रिश्तों में थॉट एनर्जी का महत्व (भाग 3)

January 19, 2024

रिश्तों में थॉट एनर्जी का महत्व (भाग 3)

पैरेंट-चाइल्ड रिलेशनशिप हमारे पूरे जीवन की नींव है। क्योंकि बच्चे अपने जीवन में काफ़ी सारी आदतें अपने माता-पिता से ही सीखते हैं। लेकिन अक्सर ये देखा जाता है कि, माता-पिता अपने बच्चों के अंदर पॉजिटिव आदतें फोर्सफुली लाने की कोशिश भी करते हैं। इसके साथ ही एक और बात जो नैचुरली सभी माता-पिता में देखी जा सकती है वो है; अपने बच्चों को नेगेटिव कार्यों जैसे कि; गुस्सा करना, झूठ बोलना, टीवी और इंटरनेट टेक्नोलॉजी के माध्यम द्वारा अनुचित कंटेंट देखना, युवावस्था में संबंधों में इन्वॉल्व होना या फिर गलत आदतें स्मोकिंग और ड्रिंकिंग आदि करने पर डांटना इत्यादि। परंतु इसके अलावा, यदि बच्चे अपने पैरेंट्स द्वारा बताए गए नियमों का पालन करके वे कुछ बदलाव लाते हैं, तो भी पैरेंट्स संतुष्ट नहीं होते हैं जिससे उनके और बच्चों के बीच संबंधों में तनाव बढ़ जाता है। आखिर ऐसा क्यों है कि, बच्चे इस बात को जानते हुए भी कि माता-पिता उनको लेकर चिंतित हैं, फिर भी वे अपनी नेगेटिव हैबिट्स को बदल नहीं पाते? इसके पीछे हमें ये समझने की जरूरत है कि माता-पिता के शब्दों के अलावा, एक बहुत ही शक्तिशाली माध्यम जो बच्चों को फिजिकल लेवल पर इफेक्ट करता है वो है उनकी पर्सनालिटी का वायब्रेशन जो दिखाई तो नहीं देता, पर बच्चों पर बहुत ही सूक्ष्म रूप से कार्य करता है। क्योंकि ये वायब्रेशन उनके शब्दों से पहले और तेज़ी से पहुंचते हैं। इसका एक्चुअल रीज़न है कि; माता-पिता बच्चों से बदलाव या परिवर्तन की उम्मीद तो रखते हैं, पर वे खुद उस बदलाव को अपने अंदर नहीं लाते हैं, जिसका बहुत ज्यादा प्रभाव उनके बच्चों पर पड़ता है। यहां बदलाव का अर्थ है कि; स्वयं माता पिता के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसी नेगेटिव आदतों के होने से उनकी सूक्ष्म ऊर्जा, उनके शब्दों और निर्देशों से बहुत पहले ही उनके बच्चों तक पहुंचकर उनके मन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

 

इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण संबंध जो बहुत प्रभावशाली होता है वो है बच्चों का स्कूल के शिक्षकों के साथ संबंध। बहुत सारी जानकारियों से पता चलता है कि, एक शिक्षक की अपने विद्यार्थियों के प्रति नेगेटिव वा पॉजिटिव आशाएं उनके एकेडमिक परफॉर्मेस को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। यदि शिक्षक को अपने विद्यार्थी के अच्छे रिजल्ट और उसकी सफलता पर पूरा-पूरा विश्वास होता है, तो विद्यार्थी की परफॉर्मेंस भी उसकी स्वयं की वास्तविक क्षमता के बहुत नज़दीक होती है, भले ही उसे खुद अच्छे रिज़ल्ट आने की उम्मीद न भी हो। अक्सर स्कूलों में बच्चों के परफॉर्मेंस को लेकर शिक्षकों की जो बातचीत होती है, वे उनके विचारों से मेल नहीं खाती हैं, एक तरफ तो वो विद्यार्थियों को अपने शब्दों द्वारा आशा और सफलता का विश्वास दिलाते हैं पर वहीं दूसरी ओर उनके विचार आशावादी नहीं होते। उनके मन में बच्चों की असफलता के लिए डर के नकारात्मक विचार, प्रोत्साहन भरे पॉजिटिव शब्दों के बाद भी बच्चों के दिमाग पर नेगेटिव प्रभाव डालते हैं जिसके चलते स्कूल की परीक्षाओं में बच्चों का प्रदर्शन खराब हो जाता है।

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