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं, राजयोग शिविरों तथा खुले संवाद सूत्रों का आयोजन करती है।
ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा जल-जन अभियान में आयोजित होने वाले अनुमानित कार्यक्रम अभियान को आयोजित करने वाले कुल ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र : 5,000+
जलाशय गोद लेना : 5,000+
कुल कार्यक्रम: 10,000+
कुल वालंटियर: 1,00,000+
कुल लाभार्थी: 1,00,00,000+
Know Your 8 Power Festival of Navratri is just around the corner, it’s time to rejoice and invoke spirituality within us. Let’s understand the real
Embracing self-love and authenticity is a journey that leads to profound personal growth and peace. By understanding the dynamics of human interactions and the futility of seeking universal approval, we can build a resilient self that remains unshaken by external opinions.
The choice between living in an era of strife (Kalyug) or peace (Satyug) lies within us. By adopting qualities of giving, forgiveness, and love, we can create a personal era of Satyug, irrespective of the external environment of Kalyug.
Chapter 2 Consciousness in the light of the views of some other philosophers Earlier, we have had a brief overview of some systems of Indian
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