March 5, 2025

चिंता करने की आदत को ओवरकम करें (भाग 1)

चिंता की परिभाषा क्या है? चिंता एक प्रक्रिया है जिसमें किसी स्थिति में सबसे बुरे संभावित परिणाम या भविष्य की कल्पना की जाती है और उस नकारात्मक छवि को अपने मन में जीवंत और सक्रिय रूप में बनाया जाता है। फिर उस नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग करके अपनी चेतना को इस तरह प्रभावित किया जाता है कि यह आपकी आत्मिक शक्ति को पूरी तरह से कमजोर कर देता है और इसके परिणामस्वरूप यह आपके शारीरिक शरीर को भी कमजोर बना देता है, जिससे मन में डर उत्पन्न होता है।

 

जब लोगों से इस प्रक्रिया के बारे में पूछा जाता है, तो जो व्यक्ति इस प्रक्रिया से जुड़ा होता है और दिन भर में आने वाली विभिन्न स्थितियों में इस प्रक्रिया को शामिल करता है, जोकि आदतन एक चिंताग्रस्त व्यक्ति होता है, उसके अनुसार; चिंता करना जरूरी है, चिंता करना अच्छा है। अगर हम विभिन्न नकारात्मक संभावनाओं के बारे में नहीं सोचेंगे, तो उनके लिए अपने आपको तैयार कैसे करेंगे? यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह विश्वास व मान्यता कि चिंता करने से हम स्वयं को भविष्य की बुरी परिस्थितियों के लिए तैयार करते हैं, एक गलत धारणा है। यह विश्वास हमें यह समझने से रोकता है कि वास्तव में सारी चिंता केवल एक गलत और व्यर्थ की कल्पना है। यह हमारे दिमाग और बुद्धि की सकारात्मक, रचनात्मक और कल्पनाशील शक्ति का गलत उपयोग है, जो हमारे मन और बुद्धि को सशक्त बनाने के बजाय उसे कमजोर करता है। भविष्य की तैयारी करना महत्वपूर्ण और आवश्यक है, लेकिन बहुत बार, इस प्रक्रिया में हम चिंता करने लगते हैं, जिससे हम थका हुआ और कमजोर महसूस करते हैं। आवश्यक तैयारी और अत्यधिक चिंता के बीच एक बहुत ही महीन रेखा होती है। यह तैयारी इस तरह की जा सकती है जिससे दिमाग में नकारात्मक संभावनाओं या परिणामों की अधिकता न हो।

(कल जारी रहेगा …)

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