गणेश चतुर्थी की दिव्यता और आध्यात्मिकता (भाग 1)

September 7, 2024

गणेश चतुर्थी की दिव्यता और आध्यात्मिकता (भाग 1)

इस वर्ष गणेश चतुर्थी 7 सितंबर से 17 सितंबर तक मनाई जाएगी। आइये, हम श्री गणेश के जन्म का वास्तविक अर्थ समझते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, शंकर जी ने उस बालक का सिर काट दिया, जिसे देवी पार्वती जी ने स्नान करते समय द्वार की रक्षा के लिए अपने शरीर की धूल से बनाया था और फिर शंकर जी ने उस बालक के शरीर पर हाथी का सिर रख दिया। यह प्रतीक है कि परमपिता परमात्मा हमारे अहंकार के सिर को समाप्त कर, उसे ज्ञान के सिर से बदल देते हैं। ज्ञान हमें सभी बाधाओं को समाप्त करने की शक्ति देता है या हमारे जीवन में विघ्न विनाशक बनने की शक्ति देता है, जिसका प्रतीक श्री गणेश हैं। आइए, श्री गणेश के सभी अन्य पहलुओं को और उनकी दिव्यता और आध्यात्मिकता को समझें –

 

  1. श्री गणेश का बड़ा माथा ज्ञान का प्रतीक है। जब हम परमपिता द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान का अध्ययन करते हैं और उसे अपने हर विचार, वचन और कर्म में धारण करते हैं, तो हम ज्ञान से परिपूर्ण हो जाते हैं।

 

  1. चौड़े कान जो छलनियों (छानने के उपकरण) के आकार के होते हैं, इसका अर्थ है कि हम हर व्यक्ति और परिस्थिति में केवल अच्छा ही ग्रहण करते हैं। शुद्ध जानकारी को आत्मसात करने से हमारा मन स्वच्छ रहता है। 

 

  1. छोटी आंखें दूरदर्शिता का प्रतीक हैं, जिसका अर्थ है कि हम हर कर्म, करने से पहले उसके भविष्य के परिणाम को देखें।

 

  1. श्री गणेश का छोटा मुख; हमें कम बोलने और प्रत्येक शब्द को हमारे और दूसरों के लिए आशीर्वाद बनाने की याद दिलाता है।

 

  1. सूंड इतनी शक्तिशाली होती है कि पेड़ों को उखाड़ सकती है और इतनी कोमल कि बच्चे को उठा सके। इसका मतलब है कि हमें भावनात्मक रूप से कोमल और मजबूत होना चाहिए। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते समय प्रेम और कानून के संतुलन को बनाए रखना चाहिए।

 

  1. श्री गणेश को केवल एक दांत के साथ दिखाया गया है। इसका तात्पर्य है कि हमें पसंद-नापसंद, सुख-दुख, सुखद-अप्रिय, अच्छा-बुरा जैसे द्वन्द में नहीं फंसना चाहिए। हमें इन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए और सभी परिस्थितियों में संतुष्ट और शांत बने रहना चाहिए।

(कल जारी रहेगा …)​

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