
रिश्तों में पीड़ा से मुक्त होने का अनुभव (भाग 1)
रिश्तों में पीड़ा से मुक्त होना सीखें! निःस्वार्थ प्रेम अपनाएं, भावनात्मक संतुलन बनाए रखें और गहरे आध्यात्मिक संबंधों का अनुभव करें। 🌸
December 21, 2024
यह संदेश का अंतिम भाग है, जिसमें सही तरीके से संबंधों को जीवन में जीने के बारे में बताया गया है। यहां हम यह समझाते हैं कि एक अच्छा संबंध प्रबंधक कैसे बनें। दूसरे शब्दों में, अपने संबंधों को कैसे निभाएं कि हर एक संबंध में सामने वाले व्यक्ति के दिल में हमारे लिए हमेशा प्रेम और आशीर्वाद भरा हुआ हो। साथ ही, हम उनसे शुभभावनाओं के रूप में उस प्रेम का अनुभव करें, जो हमें आध्यात्मिक स्तर पर भरपूर कर दे।
आत्मचेतन अवस्था में रहने से संबंधों को आध्यात्मिक रूप से जीने का तरीका मिलता है। आध्यात्मिकता सिखाती है कि इस संसार में हर मनुष्य वास्तव में एक आत्मा है, जिसकी मूल विशेषताएँ शांति, प्रेम और सुख हैं। हर आत्मा जब ऊपर आत्मलोक से इस भौतिक संसार में अपनी भूमिका निभाने आती है, तो यह सभी गुण उसमें भरपूर होते हैं। उसकी इस प्रारंभिक अवस्था को आत्मचेतन अवस्था कहा जाता है, जिसमें आत्मा के गुण एक सुगंधित फूल की तरह होते हैं। और हमारे सभी संबंधों में, हर कोई इन गुणों का अनुभव करता है। लेकिन जब हम अलग-अलग तरह की नकारात्मकताओं के प्रभाव में आना शुरू करते हैं तब आत्मा अपने गुण और सुगंध खो देती है। और फिर वे इन्हें बाहर खोजने की आवश्यकता महसूस करती है। यही वह समय था जब संबंधों में संतुलन बिगड़ गया और हमने अपने प्रेम और आनंद के लिए दूसरों पर निर्भर होना शुरू कर दिया या कहें कि मांगना शुरू कर दिया। यह उस मशहूर कस्तूरी मृग की कहानी की तरह है, जो यह नहीं जानता था कि वह जिस सुगंध को खोज रहा है, वह उसकी अपनी नाभि में ही छुपी हुई है और वहीं से चारों ओर फैल रही है। इसी तरह, हमने अपने आत्मिक स्व को खो दिया और अपने आत्मचेतन स्वरूप में शांति, प्रेम और सुख को अनुभव करने का तरीका भूल गए। हमने इन विशेषताओं को अपने माता पिता, बच्चे, भाई-बहन, जीवन साथी या मित्र से पाने की कोशिश शुरू कर दी। जबकि संतुलन को बहाल करने का सही तरीका है; आध्यात्मिकता के ट्राएंगल को पूरा करना। इसमें, हम परमात्मा को वह स्त्रोत मानते हैं, जिससे हम शांति, प्रेम और सुख ग्रहण करते हैं। अर्थात परमात्मा प्रेम, सुख और शांति के सागर हैं। हम अपने आत्मचेतन स्वरूप में इन गुणों को जान पाते हैं और बढ़ाते हैं और साथ ही दूसरों के साथ साझा करते हैं। बजाय इसके कि हम दूसरों से शांति, प्रेम और सुख पाने की अपेक्षा करें।
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