क्या आपका आत्म-सम्मान हार-जीत पर निर्भर करता है? (भाग 2)

December 13, 2024

क्या आपका आत्म-सम्मान हार-जीत पर निर्भर करता है? (भाग 2)

2. स्वयं को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखना शुरू करें, आप महसूस  करेंगे कि आप जीवन के हर क्षेत्र  में विजयी हैं- आध्यात्मिक ज्ञान हमें स्वयं को आध्यात्मिक दृष्टि या ज्ञान की दृष्टि से देखना सिखाता है। जबकि हमारी फिजिकल आंखें, हमें हमारी फिजिकल पहचान उम्र, लिंग, रूप-रंग, बाहरी व्यक्तित्व, राष्ट्रीयता, संबंध, धर्म, डिग्री, भूमिका, धन आदि दिखाती हैं। लेकिन जब हम खुद को आत्मा या आध्यात्मिक अस्तित्व के रूप में देखना शुरू करते हैं और अपनी आध्यात्मिक महत्ता और जीवन में परमात्मा के महत्व को समझते हैं, तो हमारे जीवन में एक नई गहराई आती है। हम सतही जीवन जीने के बजाय गहराई में जाकर खुद को बेहतर समझने लगते हैं। हम अन्य आत्माओं की भूमिकाओं और जीवन की घटनाओं को अलग तरीके यानि कि आत्मिक दृष्टि से देखने लगते हैं और उनके अस्थायी नेचर को समझते हैं। हमें महसूस होता है कि हमारी खुशी इन पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। और अंत में, जब हम प्रतिदिन ईश्वर का ज्ञान सुनते हैं, तो हमारी मान्यताएं बदलती हैं। हम शारीरिक जीत और हार के बजाय, सभी का दिल जीतने,  परमात्मा का प्यार पाने और अपनी कमजोरियों को छोड़कर, एक आदर्श इंसान बनने की ओर बढ़ते हैं। ऐसा इंसान जिसे उसकी आंतरिक अच्छाई के कारण परमात्मा और सबलोग प्यार करते हैं, नाकि उसकी बाहरी जीत-हार के कारण।

3. हर छोटी जीत या सकारात्मक कार्य के लिए खुद को और दूसरों को सम्मान दें- आज से, जब भी आपका बच्चा, ऑफिस का सहकर्मी, या आपकी पसंदीदा खेल की टीम जब अपनी पूरी कोशिश करे, तो उनके लिए सकारात्मक शब्द बोलें और अच्छे विचार व भावनाएं रखें। साथ ही, स्वयं या दूसरों द्वारा किए गए हर छोटे अच्छे काम को महत्व देना शुरू करें, बिना परिणाम की चिंता किए  आगे बढ़ें। आध्यात्मिक ज्ञान कहता है कि अच्छे कर्म करो और उसके फल के बारे में मत सोचो। इसे अपने जीवन में लागू करें; हर काम परमात्मा को याद करते हुए करें, खुशी महसूस करें और दूसरों को भी खुशी और प्यार दें। अपने आत्म-सम्मान और खुशी को केवल उन बड़ी-बड़ी जीत पर निर्भर न करें, जिन्हें दुनिया बड़ा मानती है, क्योंकि वे बड़ी जीत अस्थायी हैं और हमेशा हमारे साथ नहीं रहेंगी। जितना अधिक हम हर कर्म को उसके परिणाम की परवाह किए बिना करेंगे उतना ही अधिक आनंद आएगा और हम पहले से अधिक विजयी महसूस करेंगे। यही ऊर्जा हम अपने घर, कार्यस्थल और समाज में फैलाएंगे, जिसकी आज हर जगह जरूरत है। अन्यथा, मनुष्य अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे-धीरे आध्यात्मिक रूप से खत्म हो रहे हैं। वे न तो खुद खुश हैं और न ही दूसरों को खुशी दे पा रहे हैं।

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