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December 17, 2024
बिना अपेक्षाओं या शर्तों के प्रेम करना कभी दुःख नहीं देता। लेकिन इच्छाओं और मांगों के साथ किया गया प्रेम व्यापार जैसा हो जाता है। जैसे बोल और व्यवहार मुझे पसंद हैं, तुम वैसा मेरे साथ करो और बदले में तुम्हें वो दूंगा जो तुम्हें पसंद है। इसके विपरीत, वह प्रेम जो बिना किसी शर्त या मांग के होता है, अक्सर असंभव लगता है। लेकिन यही वह प्रेम है, जिससे परमात्मा परिपूर्ण हैं। परमात्मा से जुड़ें और हर आत्मा को एक प्रेमपूर्ण आत्मा के रूप में देखें जो मेरा आध्यात्मिक बहन-भाई है और परमात्मा की संतान है जो निःस्वार्थ प्रेम का सागर है। हमें भी ऐसा ही प्रेम दूसरी आत्माओं को देना है। ऐसा दृष्टिकोण, जिसमें हमारा हर किसी के साथ शाश्वत आत्मिक भाईचारे का रिश्ता होता है, जीवन को बहुत सरल बना देता है। ऐसे रिश्ते में, जब प्रेम वापस नहीं मिलता या उतना नहीं मिलता जितना हम चाहते हैं, तो हम न थकते हैं, न दबाव महसूस करते हैं।
लोगों ने शुद्ध प्रेम के सही अर्थ को समझने में गलती की है और उसमें आसक्ति को मिलाकर उसे अशुद्ध रूप दे दिया है, जिससे हमेशा दुःख होता है। आसक्ति से भरा प्रेम चोट पहुंचाता है, क्योंकि इसमें कई शर्तें और बंधन होते हैं। यही कारण है कि ऐसे कई संबंध, जिनकी नींव आसक्ति अर्थात लगाव पर टिकी होती है, जल्दी ही टूट जाते हैं। शुरुआत में ये संबंध खुशियों और वादों से भरे होते हैं, लेकिन जल्द ही लोग, जो स्वाभाविक रूप से पूर्ण नहीं हैं, दूसरे व्यक्ति की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं। साथ ही, वे दूसरे व्यक्ति के स्वभाव और सोचने-समझने के तरीके के साथ सामंजस्य (तालमेल) नहीं बिठा पाते, चाहे वह व्यक्तिगत संबंध हो या व्यावसायिक। प्रेम वह गुण है, जो किसी भी संबंध को सफल बनाने की कुंजी है, और यहां हम केवल जीवन साथी के संबंधों की बात नहीं कर रहे।
(कल जारी रहेगा …)
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