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सहजता से स्वीकारें और उम्मीदों से मुक्त रहें

April 15, 2024

सहजता से स्वीकारें और उम्मीदों से मुक्त रहें

स्वीकार करने की कला; हमारे अंदर शांत रहने की क्षमता को विकसित करती है और जीवन के बहाव के साथ आसानी से बहना सिखाती है। ये हमें हल्के रहने और हल्के रहकर जीवन की यात्रा तय करने में मदद करती है क्योंकि ये हमें उम्मीदों, चिंताओं और पूर्वानुमान के बोझ से मुक्त करती है। हम लोगों और परिस्थितियों का विरोध करने या उन्हें सही या गलत मानने के बजाय, उनके साथ तालमेल बिठाना सीखते हैं। साथ ही, हम उन्हें अपने इमोशंस के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराते हैं। स्वीकार करने से, सबके प्रति प्रशंसा, प्रेरणा, प्यार और सम्मान के शेड्स भी जुड़ जाते हैं। जितना अधिक हम एक्सेप्टेन्स का अभ्यास और अनुभव करते हैं, उतना ही अधिक दूसरों द्वारा एक्सेप्ट किए जाने का भी अनुभव करते हैं। हम पहले एक्सेप्ट करते हैं फिर ऐक्ट करते हैं। फिर इस क्षण में चाहे जो कुछ भी हो, ये हमें ऐसे स्वीकार्यता का गुण सिखाता है जैसेकि इसे हमने स्वयं चुना हो। 

 

एक्सेप्टेन्स का मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि, सब कुछ सही है बल्कि इसका मतलब यह है कि; हमारे मन की स्थिति सही है। और ऐसा भी नहीं है कि, चीजें जैसी हैं वैसे ही रहने दें; बल्कि स्वीकार्यता माना, हम अपने मन को स्थिर रखें और परिस्थितियों को ठीक करने की दिशा में कार्य करें, जो हुआ उसे स्वीकार करना; यही समस्या का समाधान खोजने की दिशा में पहला कदम है। सबसे पहले हमें खुद को अपनी गलतियों और कड़े संस्कारों के साथ एक्सेप्ट करना है और फिर अपना पूरा ध्यान उन्हें सुधारने में लगाना है, वरना अक्सर हम गिल्ट और पछतावे में चले जाते हैं जिससे हमारी आत्मा की शक्ति घटती है। ये हमें बदलाव की तरफ आगे बढ़ने में मदद करता है। स्वीकार किए जाने के बंधन से मुक्त करता है और आगे बढ़ने और नया रास्ता बनाने में मदद करता है। लोगों को एक्सेप्ट करने का मतलब है; हम स्वीकार करते हैं कि, वे हमसे अलग हैं।  लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि, हम उनसे सहमत हैं, उनके नेगेटिव संस्कारों को स्वीकार करते हैं और उन्हें अपने तरीके से चलने देते हैं। इसका मतलब सिर्फ ये है कि, हमारा मन डिस्टर्ब नहीं है और उनके संस्कारों से साक्षी या डिटेच्ड है। स्थितियों को एक्सेप्ट करने का अर्थ है कि, हम समझ चुके हैं कि स्थिति ऐसी है। नाकि हम प्रश्न उठाते हैं कि, ये क्या है और क्या, कहाँ, कब और क्यूँ में फंसते हैं। जब हम स्थितियों को वो जैसी हैं वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं, तब हमारा मन शांत और स्थिर होता है। इसके परिणामस्वरूप; हमारे कार्य करने की क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। हमारा ध्यान समस्या से हटकर समाधान की ओर चला जाता है।

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