अपनी आसक्तियों / लगाव के बारे में जानना (भाग 3)

अपनी आसक्तियों / लगाव के बारे में जानना (भाग 3)

जब भी हम किसी प्रकार का बाहरी या आंतरिक लगाव रखते हैं, तो वह हमारे जीवन में भय या डर का कारण बनता है, क्योकि हम जिनसे जुडे होते हैं- लगाव व आसक्ति रखते हैं, उनके खोने का डर भी उतना ही अधिक होता है। तो हम देखते हैं  कि, लगाव न केवल भय को जन्म देता है बल्कि अपने साथ क्रोध, अहंकार, उदासी, ईर्ष्या, लोभ, दूसरे के साथ तुलना, घृणा आदि भावनाओं को भी जन्म देता है। और इन सभी भावनाओं की जड़ें आसक्ति या लगाव में ही होती हैं, जो हमारे अंदर असुरक्षा व असंतोष की भावना को जन्म देती  हैं।

लगाव व आसक्ति एक संस्कार है जो हमारी एवेअरनेस में इतनी गहराई में समाया है कि हम इसे सामान्य समझते है। देखा जाए, तो यह सिर्फ एक संस्कार है लेकिन ये हमें भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से कैद करने में सक्षम है और ये हमें अंदर ही अंदर बंदी बना लेता है, और हमें इसका एहसास भी नहीं होता। इस तरह के लगाव से जुड़ी हमारी नेगेटिव इमोशनल स्टेट, हमारे अंदर मेंटल प्रेशर व खालीपन की स्थिति पैदा करती है, और हमें कई बार बिल्कुल असहाय और भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस कराकर, हमारी एवेअरनेस को भी नेगेटिव तरीके से नुकसान पहुँचाती है। कई जन्मों के चक्र में आते-आते, हम लगाव और उसके द्वारा होने वाले कष्टों के इतने आदी हो गए हैं कि, हम यह मानते हैं कि, यह नेचुरल मानव व्यक्तित्व और मानव जीवन का अभिन्न अंग है, और इसलिए हम अपने इस संस्कार के साथ जीवन जीते रहते हैं और कभी भी इससे छुटकारा पाने के बारे में न सोचकर, उसे मजबूत करते रहते हैं। और हम बिना जाने- समझे, इस संस्कार को अपने भीतर तनाव और अप्रसन्नता के साथ जोडे रहते हैं, जबकि ये हमारे स्वास्थ्य, कार्य और संबंधों पर भी नेगेटिव प्रभाव डालता है। नेचुरल तौर पर, हमारी एवेअरनेस सब चीजों से स्वतंत्र है, और उसका किसी भी चीज से कोई जुडाव नहीं है। हमारे लगाव, चाहे वो बाहरी हों या आंतरिक, वे शुरुआत से हमारे नहीं थे, बल्की जन्म-पुनर्जन्म के चक्र में आते-आते, हमने उन्हें अपना संस्कार बना लिया है। पिछले दो दिनों के संदेशों में बताई गई सभी बातें शुरू से ही हमारी एवेअरनेस का पार्ट रही हैं लेकिन उनसे लगाव ये उन सबसे अलग, एक नया संस्कार है और उसके द्वारा होने वाला दुख व तकलीफ इस बात का संकेत है कि लगाव नेचुरल न होकर, असामान्य है।

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