गणेश चतुर्थी की दिव्यता और आध्यात्मिकता (भाग 2)

September 8, 2024

गणेश चतुर्थी की दिव्यता और आध्यात्मिकता (भाग 2)

  1. श्री गणेश का बड़ा पेट, धारण करने की शक्ति का प्रतीक है। हमें दूसरों के सामने लोगों की कमजोरियों या गलतियों की चर्चा नहीं करनी चाहिए।

 

  1. श्री गणेश के हाथों में फरसा, रस्सी और कमल दिखाया जाता है और उनका एक हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में होता है। फरसा; नकारात्मक आदतों को काटने की शक्ति का प्रतीक है। रस्सी; एक शुद्ध जीवनशैली के अनुशासन से बंधे रहने का प्रतीक है। कमल का जीवन मतलब कीचड़ में रहते हुए भी अनछुए और शुद्ध रहना। आशीर्वाद देने वाला हाथ इस बात का प्रतीक है कि, दूसरों का व्यवहार कैसा भी हो, हमारे विचार और शब्द उनके लिए आशीर्वाद समान होने चाहिए।

 

  1. उन्हें एक पैर जमीन पर और दूसरा मोड़े हुए बैठे हुए दिखाया जाता है। यह हमें स्मरण कराता है कि हमें हमेशा जमीन से जुड़े हुए और विनम्र रहना चाहिए। संसार में रहकर भी संसार से साक्षी रहना चाहिए।

 

  1. उनके एक हाथ में रखा हुआ मोदक; कठिन परिश्रम के परिणामस्वरूप सफलता का प्रतीक है। लेकिन उन्हें कभी भी उसे खाते हुए नहीं दिखाया गया है, जिसका अर्थ है कि सफलता प्राप्त करें, लेकिन उसका श्रेय न लें। मोदक; एकता और सहयोग का भी प्रतीक है क्योंकि मोदक बनाने के लिए सभी 5 उंगलियों की आवश्यकता होती है।

 

  1. श्री गणेश के पैरों के पास दिखाया गया चूहा; बुराइयों और इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है। जिस प्रकार एक चूहा चुपचाप घर में एक छोटे से छेद से भी प्रवेश कर जाता है, उसी प्रकार बुराइयाँ उस आत्मा में प्रवेश करती हैं जो सजग नहीं रहती। जब हम श्री गणेश के सभी गुणों को आत्मसात कर लेते हैं, तो हम अपनी बुराइयों और इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं।

 

जब हम श्री गणेश द्वारा प्रतीकात्मक रूप से दर्शाए गए, दिव्य गुणों का अनुभव करना और उन्हें अपने हर विचार, वचन और कर्म में व्यक्त करना शुरू कर देते हैं तो हमारे समस्त विघ्न नष्ट हो जाते हैं और जीवन के हर कदम पर हमें पवित्रता, शांति और समृद्धि का अनुभव होता है​​।

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