चेतना की शुद्धि (भाग 1)

August 21, 2024

चेतना की शुद्धि (भाग 1)

एक ऐसा जीवन जीना, जो आपकी पुरानी आदतों से पूरी तरह से मुक्त हो, तो वो आपको भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है और जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में सफलता अनुभव करने के लिए आवश्यक सभी शक्तियों से भरपूर करता है। इसलिए, इस प्रकार से दिन में एक बार, आत्म-निरीक्षण करने के लिए समय देना बहुत आवश्यक है। इससे हम स्वयं को अगले दिन के लिए तैयार करते हैं और इससे यथानुसार कार्य करने में मदद मिलती है। पुरानी आदतें हमारे थॉट प्रॉसेस पर हावी रहती हैं और हमें शांति और आंतरिक संतोष में नहीं रहने देतीं। इसलिए, दिन की शुरुआत करते हुए और अपने कार्यक्षेत्र में प्रवेश करते हुए खुद से कहें कि, मैं जीवन के सभी क्षेत्रों में आंतरिक संतोष का अनुभव करूंगा। मैं यह पवित्रता, शांति और खुशी के अपने मूल स्वभाव के साथ तालमेल में रहकर करूंगा। जहां मन की पवित्रता होगी, वहां शांति और खुशी होगी।

 

पवित्रता को मन की पूर्ण स्वच्छता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें कोई वासना, क्रोध, लालच, मोह और अहंकार न हों- जोकि आत्मा के पाँच मुख्य शत्रु हैं। ये पाँच विकार आत्मा के स्वरूप को बिगाड़ते हैं और गुणों की दृष्टि से इसकी गुणवत्ता को कम करते हैं। स्वच्छता केवल किसी विशेष विकार की अनुपस्थिति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा की सम्पूर्णता का गुण है। लेकिन, संपूर्ण स्वच्छता का मतलब है एक ऐसा मन जिसने सभी विकारों से पूरी तरह से मुक्ति पाई हो, जैसे; काम कराने के लिए क्रोध का अत्यधिक दुरुपयोग करना एक विकार है लेकिन दृढ़ता दिखाना विकार नहीं है। इसी तरह, जीवन में बड़ी चीजें हासिल करने के लिए लालच का अत्यधिक दुरुपयोग करना एक विकार है, लेकिन तर्कसंगत रूप से महत्वाकांक्षी होना विकार नहीं है। एक और उदाहरण-अपने परिवार के सदस्यों से खुशी के साथ प्रेम करना विकार नहीं है, लेकिन उनसे लगाव होना, जो कभी-कभी दुख का कारण बनता है, एक विकार है। इसी प्रकार, आत्म-सम्मान से भरपूर होना और अपनी विशेषताओं और प्रतिभाओं के बारे में खुश होना विकार नहीं है, लेकिन इनके बारे में अहंकारी होना और डींगें मारना एक विकार है। इसलिए, स्वच्छता का मतलब है सभी विकारों और उनके विभिन्न रूपों का ज्ञान होना और उनसे मुक्त रहना।

(कल जारी रहेगा)

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