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राजयोग के 4 सब्जेक्ट और उनके महत्व (भाग 2)

राजयोग के 4 सब्जेक्ट और उनके महत्व (भाग 2)

  1. मेडीटेशन के द्वारा परमात्मा से जुड़ना – राजयोग का अगला सब्जेक्ट मेडीटेशन है, और हम इसका अभ्यास  आध्यात्मिक ज्ञान को पूरी तरह से सीखने और समझने के बाद ही कर सकते हैं। मेडीटेशन माना; आत्मा का अपने परमात्मा के साथ जुड्ना; जिसमें आत्मा सबसे पहले स्वयं को पहचानती है और अपने निज स्वरूप और गुणों की कल्पना करके उन्हें अनुभव करती है। आत्मा स्वयं से बात भी करती है और परमातम ज्ञान के विचार- सागर मंथन के आधार पर एक सकारात्मक स्थिति और एवेअरनेस का निर्माण करती है। मेडीटेशन भी एक आध्यात्मिक अभ्यास है, जिसमें आत्मा अपने मन, बुद्धि और ज्ञान की शक्ति का उपयोग करके परमात्मा से जुड़ती है। यह आत्मा का अपने परमात्मा; सर्वोच्च सत्ता के साथ एक सूक्ष्म वार्तालाप है। इसके द्वारा परमातम वाईब्रेशन प्राप्त करके आत्मा के मन, बुद्धि और संस्कारों को विकारों से मुक्त किया जाता है। यह एक चार्जिंग प्रक्रिया भी है, जिसमें आत्मा की आंतरिक शक्तियों को जागृत किया जाता है। इसके द्वारा, आत्मा को परमात्मा के गुण और शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, और वह स्वयं को ट्रान्सफॉर्म कर अपने ओरीजिनल गुणों में आती है। मेडीटेशन हमें परमात्मा के करीब आने का भी श्रेष्ठ साधन है, और हम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारे द्वारा किए गये कर्मों में खुशी और हलकापन महसूस करके, अधिक कुशल और उत्पादक बनते हैं। और यह हमारे कार्यों को अधिक सुंदर, सफल और हमारे स्वभाव को किसी भी कमजोरी से मुक्त कर उत्तम बनाता है।
  1. दैवीय गुणों का समावेश – यह राजयोग का तीसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण सब्जेक्ट है। यह हमें समझने और एनालाईज करने में मदद करता है कि हम अपने जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान को कितनी अच्छी तरह समझकर आत्मसात कर रहे हैं और हमारे मेडीटेशन का अभ्यास कितने प्रभावी ढंग से हो रहा है? इसका संकेत होता है; हमारे अंदर दैवीय गुणों की वृद्धि होने लगती है और साथ ही हम दूसरों के साथ ढेर सारी अच्छाइयों का लेन-देन शुरू कर देते हैं, और जिनसे भी बातचीत करते हैं, मिलते हैं, उनके साथ भी शुभकामनाओं का आदान-प्रदान शुरू हो जाता है। जितनी अधिक हमारे अंदर आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है, उतने ही अधिक गुण हमारे व्यक्तित्व में दिखाई देने लगते हैं। साथ ही, हम परमात्मा की दिव्यता से भरपूर हो जाते हैं और उनके समान बन दाता बनने लगते हैं। जैसे-जैसे हम अपने विचारों, शब्दों और कार्यों हर कदम पर परमात्मा को फालो करने लगते हैं, हमारी मधुरता, पवित्रता और विनम्रता बढ़ने लगती है और इस दुनिया के हर उस व्यक्ति से, जिनसे हम मिलते हैं, बातचीत करते हैं; अपने स्वभाव-संस्कार द्वारा परमात्मा को प्रत्यक्ष करना शुरू कर देते है, जो इस सुन्दर और अलौकिक आध्यात्मिक पथ पर हमारे परम शिक्षक और गाईड हैं, ।

(कल भी जारी रहेगा…)

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