ब्रह्माकुमारीज का 7 दिवसीय कोर्स (भाग 3)
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
January 11, 2025
हम सभी अच्छे वक्ता हो सकते हैं, लेकिन क्या हम अच्छे श्रोता भी हैं? एक आदर्श बातचीत केवल हमारे बोलने की क्षमता और अपनी बात समझाने तक सीमित नहीं है। उससे भी महत्वपूर्ण है दूसरों को ध्यान से सुनना। सुनने से हम लोगों के इरादों को पहचान सकते हैं, मुद्दों को सुलझा सकते हैं और मजबूत संबंध बना सकते हैं। क्या आप अक्सर स्वयं को अधिक बोलते हुए पाते हैं और दूसरों को कम सुनते हैं? क्या आप मानसिक रूप से प्रतिक्रिया तैयार करना शुरू कर देते हैं, जबकि दूसरा व्यक्ति बोल रहा होता है? क्या किसी पॉइंट पर आपकी राय अलग होने पर, आप दूसरों को बीच में ही रोक देते हैं? “हमारे पास दो कान लेकिन मुंह एक ही है, इसलिए हमें बोलने से ज्यादा सुनना चाहिए” – यह एक सामान्य कथन है। लेकिन उम्र, पद, भूमिका और जिम्मेदारियों के बढ़ने के साथ, हम सुनने की कला को खोते जा रहे हैं। हम सामने वाले के शब्द तो सुनते हैं, लेकिन हमारा मन अंदर ही अंदर, उनके शब्दों पर जजमेंट देना शुरू कर देता है और प्रतिक्रिया तैयार करने लगता है। चूंकि हमारा मन बात कर रहा है, ऐसे में हम सचमुच में सुन नहीं रहे होते, बल्कि अस्वीकृति की ऊर्जा फैला रहे होते हैं। सुनने का असली अर्थ है; अपने मन को शांत करना। ये समझना कि सामने वाले की राय अलग हो सकती है। अपनी राय से अलग होकर उनके दृष्टिकोण को सम्मान देना और उनकी बातों को स्वीकार करना। साथ ही, बाहरी या भीतरी तौर पर अपने ध्यान को न भटकने दें। सामने वाले की बातें सुनें, चिंतन करें और फिर अपनी बात रखें। पूरे मन से उनकी बात सुनें, अगर वे गलत लगें तो भी अपनी राय अलग रखें।
संबंधों को बेहतर बनाने के लिए सुनने की कला को अपनाएं। जब कोई बोल रहा हो, तो ध्यान से सुनें। फोन, टीवी या कंप्यूटर जैसी चीजों से ध्यान हटाएं और सामने वाले की आंखों से संपर्क बनाए रखें। उनके व्यक्तित्व, उच्चारण या भाषा पर ध्यान न दें बल्कि हर शब्द को गौर से सुनें। उनकी ऊर्जा को महसूस करें, वे जैसे हैं उन्हें वैसे ही समझें। उन्हें बीच में न रोकें और अपनी बारी का इंतजार करें। शांत और धैर्यता से सुनें, सुनिश्चित करें कि लोग आपसे बात करने में सहज महसूस करें। अच्छे श्रोता बनने के लिए समझें कि वे क्या कह रहे हैं, क्या चाहते हैं। यदि आपके पास प्रश्न हों, तो उचित समय तक प्रतीक्षा करें और शालीनता से पूछें। यह आपकी बातचीत को सामंजस्यपूर्ण, पारदर्शी और शांतिपूर्ण बनाएगा और हर बातचीत को आपके और दूसरे व्यक्ति के लिए सुखद अनुभव बना देगा।
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
क्या आपका आत्म-सम्मान हार और जीत पर निर्भर करता है? इसे बदलें! खुद को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने का तरीका जानें, आत्मा की शक्ति को पहचानें, और हर कर्म को खुशी से करें।
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