15th feb 2023 - soul sustenance - hindi

चेतना शुद्धि/ अवेयरनेस (भाग 1)

एक ऐसा जीवन जीना, जिसमें आप अपनी पुरानी आदतों से पूर्ण स्वतंत्र, भावनात्मक रूप से मजबूत और शक्तियों से भरपूर मह्सूस करते हुए, जीवन में आने वाली विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में सफलता का अनुभव करने में सक्षम हों। इसके लिए हमारी चेतना का शुद्ध होना बहुत जरुरी है अतः हमें प्रत्येक दिन की समाप्ति पर, इन पैरामीटर्स पर स्वयं को जांचें और फिर अगले दिन के लिए स्वयं को तैयार कर, उसके अनुसार कार्य करने में मदद मिलती है। पुरानी आदतें हमारे विचारों पर हावी होकर हमें शांति और आंतरिक संतुष्टि में भी नहीं रहने देतीं। इसलिए जब भी आप दिन की शुरुआत करें और कार्यक्षेत्र में प्रवेश करें तो अपने आप से कहें, कि मैं जीवन के सभी क्षेत्रों में आंतरिक संतुष्टि का अनुभव करूंगा/करूंगी और मैं अपने मूल स्वभाव के अनुरूप पूर्ण पवित्रता, शांति और आनंद में रहकर ऐसा कर पाऊंगा, इसलिये जहां मन की पवित्रता होगी, वहां शांति और आनंद अवश्य होगा।

पवित्रता को मन की पूर्ण स्वच्छता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें आत्मा के पांच शत्रु- काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार न हों – ये पांच विकार आत्मा की चेतना को गिरा कर उसके मूल गुणों की क्वालिटी को भी कम करते हैं। यहां स्वच्छता का अर्थ केवल किसी एक विकार का न होना नहीं है बल्कि आत्मा संपूर्ण रुप से पूर्ण शुद्ध/ स्वच्छ हो। संपूर्ण शुद्ध/ स्वच्छ मन वह है जिसने स्व को सभी विकारों से पूरी तरह मुक्त कर लिया है। उदाहरण के लिये: काम निकालने के लिए क्रोध करना एक अवगुण है, लेकिन काम करने के लिए प्रेरित करना एक गुण है, वैसे ही, जीवन में बडी भौतिक सुख-सुविधायें हासिल करने के लिए लालच करना अवगुण है, लेकिन ऐसा करने के लिए महत्वाकांक्षी होना अच्छा है। एक और उदाहरण – अपने परिवार के सदस्यों को प्यार करना अच्छा है लेकिन मोहवश लगाव रखना दुःखों का कारण बन जाता है। साथ ही आत्मगौरव से भरपूर होना और अपनी विशेषताओं, प्रतिभाओं पर गर्वित होना दोष नहीं है, लेकिन उनपर अहंकार करना या अपने मुंह मिया मिठठू बनना ठीक नहीं है। अतः चेतना की संपूर्ण स्वच्छता व शुद्धता माना सभी विकारों और उनके रुप को जानकर उनसे मुक्त रहना है ।

(कल जारी रहेगा…)

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