क्या प्रेम और दर्द साथ-साथ चलते हैं (भाग 3)

September 1, 2024

क्या प्रेम और दर्द साथ-साथ चलते हैं (भाग 3)

जब हम किसी तीव्र भावनात्मक पीड़ा से गुज़र रहे होते हैं, तो ऐसे में हमारे लिए आत्मा की शक्ति को व्यक्त करना और प्रेम की ऊर्जा को अनुभव करना; एक संघर्ष की तरह होता है। यदि हम किसी ऐसी स्थिति में हैं जो हमें दर्द दे  रही है, तो ये जरूरी है कि हम अपने मन को उस भावना से दूर हटाएं और स्थिर करें।

 

हमें दर्द का प्रतिरोध करना या उससे डरना नहीं चाहिए। जरूरी ये है कि हम इसके पीछे के कारण को जानें। आमतौर पर इसके लिए हम अन्य लोगों को ही जिम्मेदार मानते हैं जैसे कि- 

  • वह अब मुझे प्यार नहीं करता/ करती और इसलिए मुझे दर्द हो रहा है।
  • चीजें अब वैसी नहीं हैं जैसी पहले थीं।
  • इनके साथ अब मुझे पहले जैसा आराम महसूस नहीं होता है। 

एक बार जब हम बाहरी ट्रिगर को समझ लेते हैं, तो हमें इन बातों की सूक्ष्म जांच करनी चाहिए जोकि थोड़ा गहरी हैं- 

  • यदि हमें किसी व्यक्ति से प्रेम का अनुभव होना बंद हो गया है, तो क्या उनका यह व्यवहार हमारे दर्द का कारण है? या यह हमारी खुद की उस व्यक्ति से प्रेम पाने आशा या इच्छा है? 
  • क्या हम बदलावों को स्वीकार करते हैं या उनका विरोध करते हैं?
  •  क्या हमने अन्य लोगों को दोष देकर दर्द में जीना शुरू कर दिया है या फ़िर कुछ हद तक, हमें इन भावनाओं की लत लग गई है या इनसे लगाव हो गया है?  

 

हम सभी अपने व्यक्तिगत अनुभवों से जानते हैं कि, हमारा सबसे सुंदर संबंध भी एक पल में हमारे दर्द का कारण बन सकता है। लेकिन सच्चाई यह है कि हम स्वयं उस दर्द को चुनते हैं, नाकि कोई दूसरा व्यक्ति हमें दर्द देता है। कोई दूसरा हमें भावनात्मक रूप से आहत नहीं कर सकता। जब दूसरों से हमारी अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं, तब हम दर्द की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में, मेडिटेशन जैसा आध्यात्मिक अभ्यास हमारे अंदर सकारात्मकता का विकास करता है और हमें हर चीज़ को उसी तरह स्वीकार करने की शक्ति देता है जैसा कि हमने उसे चुना है। यह हमें लोगों को जैसे हैं उन्हें वैसे ही स्वीकार करना और सही कार्य करना सिखाता है। साथ ही, यह हमें परमात्मा जोकि शुद्ध प्रेम के सागर हैं के साथ उनके बिना शर्त प्यार से भी जोड़ता है। परमात्मा के साथ का यह संबंध ही हमें हमारी भावनात्मक रुकावटों को हील करने में मदद करता है ताकि लोगों के प्रति हमारा प्यार और सम्मान स्वाभाविक रूप से बहता रहे।

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