प्रशंसा की इच्छा से मुक्त होना (भाग 2)

July 23, 2024

प्रशंसा की इच्छा से मुक्त होना (भाग 2)

  1. हमेशा याद रखें कि  यह दुनिया एक नाटक है और हम सब इस नाटक के अभिनेता हैं और एक अभिनेता के रूप में, हमें अपने सभी कार्य पूरी क्षमता के साथ करने चाहिए। लेकिन अपने कार्य क्षेत्र में कर्म करते हुए यह संभव नहीं है कि हर समय हमारे प्रदर्शन या अभिनय से सभी खुश हों। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमने अपने पिछले कई जन्मों और वर्तमान जन्म में अनेकों आत्माओं के साथ नकारात्मक कर्मों का जाल बुना है। इस कारण, कभी-कभी हमारे अच्छे कार्य भी गलत रूप में देखे जाते हैं या कभी-कभी नोटिस नहीं किए जाते। कर्मों की गति बहुत ही रहस्मय है जब हम कर्म के इस छिपे हुए रहस्य को समझते हैं, तो हम केवल अपनी खुशी के लिए अच्छे कार्य करेंगे, न कि दूसरों को खुश करने या उनकी मान्यता पाने के लिए, जो मिल भी सकती है और नहीं भी। मान लीजिए कि, मैं किसी नेगेटिव माइंड और गुस्सैल व्यक्ति से प्रेमपूर्वक और मधुरता से बात करता हूं, तो क्या यह सम्भव है वो भी हमेशा उसी तरह से जवाब देंगे? तो क्या मुझे भी उनके प्रति अच्छा होना छोड़ देना चाहिए? मुझे भी नकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए? नहीं क्योंकि दूसरों से मिलने वाली प्रशंसा से अधिक महत्वपूर्ण है अपनी स्वयं द्वारा और परमात्मा द्वारा प्रशंसा, जिनकी नज़र पूरे दिन मेरे कर्म और व्यवहार पर रहती है।

 

  1. हम सभी आध्यात्मिक स्तर पर भाई-भाई हैं। भाई होने के नाते, हम एक-दूसरे के साथ आध्यात्मिक प्रेम का बंधन साझा करते हैं और एक-दूसरे से प्रेम, देखभाल और सम्मान करना हमारा मूल कर्तव्य है। लेकिन जब हम दूसरों की सेवा करते हुए ऐसा मानते हैं कि हमें उसके लिए मान्यता मिलनी चाहिए, तो हम इसे भूल जाते हैं। परमात्मा अलग-अलग तरीकों से पूरे विश्व की सेवा करते हैं। वे हमें विभिन्न तरीकों से मदद करते हैं, लेकिन कभी-कभी हम इसे महसूस नहीं कर पाते। तो क्या वे भी मान्यता की तलाश में रहते हैं? नहीं। इसलिए उनके बच्चों के रूप में, हमारा कर्तव्य है कि, हम हर किसी मिलने वाले के प्रति अपने हर विचार, हर बोल और प्रत्येक कार्य में उस आत्मा की भलाई के साथ सेवा करें और बदले में भलाई की उम्मीद न करें। हम अक्सर कहते हैं कि इस व्यक्ति ने हमें गलत समझा और फिर हम आहत होकर  दुखी  होते हैं क्योंकि उस व्यक्ति ने हमारी सराहना नहीं की।  इस तरह हम सुख और दुख का अनुभव करते है। इसीलिए निःस्वार्थ सेवाभाव ही, संतोष और प्रशंसा की इच्छा से, आंतरिक स्वतंत्रता की चाभी है।

(कल जारी रहेगा…)

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