परमात्मा कैसे इस विश्व को प्योर बनाते हैं? (भाग 2)

July 10, 2024

परमात्मा कैसे इस विश्व को प्योर बनाते हैं? (भाग 2)

परमात्मा; सदा और परिवर्तन से परे हैं और वे अपनी पवित्रता, गुणों और शक्तियों में सदा भरपूर और स्थिर रहते हैं। जैसा कि उन्होंने अपने आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से प्रकट किया है, कि इस पृथ्वी ग्रह पर, 5000 वर्षों का विश्व नाटक चार समान स्टेजेस से गुजरता है- 1250 वर्षों का हरएक युग; स्वर्ण युग, रजत युग, ताम्र युग और लौह युग। वर्ल्ड ड्रामा के पहले दो चरण यानि कि स्वर्ण और रजत युग में सभी मानव आत्माएं और अन्य प्रजातियों की आत्माएं पूरी तरह से शुद्ध और खुशहाल हैं और दुनिया में 100% सद्भाव है। प्रकृति भी पूर्णतः शान्त एवं पवित्र है। फिर तीसरे चरण या द्वापर युग की शुरुआत में; स्वर्ण युग से शुरू करने वाली मानव आत्माओं में कुछ जन्मों की यात्रा करने के बाद, आध्यात्मिक शक्ति थोड़ी कम हो जाती है। इससे वे देह-अभिमान और पाँच विकारों- काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के प्रभाव में आने लगते हैं और पतित बनने लगते हैं। साथ ही अन्य योनियों की आत्माएं भी अपनी आध्यात्मिक शक्ति कम होने के कारण तथा मानव आत्माओं के नेगेटिव वायब्रेशन के प्रभाव में आने के कारण अशुद्ध होने लगती हैं और पांच विकारों के प्रभाव में आने लगती हैं। इस प्रॉसेस से प्रकृति में भी नकारात्मकता पैदा होने लगती है और उसकी स्पिरीचुअल वायब्रेशन भी नकारात्मक एवं अशुद्ध होने लगती हैं। और जैसे ही हम चौथे चरण या लौह युग के अंत में आते हैं, जो कि वर्तमान समय है, इन तीनों में अशुद्धता अपने चरम पर पहुंच जाती है। चूँकि परमात्मा इन तीनों से ऊपर, हाईरारिकी के शीर्ष पर हैं, वे इस समय यानि कि लौह युग और स्वर्ण युग के बीच (वर्तमान समय); संगम युग या फिर विश्व परिवर्तन के युग में इन तीनों को शुद्ध करने की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करते हैं। संगमयुग के बाद फिर स्वर्णयुग वा सतयुग शुरू होता है और 5000 वर्ष का वर्ल्ड ड्रामा फिर से रिपीट होता है। 

 

आइए जानें कि वर्तमान समय; विश्व नाटक के संगम युग में, परमात्मा मनुष्य आत्माओं को, भिन्न-भिन्न प्रजाति की आत्माओं और प्रकृति को कैसे पावन बनाते हैं? इसके लिए उनका पहला कदम होता है- वे मनुष्य आत्माओं के साथ, स्वयं के बारे में, उन आत्माओं और उनके जन्मों और 5000 वर्षों के विश्व नाटक और उसके रिपीटिशन के बारे में आध्यात्मिक ज्ञान साझा करते हैं। साथ ही, वे सिखाते हैं कि कैसे मनुष्य आत्माएं सोल कांशियसनेस का अनुभव करके, इस फिजिकल यूनिवर्स से परे, सोल वर्ल्ड में मेडिटेशन के द्वारा परमात्म से जुड़ें, उन्हें याद करें। इसके अलावा, वह मनुष्य आत्माओं को पवित्रता, नम्रता, सहनशीलता और संतुष्टि जैसे दिव्य गुणों को आत्मसात करना सिखाते हैं और परमात्मा से प्राप्त ज्ञान, गुणों और शक्तियों को अन्य मनुष्य आत्माओं और विश्व की सेवा में लगाना भी सिखाते हैं। ये सभी चार पहलू- ज्ञान, योग, दैवीय गुणों को धारण करना और आध्यात्मिक सेवा द्वारा अन्य सभी मनुष्य आत्माओं को शुद्ध करने और उन्हें सोल कॉन्शियसनेस बनाने के साथ-साथ पूरी दुनिया को शुद्ध करने में भी मदद करते हैं। 

(कल जारी रहेगा…)

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