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सत्यता के ओरिजिनल गुण में रहना

सत्यता के ओरिजिनल गुण में रहना

सत्यता हमारा ओरिजिनल गुण है, लेकिन आजकल हम अपनी सुविधा के लिए या थोडे से लाभ के लिए झूठ का सहारा ले लेते हैं। दिलचस्प बात यह है कि, जब भी हम झूठ बोलते हैं, तो हमें अंदर असहजता महसूस होती है, क्योंकि हमारे भीतर की आवाज हमें एहसास कराती है कि, हम अपनी ओरिजिनेल्टी के अगेन्स्ट जा रहे हैं। हम चाहे सच्चाई को छिपाने के लिए जो कुछ भी करें, लेकिन  वह खुद- ब- खुद प्रकट होकर, हमेशा जीतता है। सत्यता माना; स्वयं प्रति और दुनिया के प्रति ऑथेनटिक होना। बचपन से हमें सिखाया जाता है कि झूठ बोलना पाप है, फिर भी, जब हमें अपनी बात मनवानी होती है, किसी परेशानी से बचने या किसी को खुश करने की बात आती है, तो क्या हम झूठ का सहारा लेते हैं? और ये भी बिलीव करते है कि उससे कोई नुकसान नहीं होगा? सच बोलने से लेकर- झूठी कहानी रचने तक, हममें से कई लोग अपनी ऑथेनटिसिटी से दूर होते जा रहे हैं। सच्चाई और ईमानदारी हमारे ओरिजिनल गुण हैं। और हर झूठ हमारी इनर पावर को कम करके, उसे एक आदत में बदल देता है। इसलिये, हमें हर हाल में सच बोलने का साहस रखना चाहिए, भले ही अस्थायी रूप से, सच बोलना हमें अप्रिय लगे, लेकिन निश्चित रूप से वो हमें लॉंग रन में लाभ ही पहुँचाएगा। किसी व्यक्ति को खुश करने के लिए उससे झूठ बोलने से बेहतर है कि एक ऑनेस्ट फीडबेक दिया जाए। सबसे महत्वपूर्ण है कि, सच्चाई हममें विश्वसनीयता की भावना भरकर, हमें अपने रिश्तों को भी सुदृढ बनाने में मदद करती है।

हर रोज स्वयं को याद दिलाएं कि, आप एक ईमानदार इंसान हैं। हर परिस्थिति में और सबके साथ सच बोलना- आपका स्वभाव होना चाहिए। अपने मन को साफ रखते हुए, सदा सत्यता और अखंडता के नियमों का पालन करें। आपके इरादे, विचार, शब्द और व्यवहार पूरी तरह से ईमानदार होने चाहिए। और आपके द्वारा किए गये कर्म, आपके ओरिजीनल स्वभाव को दिखाएं। अपने रिश्तों में, आपसी बातचीत में और लेन-देन में सच्चाई लाएं, किसी भी चीज से न डरें, कुछ भी न छिपाएं और फेक्टस को  गलत तरीके से न पेश करें। सत्यता ही सफलता है, सत्यता ही शक्ति है और यह आपको प्रसन्न रखता है। यह ट्रान्सपिरेन्सी को बढ़ावा देता है और साथ ही, दूसरों को भी जेनुईन व रिअल होने के लिए प्रेरित करता है। ऑथेन्तिक होने से- जीवन का हर पहलू सरल हो जाता है। भले ही सच बोलना कभी-कभी कठिन लगता हो, लेकिन झूठ न बोलें, सच्चाई को जिएं, लेकिन सत्यता को साबित करने की जरूरत नहीं है। भले ही दूसरा व्यक्ति आपसे झूठ बोले, फिर भी आप सच बोलें। अपनी राय व्यक्त करें, लेकिन खुद को साबित करने के लिए एनर्जी वेस्ट न करें। सच को प्रूव करने की आवश्यकता नहीं होती, उसमें स्वयं को प्रकट करने की शक्ति होती है।

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