गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व (भाग 3)

September 21, 2023

गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक महत्व (भाग 3)

  1. श्री गणेश का बड़ा पेट समाने की शक्ति को दर्शाता है, जिसका अभिप्राय है कि, हमें लोगों की कमजोरियों और उनके गलत कार्यों के बारे में दूसरों से बात नहीं करनी चाहिए, बल्कि उन्हें अपने अंदर समा लेना चाहिए।
  2. श्री गणेश के हाथों में कुल्हाड़ी, रस्सी और कमल दिखाया जाता है और उनका एक हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में रहता है। जहां कुल्हाड़ी का अर्थ है कि, गलत व नकारात्मक आदतों को काटने की शक्ति, वहीं रस्सी पवित्र जीवनशैली के अनुशासन में बंधे रहने का प्रतीक है। और कमल का अर्थ है  कि, कीचड़ भरे वातावरण में रहते हुए भी अछूता व शुद्ध रहना। आशीर्वाद भरा हाथ बताता है कि दूसरों का आचरण, व्यवहार कैसा भी हो, लेकिन हमारे संकल्प और बोल आशीर्वाद भरे ही हों।
  3. उनके बैठने की मुद्रा में, उनका एक पैर जमीन को छूता है और दूसरा पैर वे मोड़कर बैठेते हैं जिसका मतलब है कि, हमें हमेशा ज़मीन से जुड़े रहकर विनम्र बने रहना है और संसार में रहते हुए भी उससे न्यारे होकर रहना है।
  4. साथ ही, उनके एक हाथ में मोदक; कड़ी मेहनत के बाद मिली सफलता को दर्शाता है। लेकिन उन्हें कभी भी मोदक को खाते हुए नहीं दिखाया गया है, जिसका मतलब है कि, सफलता हासिल करो लेकिन उसका श्रेय मत लो। मोदक एकता और सहयोग का प्रतीक भी है क्योंकि, इसे बनाने के लिए सभी 5 उंगलियों की आवश्यकता होती है।
  5. श्रीगणेश के पैरों के पास चूहे को बैठा दिखाया जाता है जिसका अभिप्राय है कि, बुराइयों और इच्छाओं पर विजय का प्रतीक स्वयं गणेश जी हैं; जिस प्रकार चूहा एक छोटे से छेद से भी चुपचाप घर में प्रवेश कर जाता है, उसी प्रकार जो आत्मा सचेत नहीं होती, उसमें भी विकार चुपचाप प्रवेश कर जाते हैं। तो इस प्रकार जब हम श्री गणेश के सभी गुणों को अपना लेंगे तो, अपनी बुराइयों और इच्छाओं पर काबू पा लेंगे।

ऐसे ही जब हम अपने हर संकल्प, बोल और कर्म में “श्री गणेश” के प्रतीक; दिव्य गुणों को अनुभव करना और स्वरूप बनना शुरू करते हैं, तो हमारी बाधाएं नष्ट हो जाती हैं और हम अपने जीवन में हर कदम पर पवित्रता, शांति और समृद्धि का आनंद लेते हैं।

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