16th jan 2025 soul sustenence hindi

January 16, 2025

ब्रह्माकुमारीज का 7 दिवसीय कोर्स (भाग 4)

संसार के अगले 2500 वर्ष में ड्रामा की दो अवस्थाएँ, यानि द्वापर युग (कॉपर ऐज) और कलियुग (आयरन ऐज); आत्मा की चेतना के पतन को दर्शाती हैं। पहले दो युगों में जो आत्माएँ स्वर्ग में दिव्य गुणों से संपन्न देवी-देवता थीं, उन्होंने अब शरीर की चेतना (देहभान) को अपना लिया और इस पतन के कारण उन्हें देवी-देवताओं से मनुष्य कहा जाने लगा। द्वापर युग में, भक्ति भी शुरु हो जाती है। इस युग में एक निराकार परमात्मा की पूजा, और उन दिव्य आत्माओं की मूर्तियों की पूजा प्रारंभ हुई, जिन्होंने पहले दो युगों में निवास किया था। इसके साथ ही इस युग में संत, महात्मा और संदेश वाहक, दिव्य संदेश देने हेतु पृथ्वी पर आना शुरू करते हैं। यह संसार दुःख, अशांति और अपवित्रता से परिपूर्ण रहता है, और स्वर्ग की प्राप्तियाँ धीरे-धीरे कम होकर 5000 वर्षों के अंत में अपने न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती हैं। नर्क में अनेक भाषाएँ, धर्म और सरकारें होती हैं और एकता की कमी होती है, जबकि स्वर्ग में एक भाषा, एक धर्म और एक राज्य होता है और भरपूर एकता होती है।  

 

एक परमात्मा ही इस संसार के ड्रामा को पूरी तरह से जानते हैं, जबकि मनुष्यों द्वारा समझे गए विश्व नाटक और इसकी अवधि, युगों का ज्ञान; उनकी अपनी धारणाओं, अनुभवों और परमात्मा के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित है। यही कारण है कि द्वापर और कलियुग में आत्म जगत से आए विभिन्न संतों, दिव्य आत्माओं धर्मात्माओं ने आत्मा, परमात्मा और संसार के विषय में एक जैसा ज्ञान नहीं दिया। दरअसल, द्वापर और कलियुग में लिखे गए सभी आध्यात्मिक ग्रंथों में आत्मा, परमात्मा और विश्व नाटक के ज्ञान के बारे में अलग-अलग बातें कही गई हैं। वर्तमान समय, जो कलियुग का अंत है, परमात्मा स्वयं आकर सत्यता का ज्ञान देते हैं, जो द्वापर और कलियुग में साझा की गई शिक्षाओं का सार हैं। आज अशांति, दुःख, बुराइयाँ और पाप अपने चरम पर पहुँच गए हैं जहां अत्यधिक जनसंख्या है और भोजन, पानी, स्वच्छ हवा और विभिन्न भौतिक ऊर्जा जैसे प्रचुर संसाधनों की कमी के कारण जीवित रहना मुश्किल हो रहा है। इसके अलावा, यह संसार ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण अन्य प्राकृतिक आपदाओं और युद्धों जैसे अनेक संकटों से जूझ रहा है। 

(कल जारी रहेगा…)   

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