अपने अंदर की सकारात्मकता को जागृत करना (भाग 2)

अपने अंदर की सकारात्मकता को जागृत करना (भाग 2)

क्या आप जानते हैं कि हम औसतन हर 2 सेकंड या कभी-कभी उससे भी कम समय में एक नया विचार क्रिएट करते हैं? और हमारी घबराहट, असुविधा की अवस्था में या किसी बाहरी स्थिति के नकारात्मक प्रभाव की वजह से यह गति बहुत ही अधिक बढ़ जाती है। हम यहां इसे बाहरी स्थिति इसलिये कह रहे हैं क्योंकि, ‘मी और आई’ (मैं यानि कि आत्मा)  जोकि अंदर है उसने वो स्थिति क्रिएट नहीं करी है। यहां तक की हमारा भौतिक शरीर भी बाह्य (एक्सटरनल) है। हमारी अपनी नकारात्मक व्यक्तित्व वाली विशेषताओं की स्थितियों को छोड़कर, जोकि पूरी तरह से आंतरिक ‘मैं’ की रचना है, उसके अलावा अन्य सभी स्थितियाँ बाहरी हैं। हमारे जीवन में आने वाली विभिन्न परिस्थितियों में, हमारे अंदर की स्थिति, नेगेटिव व्यक्तित्व के रूप में दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए; किसी विशेष दिन, मैं बिना किसी विशेष कारण के उदास या हताश महसूस करता हूँ। किसी और दिन मैं अपने स्वभाव में अहंकार या फिर सकारात्मक गुणों या शक्तियों के विचारों का अनुभव करता हूं। कभी-कभी मुझे डर का एहसास होता है चाहे कोई विशेष व्यक्ति या वस्तु या स्थिति न भी हो; जिससे मुझे डर लगता है, यह बस यूं ही स्थिति ऐसी हो जाती है और मैं बिना किसी विशेष कारण के भयभीत रहता हूं या किसी अन्य अवसर पर मुझे लगता है कि मैं असफल हूं, हालांकि मेरे जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा होता है। मुझे आए दिन बीमार हो जाने की चिंता रहती है, हालांकि शारीरिक रूप से मैं पूरी तरह से फिट हूं और न ही मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिला हूं जो बीमार है या फिर खराब स्वास्थ्य के बारे में मैंने कोई खबर सुनी है। तो, मेरी चिंता पूरी तरह से मेरे अंदर की रचना है। इस प्रकार हम देखते हैं कि, ये अपनी स्थिति से संबंधित सभी उदाहरण मेरे द्वारा ही क्रिएट किए गये हैं।

 

इसके अलावा, हमारी अपनी व्यक्तित्व विशेषताओं से जुड़ी ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं, जो बाहरी स्थितियों द्वारा उत्पन्न होती हैं। ऐसी परिस्थितियों में मेरे द्वारा पढी गई, देखी व सुनी हुई कुछ ऐसी बातें होती हैं जो मेरे अंदर एक नकारात्मक व्यक्तित्व की स्थिति क्रिएट करती हैं। इसका उदाहरण है: मेरा दोस्त अपने करियर में अधिक सफल रहा है और यह देखकर मेरे अंदर ईर्ष्या के विचार आते हैं। इस केस में, मैंने स्वयं यह स्थिति क्रिएट की है लेकिन इसके ट्रिगर होने का कारण कोई अन्य व्यक्ति या फिर बाहरी परिस्थिती है। उस व्यक्ति ने मुझे कोई नुकसान नहीं पहुँचाया है और न ही कोई ऐसी स्थिति पैदा की है, बल्कि मैंने अपनी सोच के कारण यह स्थिति पैदा की हैं। एक और उदाहरण है; मैं ऑफिस में अपने बॉस से सिर्फ इसलिए डरता हूं क्योंकि वे मुझसे ऊंची पोस्ट पर हैं। वह एक अच्छे इंसान हैं और मेरे साथ उनका व्यवहार बेहद विनम्र है और वे कभी भी मुझ पर हावी होने की कोशिश भी नहीं करते हैं, लेकिन मैं अपनी सोच के कारण ही स्वयं को नीचा महसूस करता हूं। या फिर किसी और दिन, मैंने एक खबर सुनी कि, कैसे लोग दिल के दौरे के कारण मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं। और इस खबर ने मेरे अंदर असुरक्षा के विचार पैदा कर दिये, जबकि मैं इससे संबंधित हाई कोलेस्ट्रॉल या हाई बी पी जैसे किसी भी लक्षण से पीड़ित नहीं हूं।

(कल भी जारी रहेगा…)



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