March 30, 2025

वर्ल्ड ड्रामा (विश्व नाटक) अब अपने अंतिम पड़ाव पर है

वर्ल्ड ड्रामा एक ऐसा नाटक है जिसे सभी आत्माएं पृथ्वी ग्रह पर अवतरित होकर खेलती हैं और जिसके चार चरण वा युग होते हैं – सतयुग या स्वर्ण युग, त्रेतायुग या रजत युग, द्वापर युग या ताम्र युग और कलियुग या लौह युग। आत्मायें अनादि हैं इसलिए यह ड्रामा भी अनादि है, बार-बार रिपीट होता रहता है और आत्माएं अनेक जन्मों के चक्र में आकर अलग-अलग भूमिकाएं निभाती रहती हैं। इसके अलावा, इस नाटक में सबसे सुंदर रोल परमपिता परमात्मा द्वारा कलियुग के अंत में निभाया जाता है। एक वह ही हैं जो कलियुग को सतयुग में बदल देते हैं और सभी आत्माओं/ प्रकृति को फिर से “सकारात्मक और शुद्ध आध्यात्मिक ऊर्जा” से भर देते हैं, और ये नाटक एक बार फिर से नए सिरे से शुरू होता है। तो आएं देखें कि, नाटक में इस समय हम कहाँ पर हैं? हम सभी उस समय पर आ पहुंचे हैं, जब परमात्मा इस नाटक में अपनी भूमिका निभा रहे हैं यानि कि सतयुग की स्थापना के निर्माण का कार्य कर रहे हैं। चार युगों के नाटक के ये अंतिम क्षण हैं। तो आइए जानें कि, इस समय हमें क्या करना चाहिए?

  1. अपने अंदर की यात्रा करें और उन चारों युगों में अपनी यात्रा पर विचार करें। हम परमात्मा द्वारा दिए गए आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर; हर चरण की कल्पना कर सकते हैं। अब हम सबके लिए अपने घर; आत्माओं की दुनिया में वापस लौटने, कुछ समय के लिए वहां आराम करने और फिर वहां से पुनः वापस नीचे आकर एक नई यात्रा की तैयारी करने का समय आ गया है।
  2. परमात्मा ने हमें बताया है कि, पहले दो युगों में; हमारे संस्कार, हमारा स्वास्थ्य, धन संपत्ति, हमारे रिश्ते, भूमिकाऐं सब कुछ अच्छा था। फिर अगले दो युगों में हम देहभान के आकर्षण और आसक्ति के प्रभाव में इन सब में नीचे आते गए गए। इसलिए आइए, दोबारा वही गलतियाँ न करके केवल “सुंदर और सकारात्मक कार्य” ही करें।
  3. आइए हर दिन, परमात्मा द्वारा बताए गए आध्यात्मिक ज्ञान को सुनें, समझें और जो वह कहते हैं; उसे महसूस करें, अनुभव करें और उसका स्वरूप बनें। और साथ ही मेडिटेशन के अभ्यास द्वारा उन्हें सर्वोत्तम प्रकाशपुंज के रूप में अनुभव करके; हम आत्माओं के शाश्वत साइलेंस वर्ल्ड में उनके साथ जुड़ें। इससे हमारी आत्मा फिर से 100% शुद्ध हो जायेगी।
  4. यह वर्ल्ड ड्रामा अब अपने अंतिम चरण में है और हमें इन युगों द्वारा अपनी अगली यात्रा शुरू करने के लिए; अपनी आत्मा को सतयुग और उसके बाद भी; सभी गुणों, शक्तियों और सुंदर संस्कारों से भरपूर करना होगा। तो इसके लिए निरंतर परमात्मा के सत्संग में रहें और स्वयं को फिर से उन सभी गुणों, शक्तियों वा संस्कारों से भरपूर कर लें, जिन्हें हमने चार चरणों की यात्रा में समय के साथ साथ कहीं खो दिया था।
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