अंतर्मन के रावण को जलाकर स्वतंत्रता का अनुभव करना (भाग 1)
दशहरा का आध्यात्मिक संदेश – 12 अक्टूबर दशहरा; बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है, जिसे श्रीराम और रावण के बीच के युद्ध
September 16, 2024
यदि हम अपने जीवन का अधिकांश समय अपनी विशेषताओं, अपने व्यक्तित्व या अपनी भूमिका को निभाने में या उनसे जुड़े रहते हैं, तो समय के साथ हम अपनी उस वास्तविक चेतना यानि कि आत्मा को भूलते जाते हैं जो पहचाने जाने की प्रतीक्षा में है। और हर बार जब मैं सोचता हूं कि मैं अपनी विशेषताओं, अपने व्यक्तित्व या भूमिका हूं, तो मैं स्वयं को वास्तविक आत्मा से और अधिक अलग महसूस करने लगता हूँ, जोकि मुझे एक स्थायी आत्म-सम्मान और परिणामस्वरूप, एक स्थायी खुशी देने वाली है। कुशल व्यक्तित्व का होना, शानदार शैक्षिक सफलता और आलीशान पहनावा, ये सब अस्थायी हैं। इसलिए यह न भूलें कि, जीवन एक रोलर कोस्टर की तरह है, जहाँ सफलता बहुत ही कम समय में हमें छोड़ सकती है। अर्थात, इस जीवन में हर चीज अस्थायी है, नश्वर है। इन सबका आनंद लें क्योंकि ये भी उपलब्धियां हैं और उपलब्धियों का आनंद लेना भौतिकवादी या अध्यात्मिकता से अलग होना नहीं है। लेकिन अपनी वास्तविक खुशी के लिए, इन पर निर्भर न रहें। दूसरी ओर, सभी विशेषताओं और व्यक्तित्व का स्रोत- वास्तविक “मैं” यानि कि आत्मा के मूल गुणों – शांति, प्रेम और खुशी का संयोग है। वह सब कुछ जो मेरे अंदर अच्छा है, जो शाश्वत है और साथ ही मेरा या “मैं” का एक उच्च स्रोत-परमात्मा के साथ संबंध, जो अविनाशी है, वह है जिस पर मुझे निर्भर रहना चाहिए क्योंकि वह मुझे कभी भी नहीं छोड़ेगा।
यह न भूलें कि, अपने पहले जन्मों में, हम अत्यधिक कुशल, बहुत सुंदर और बहुत अमीर थे, इतना कि भौतिक रूप से मनुष्य के पास जो कुछ भी अच्छा हो सकता है, वह सब हमारे पास था। फिर भी, इन सभी उपलब्धियों का आनंद लेते हुए भी हम पूरी तरह डिटेच्ड थे। वह भी, उस समय जब ये सभी उपलब्धियाँ अविनाशी थीं, क्योंकि वह वास्तविक खुशी की दुनिया थी। लेकिन, अब हमारे जीवन में ये सभी उपलब्धियाँ स्थायी नहीं हैं और बहुत ही आसानी से हमें एक क्षण में छोड़ सकती हैं क्योंकि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो अप्रत्याशित है और जिसमें कई उतार-चढ़ाव हैं। हमारी कोई भी कुशलता या भूमिका, स्थायी होने की गारंटी नहीं रखती है। दूसरी ओर, यह वह समय है जब अविनाशी “मैं” ही एक है जो हमारे साथ स्थायी रूप से खड़ा रहता है। इसलिए, यह वह “मैं” है जिसका हाथ हमें स्थायी रूप से कस कर पकड़ना चाहिए और इसे एक स्थायी स्रोत- परमपिता परमात्मा से जोड़े रखना चाहिए। जिसके परिणामस्वरूप, हम जीवन के हर क्षण का आनंद; पूरी सुरक्षा, निश्चिंतता और सुरक्षा के साथ ले पाएंगे।
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एक महत्वपूर्ण पहलू जो हमें ध्यान केंद्रित करने के स्वस्थ और सकारात्मक अनुभव में बने रहने नहीं देता, वे हमारे जीवन में हम पर पड़ने
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