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November 24, 2024
कल हमने देखा कि कैसे हमारे विचार, हमारी भावनाओं को जन्म देते हैं और हमारी भावनाएं हमारे दृष्टिकोण को विकसित करती हैं। आइए इस प्रक्रिया के शेष चरणों पर नज़र डालें।
लोगों और परिस्थितियों के प्रति मेरा नजरिया मेरे दृष्टिकोण, व्यवहार और प्रतिक्रिया को निर्धारित करता है। इसलिए मेरे नजरिए से मेरे कार्य संचालित होते हैं। कल के उदहारण का उपयोग करते हुए- मैं एक कर्मचारी हूँ जिसका स्वयं के कार्यालय के प्रति नजरिया अपनेपन का है। इसके चलते मुझे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करता हूँ। मैं लगन से काम करता हूँ और अपनी कंपनी के लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाता हूँ।
किसी भी कार्य को दो बार, तीन बार या दस बार दोहराने से वह हमारी आदत बन जाती है। जब मैं एक अच्छा प्रदर्शन करने वाला कर्मचारी बनता हूँ, तो मैं उससे जुड़े सभी फायदों का आनंद लेता हूँ। इससे मेरी खुशी बढ़ती है और मुझे अगले कार्य में और बेहतर करने के लिए प्रेरणा मिलती है। इसलिए मुझे खुश रहने, अच्छा प्रदर्शन करने और सफल होने की आदत पड़ जाती है।
जो मैं बार-बार करता हूँ, वही बन जाता हूँ। इसलिए मेरी सभी आदतें मिलकर मेरे व्यक्तित्व को आकार देती हैं। और मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन जाती है, मेरे व्यवहार में दिखना शुरू होती हैं। इस तरह से मेरी खुशी सिर्फ़ मेरे कार्यस्थल तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि हर जगह मेरे साथ रहती है और मैं जो कुछ भी करता हूँ उसमें मेरी खुशी झलकती है।
जैसे मेरा व्यक्तित्व होगा, वैसा ही मेरा हर कार्य होगा। और जैसा मेरा कार्य होगा, वैसा ही परिणाम होगा। यह परिणाम ही मेरा भाग्य है।
सारांश: इस तरह सभी तत्व एक साथ आते हैं, मेरे विचार भावनाओं को जन्म देते हैं, भावनाएं मेरे दृष्टिकोण को, और दृष्टिकोण कार्य में आता है और बार-बार किए गए कार्य आदतों को जन्म देते हैं। आदतें मेरे व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं, और मेरा व्यक्तित्व मेरे भाग्य की पटकथा लिखता है। इसलिए पूरे दिन में मैं कैसा महसूस करना चाहता हूँ यह मेरी चॉइस है। मुझे किन भावनाओं का उपयोग करना है और किनसे बचना है, इस बात का चुनाव मैं ही करता हूँ। मेरे पास स्वयं की पसंद का भाग्य लिखने की शक्ति है। इसलिए मेरे द्वारा क्रिएट किए गए सकारात्मक विचार, मेरे भाग्य में खुशियां ही खुशियां लाते हैं।
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