
अपने शरीर का सम्मान करने की कला
हमारा शरीर; जो हम सभी के लिए हमारी शारीरिक पोशाक है, अक्सर हमारे स्वयं या दूसरों के द्वारा परखा जाता है, कभी कभी आलोचना या
हम सभी के जीवन के, हर एक समय में विभिन्न प्रकार के लॉन्ग टर्म या शॉर्ट टर्म लक्ष्य होते हैं – जैसे कि; पर्सनल, प्रोफेशनल, फाइनेंशियल, सोशल, रिलेशनशिप संबंधित लक्ष्य, फिजिकल फिटनेस वेल बीइंग और हेल्थ से संबंधित लक्ष्य, और अंत में स्पिरिचुअल लक्ष्य इत्यादि। कभी-कभी हमें स्वयं भी पता नहीं होता है, लेकिन हम हर समय अपने जीवन में कोई न कोई लक्ष्य लेकर चल रहे होते हैं, चाहे वो किसी बड़े लक्ष्य से संबंधित हो या फिर हमारे दैनिक जीवन के छोटे से छोटे लक्ष्य हों।
इस सोच के साथ, हम जो भी कर्म करते हैं, उसका उद्देश्य ही उन निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करना है। साथ ही, ये सभी कार्य बहुत सारी एक्सपेक्टेशन की डिमांड करते हैं, जिससे बेहतर रिजल्ट प्राप्त हों। लेकिन ये एक्सपेक्टेड रिजल्ट कभी कंप्लीट हो पाते हैं और कभी नहीं। लेकिन अगर जीवन के लक्ष्य में, यदि अपेक्षित रिजल्ट न मिलें तो, वे हमारे अंदर चिंता की भावना उत्पन्न करते हैं। ऐसे में हम देखते हैं कि, कभी कभी रिज़ल्ट मिल जाने के बाद भी, उसको अचीव करने की यात्रा बहुत स्ट्रेसफुल होती है जबकि वे लक्ष्य जिनमें, एक्सपेक्टेशन नहीं होती, वे कम स्ट्रेसफुल होते हैं, जिसके बारे में कुछ लोग डिबेट कर सकते हैं कि ऐसा संभव नहीं है। जीवन में चिंता और तनाव न केवल हमारी आध्यात्मिक और भावनात्मक नेचर को बल्कि, हमारे फिजिकल बॉडी और रिलेशशिप को भी नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे हमारी लक्ष्यपूर्ण यात्रा और भी कठिन और थकान भरी हो जाती है। एक्शन ओरिएंटेड होना और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, उद्देश्य रखना गलत नहीं है, लेकिन हमें डेडलाइंस की चिंता करे बिना और चीज़ों को उसी समय, उसी अवधि में, किसी विशेष रूप में पूरा होने की उम्मीद न रखते हुए, अपने सपनों को पूरा करने के लक्ष्य में सक्षम होने की आवश्यकता है। अगर ऐसा नहीं है, तो हम समय की कॉन्शियसनेस में रहते हुए, आसानी से परेशान या निराश हो जाते हैं और आज का आनंद नहीं उठा पाते हैं। जब हम कुछ हासिल करते हैं तो खुश होना गलत नहीं है, लेकिन अगर हमारी खुशी हमारे अचीवमेंट पर निर्भर करती है, तो हमें खुश होने का इंतजार ही रहेगा। खुश रहने का पल आज है, अभी है बाद में नहीं। आध्यात्मिक ज्ञान कहता है – प्रसन्नता एक यात्रा है, मंजिल नहीं। यहां ये कहा जा सकता है कि – खुशी सिर्फ अपने लक्ष्य को प्राप्त करने, अपनी मंजिल तक पहुंचने में नहीं है, बल्कि लक्ष्य को हासिल करने के सफर में भी है। इसके अलावा, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एक चिंतित मन की अपेक्षा, एक हल्का और साक्षी मन हमेशा पॉजीटिव परिस्थितियों को आकर्षित करते हुए, किसी भी लक्ष्य तक पहुँचने में एक ब्रिज का काम करता है।
हमारा शरीर; जो हम सभी के लिए हमारी शारीरिक पोशाक है, अक्सर हमारे स्वयं या दूसरों के द्वारा परखा जाता है, कभी कभी आलोचना या
क्या मैं स्वयं से संतुष्ट हूँ – जीवन में आगे बढ़ने के लिए स्वयं से, अपने संस्कारों से, अपने विचारों, शब्दों और कार्यों से तथा
वर्ल्ड ड्रामा एक ऐसा नाटक है जिसे सभी आत्माएं पृथ्वी ग्रह पर अवतरित होकर खेलती हैं और जिसके चार चरण वा युग होते हैं –
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