अंदर के ‘मैं’ का अहसास और अनुभव (भाग 3)
यदि हम अपने जीवन का अधिकांश समय अपनी विशेषताओं, अपने व्यक्तित्व या अपनी भूमिका को निभाने में या उनसे जुड़े रहते हैं, तो समय के
October 7, 2023
हममें से कई लोगों को रिश्तों के बारे में यह गलत धारणाएं हैं कि, किसी भी रिश्ते में सही तरीके से व्यवहार करना और बोलना ही रिश्ते निभाना है, ऐसा इसलिए है क्योंकि हम सोचते हैं कि, लोग केवल वही देखते हैं, फील करते हैं जो हम बोलते और अपने हाव भाव द्वारा व्यक्त करते हैं। हमें लगता है कि, वे हमारे अंदर की सोच और एनर्जी को नहीं समझ पाते हैं, इसलिए हम उनसे व्यवहार में आते हुए, अपने विचारों पर ध्यान नहीं देते हैं। तो स्वयं से पूछें – क्या आपने कभी मन में नेगेटिव फीलिंग रखते हुए भी, बाहर से अपनी बोलचाल पॉजिटिव रखी है कि, सामने वाला व्यक्ति केवल आपकी बातें ही सुन सकता है? क्या आपने कभी किसी से कहा है कि, आपको उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा, भले ही आप अंदर ही अंदर बोर महसूस कर रहे हों? इसके लिए हमें अपनी गहराई से चेकिंग करनी होगी और अवेयर रहना होगा कि, हम अपने विचारों, बोलचाल और कर्म में कैसे अलग तरीके से बिहेव करते हैं। रिश्ता निभाना; सिर्फ माता-पिता, बच्चे, पति पत्नी, भाई बहन, दोस्त, सीनियर जूनियर, या दो अजनबियों के बीच केवल एक भूमिका या जिम्मेदारी निभाने का लेबल नहीं है बल्कि ये दो बीइंग के बीच एनर्जी के आदान-प्रदान के बारे में भी है। हर एक आत्मा अपने विचारों, बोल और कर्म के द्वारा एनर्जी क्रिएट करती है और किसी भी मोमेंट में हम जिसके साथ एनर्जी का आदान-प्रदान कर रहे होते हैं, हम उनके साथ एक रिश्ते में ऑलरेडी होते हैं।
हम सभी एक मिनट में; लगभग 25 से 30 थॉट क्रिएट करते हैं, लगभग 3 से 4 वाक्य बोल सकते हैं और एक मिनट में 1 से 2 एक्शन भी परफॉर्म कर सकते हैं। इसलिए चूँकि एक मिनट में थॉट की संख्या बहुत अधिक है और इसकी एनर्जी भी साउंड की तुलना में तेज़ है, इसलिए हमारे थॉट हमारे रिश्तों का आधार बन जाते हैं। फिर भले ही हम; एक-दूसरे के साथ शारीरिक रूप से मौजूद न भी हों, लेकिन थॉट पैदा होते रहते हैं। इसलिए, किसी दूसरे व्यक्ति के लिए; उनके प्रति क्रिएट किए गए थॉट की संख्या, उनसे बोले गए शब्दों या उनके प्रति किए गए हमारे व्यवहार से कहीं अधिक है। अतः, आएं हम हर पल किसी के भी प्रति क्रिएट किए गए; अपने हर विचार का ध्यान रखें, ख्याल रखें, और याद रखें कि, यही हमारे रिश्ते की नींव है। अगर हम किसी भी रिश्ते की क्वालिटी को बदलना चाहते हैं तो हमें सिर्फ उनके बारे में अपनी सोच को परखना होगा। “सोच बदलने से रिश्ते बदल जायेंगे”।
यदि हम अपने जीवन का अधिकांश समय अपनी विशेषताओं, अपने व्यक्तित्व या अपनी भूमिका को निभाने में या उनसे जुड़े रहते हैं, तो समय के
हम सभी को स्वयं को दूसरों के नजरिए से, दृष्टिकोण से देखने की आदत हो चुकी है, जो शारीरिक दृष्टिकोणों पर आधारित है और सांसारिक
हम सभी अपना जीवन बहुत तेज़ी से जीते हैं, एक दृश्य के समाप्त होते ही अगले दृश्य में चले जाते हैं, फिर पहले दृश्य को
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