
संबंधों को सुंदर बनाएं, अहंकार को त्यागें (भाग 2)
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
May 19, 2024
हम सभी, रात दिन के चक्र और चार ऋतुओं के चक्र के बारे में जानते हैं। हमेशा दिन के बाद रात और उसके बाद दिन होता है और चार ऋतुएँ/ सीजन हर साल दोहराए जाते हैं। इसी प्रकार से, संसार में पहले सुख का दिन रहा और उसके बाद दु:ख की रात आयी। दिन की तरह, संसार भी सुबह, दोपहर, शाम और रात की चार स्टेज से गुजरा है। और जैसे-जैसे दुनिया इन पड़ावों से गुज़रती गई, दुःख बढ़ता गया और खुशियाँ कम होती गईं। इन्फेक्ट, इतिहास के प्रथम दो चरण, जो कि अलिखित हैं जहां भरपूर सुख और शांति है उसका सच्चा ज्ञान केवल परमात्मा ही जानता है। इन दो चरणों को ही स्वर्ग या जन्नत कहा जाता है या मानवता का दिन कहा जाता है। बाद के, अंतिम दो चरणों में नेगेटिव कर्म किए जाने लगे और धीरे-धीरे मानवता के गुणों का पतन होता गया, इन्हीं दो चरणों को नर्क या मानवता की रात के रूप में जाना जाता है।
जैसे-जैसे, आत्माएं जन्म और पुनर्जन्म के प्रॉसेस से गुज़रीं, वे अपनी ओरिजनल आध्यात्मिक पहचान भूल गईं और इसके बजाय अपने भौतिक शरीर को ही अपनी पहचान मानने लगीं। इस गलत पहचान के कारण ही आत्माएं, विभिन्न प्रकार की कमजोरियों या नेगेटिव व्यक्तित्व विशेषताओं के प्रभाव में आ गईं। मैं एक आत्मा हूं यह पहचान भूल गईं और मैं यह शरीर हूं जिसमें मैं रहती हूं, इसकी गलत धारणा बनती गई। इस तरह से, हम पाप और दुःख की सीढ़ियों से नीचे गिरने लगे और मानवता की रात के अंत तक पहुँच गए, जोकि आज का ही समय है। आज अपार वैज्ञानिक उन्नति के बावजूद भी संसार में तन, मन, धन, रिश्ते-नातों और हमारी भूमिकाओं में बहुत दुःख है और पाप भी अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया है। साथ ही, आज दुनिया में कई लोगों को लगता है कि इससे नीचे अब और नहीं जा सकते। यही वह क्षण है, जब परमात्मा इस संसार को बदलने और मानवता के दिन को वापस लाने की अपनी विशेष भूमिका निभा रहे हैं क्योंकि समय का चक्र खुद को दोहराता है। दिन के बाद रात आई है और रात के बाद दिन अवश्य आएगा। ब्रह्माकुमारीज़ संस्था का भी यही उद्देश्य है कि, इस पुरानी कलयुगी दुनिया को बदलकर, रहने के लिए एक सुंदर और आनंदमय जगह बनाकर, खोया हुआ स्वर्ग पुनः प्राप्त करना है।
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
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