
कम बोलें, धीरे बोलें और मीठा बोलें
कम बोलना, धीरे बोलना और मीठा बोलना केवल एक कला नहीं, बल्कि प्रभावशाली कम्युनिकेशन की कुंजी है। जब हम शब्दों को सोच-समझकर बोलते हैं, तो वे सुनने वाले के दिल तक पहुंचते हैं।
June 26, 2024
एक बहुत ही महत्वपूर्ण आध्यात्मिक शक्ति जिसकी हमें कभी-कभी जरूरत होती है लेकिन हमारे अंदर उसकी कमी होती है वो है; दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व और व्यवहार के अनुसार खुद को ढालने की शक्ति। यहां, स्वयं को ढालने का अर्थ है कि, परिस्थिति के हिसाब से या फिर किसी व्यक्ति विशेष के साथ व्यवहार में आने पर खुद के स्वभाव में एडजस्ट करना। मान लीजिए कि, कोई मेरे किसी विशेष व्यवहार के कारण गुस्से में है ऐसी स्थिति में, मैं भी सही हो सकता हूँ और मुझे दूसरे व्यक्ति द्वारा मुझमें कमियां निकालना गलत महसूस हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में खुद को ढालने का अर्थ है; कम बहस करना, झुक जाना, विनम्र होना और मैं सही हूँ इस कॉन्शियसनेस का बलिदान देना। इसके साथ ही, सामने वाले व्यक्ति को सम्मान देना, पॉजीटिव रहना, उसे अपने से आगे रखना भी एक एडजस्टिंग व्यक्ति की निशानी है। इसके साथ एक तीसरी ताकत या शक्ति है; अच्छे और बुरे, सही और गलत में फर्क़ करने और सही का चयन करके उसे मन, वाणी और कर्म में प्रैक्टिकली अप्लाई करने की शक्ति। मान लीजिए कि, मुझे ये समझ है कि किसी निश्चित परिस्थिति में विशेषकर लोगों के साथ डील करने के समय मेरे पास दो ऑप्शन हैं जिसमें से बेहतर ऑप्शन है कि मेरी बुद्धि में जो ज्ञान है उसका उपयोग करके मैं सही का चुनाव करूँ और सही निर्णय लूँ।
दूसरी शक्ति है किसी स्थिति और व्यक्ति को सहन करने की शक्ति। कई बार हम ये देखते हैं किसी एक व्यक्ति का व्यवहार हमसे अलग होने के कारण हम उसे सहन नहीं कर पाते और नकारात्मक तरीके से रिएक्ट या रिस्पौंड करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि हमारे अंदर सहनशक्ति नहीं होती है। इसके साथ ही, सामना करने की शक्ति भी एक बहुत महत्त्वपूर्ण शक्ति है, जिसके न होने के कारण हम मुश्किल परिस्थितियों में भयभीत हो जाते हैं। कभी-कभी, एक ही परिस्थिति को दो लोग, अलग-अलग तरह से समझते हैं क्यूँकि उनके अंदर एक ही शक्ति कम या ज्यादा हो सकती है। हम सभी के अंदर किसी न किसी शक्ति की कमी होती है और सिर्फ अभ्यास और निरंतर कोशिशों के द्वारा ही हम खुद को इन महत्वपूर्ण शक्तियों से भरपूर करके शक्तिशाली बना सकते हैं।
(कल जारी रहेगा….)
कम बोलना, धीरे बोलना और मीठा बोलना केवल एक कला नहीं, बल्कि प्रभावशाली कम्युनिकेशन की कुंजी है। जब हम शब्दों को सोच-समझकर बोलते हैं, तो वे सुनने वाले के दिल तक पहुंचते हैं।
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