बात-चीत में अतिशयोक्ति से बचें

बात-चीत में अतिशयोक्ति से बचें

हम अनजाने में कभी-कभी, अपने परिवार के सामने तथ्यों को बताते हुए या फिर दोस्तों को कोई घटना सुनाते हुए, बातों को बढा- चढा कर बताते हैं। इस तरह से हम बात-चीत में चीजों को- कभी अधिक महत्वपूर्ण- कभी ज्यादा बेहतर या बदतर दिखाने की कोशिश करके, अनरिअल बना देते हैं। इसके अलावा, ऐसे नेगेटिव अनुभवों को बढ़ाकर, हम न केवल चीजों को जटिल बनाते हैं, बल्कि नेगेटिव वाईब्रेशन भी आकर्षित करते हैं। आइये, इसके बारे में बारीकी से समझें:

  1. क्या आपके जानने वाले में कोई ऐसा व्यक्ति है, जिन्हें बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना पसंद है? क्या वह आपको ऐसी किसी स्थिति में शामिल करने की कोशिश करते हैं, जिससे आप बचना चाहते हैं? और कभी-कभी, क्या आप भी अलग-अलग कारणों के चलते, बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं?
  2. आजकल ज्यादातर लोगों को बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की आदत होती है, वे किसी भी परिस्थिति को, अपने स्वयं के दृष्टिकोण और निजी पर्सनेलिटी के आधार पर सोचते और कल्पना करते हैं, जिसमें सच्चाई गलत तरीके से सामने आती है। और ये सब, हम लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए, ड्रामा में चीजों को एक्स्ट्रा वेगेंट दिखाने के लिए, या किसी को राजी करने के लिए करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, सच्चाई को अच्छा या बुरा बनाने के लिए, उसे खींच कर- बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने से, हमारी स्वयं की आंतरिक शक्ति और विश्वसनीयता कम हो जाती है।
  3. इसके लिए, हमें अपने चिंता, भय या उत्तेजना के निजी नेचर को स्थितियों के साथ न जोड़कर देखना व समझना चाहिए। यदि, हम अपने मन में बातों की अतिशयोक्ति करते हैं, तो हम निश्चित रूप से, हम उन्हें अपने शब्दों में भी यूज करेंगे। लेकिन यदि हम अपनी इंफोरमेशन में से, गैरजरुरी बातों को हटाकर, शांत मन से थोड़ा ध्यान दें तो  केवल फेक्ट पर फोकॅस करने में मदद मिलती है।
  4. हमेशा सच्चाई की शक्ति के आधार पर, जरुरी बातों/ फेक्ट को अपनी बात-चीत में शामिल करें; चाहे किसी नेगेटिव जानकारी के बारे में हो, स्वास्थ्य संबंधी चिंता हो या आकस्मिक बात-चीत हो। स्वयं को याद दिलाएं – मैं बातों को बढ़ा-चढ़ाकर उनकी अतिशयोक्ति नहीं करता/ करती, और बात-चीत के दौरान ऑथेनटीक होना, मेरे मन को सदा साफ रखता है, और ये मुझे विश्वसनीय भी बनाता है

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