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जल - एक सामूहिक उत्तरदायित्व

जल प्रकृति द्वारा मनुष्य को दी गई एक महत्वपूर्ण सम्पत्ति में से एक है। जीवन जीने के लिए जल की आवश्यकता काफी ज्यादा होती है। ‘जल ही जीवन हैं’- इस बात को कोई नकार नहीं सकता। जल का ना तो कोई कलर होता है और ना ही कोई आकार होता है। ना ही जल में कोई खुशबू होती है। बिना आकार वाले इस यह पदार्थ के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है। मानव जीवन के लिए जल सदा ही एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

जल की आवश्यकता हर किसी को होती है, फिर चाहे तो मनुष्य हो, जीव-जंतु हो या कोई प्राणी। धरती पर अगर जल नहीं होगा तो इस धरती पर जीवन संभव नहीं होगा। पृथ्वी के अलावा अन्य किसी गृह पर जीवन संभव ना हो पाने की सबसे बड़ी वजह भी जल की अनुपस्थिति है। जबकि हमारी पृथ्वी पर आज के समय में जल की मात्रा तकरीबन 70% हैं जिसमें से 97% पानी समुद्र और महासागरों में समाया हुआ है जो पीने योग्य नहीं है, खारा है। शेष 3% मीठा जल है। इस पानी का 75.2% भाग ध्रुवीय क्षेत्रों में और 22.6% भूमि जल के रूप में है। शेष भाग झीलों, नदियों, कुँओं, वायुमंडल में, नमी के रूप में तथा हरे पेड़-पौधों में उपस्थित होता है। उपयोग आने वाला जल का हिस्सा थोड़ा ही है जो नदियों, झीलों तथा भूमि जल के रूप में मौजूद है। उपयोगी पानी का 60% हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खर्च होता है, बाकी 40 प्रतिशत हिस्सा पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने एवं सफाई में खर्च होता है।

मानव शरीर 60% पानी से बना हुआ है जो कि आधे से अधिक है। इसके बाद भी क्या हम यह कल्पना कर सकते हैं कि जब हमें इतने पानी की जरूरत है तो बाकी पेड़- पौधों वा जानवरों को इस पानी की कितनी ज्यादा आवश्यकता होती होगी? पानी की आवश्यकता पेड़-पौधों, मनुष्य, जानवरों सभी में भिन्न-भिन्न प्रकार की होती होगी परंतु एक बात स्पष्ट है कि जल के बिना जीवन संभव नहीं है।

यद्यपि जल पृथ्वी पर बहुत बड़े हिस्से के अंतर्गत मौजूद है। कहा जाए तो पृथ्वी पर जल की कमी नहीं है परंतु मनुष्य अपनी सुख-सुविधाओं के लिए ऐसी-ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं, जिसका वातावरण को दूषित करने में अधिक योगदान है। वातावरण के दूषित होने के कारण ही आज के समय में मौसम विलुप्त होते जा रहे हैं, जिसके कारण बरसात कम होती है और सूखा पड़ने की समस्या अधिक बढ़ जाती है। पानी की समस्या गर्मियों के मौसम में और अधिक बढ़ जाती है।

जल जो कि हमारे जीवन जीने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है। जल के अभाव में हमारा जीवन कुछ भी नहीं है। जल पर सबसे ज्यादा निर्भर किसान होते हैं क्योंकि जल के बिना खेती करना नामुमकिन है। हमारी बुनियादी जरूरतों में से एक पानी है और सोचने लायक बात यह है कि यदि हमारे पास पानी नहीं होगा तो हमारा क्या होगा? भारत में तथा विश्व में जल की कमी धीरे-धीरे बढ़ कर एक गंभीर समस्या का रूप लेती जा रही है। जनसंख्या के हिसाब से भारत में पानी के स्त्रोत की क्षमता सबसे कम है और पानी की बर्बादी के स्तर में भारत दुनिया में सबसे आगे है।
जिस प्रकार से हम जल का व्यर्थ बहा रहे हैं उससे यह लगता है कि वह दिन दूर नहीं, जब इस ग्रह पर पीने के लिए पानी बहुत कम बचेगा इसलिए हमारे लिए जल की आपूर्ति के लिए इसका संग्रहण करना बहुत ज्यादा जरूरी है। जल प्रदूषण की समस्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रहा है और इसी वजह से पानी की समस्या भी देश में देखने को मिल रही है। पानी की बर्बादी व पानी की कमी सिर्फ हमारी लापरवाही के कारण होती है।

एक व्यक्ति के लिए प्रतिदिन औसतन 30 से 50 लीटर स्वच्छ तथा सुरक्षित जल की आवश्यकता होती है लेकिन 88.4 करोड़ लोगों को इस जरूरत का 10 प्रतिशत हिस्सा भी नहीं मिल पाता। एक रिसर्च के अनुसार, विश्व में सिर्फ 20% व्यक्तियों को ही पीने का शुद्ध पानी मिल पाता है। नदियां पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहां एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं, वहीं कल-कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। अपनी आदतों और उपयोग के तरीकों के अलावा उद्योगों के चलते दुनिया में प्रतिवर्ष 1,500 घन किलोमीटर गंदा जल निकलता है। इस गंदे जल को ऊर्जा तथा सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता है, पर ऐसा होता नहीं।

पानी की कमी के बारे में कुछ तथ्य

  1. भारत ही नहीं बल्कि कई ऐसे देश हैं जहां पर लोग वर्षभर में कम से कम 6 महीने पानी की किल्लत का सामना करते हैं।
  2. दुनिया के कई बेहतरीन शहर पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।
  3. भारत में हजारों से अधिक कुएँ तथा जलकूप आदि सूख चुके हैं।
  4. प्रदूषित पानी के उपयोग से पूरे विश्व में हर साल 3 से 4 मिलियन लोगों की मृत्यु हो रही है।
  5. इस्तेमाल करने के लायक पानी पृथ्वी पर 1% है जो कि दिनों-दिन घटता जा रहा है।
  6. हर साल बाढ़ के साथ सूखे की वजह से कई लाख लोग पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।

पानी की कमी के कारण
यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रतिदिन हमारी आबादी बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई आबादी के लिए भोजन तथा पानी की भी आवश्यकता अधिक होती है इसलिए अनियंत्रित तरीके से जल का उपयोग भी बढ़ गया है। बढ़ती आबादी की तुलना में जल के साधन बहुत कम है और यह मुख्य कारण है पानी की कमी का ।

  • जल प्रबंधन प्रणाली का अभाव
    हमारे देश में विशेषकर शहरों में पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। शहरों में बाथरूम होते हैं, जहां हम कुछ भी कार्य करते हैं तो पानी की आवश्यकता होती है और वह पानी बाद में नालियों में बह जाता है। यहां पर एक अलग निकास प्रणाली होनी चाहिए, जिससे कि हम जल का पुनः उपयोग कर सके। रसोई घर में काम में लिया जाने वाले पानी का उपयोग पुनः वापस किया जा सकता है परंतु अभी तक इसके लिए उपयुक्त संसाधनों का अभाव होने के कारण यह संभव नहीं है। वर्षा जल संचयन और अन्य सहायक प्रणाली अभी तक केवल पुस्तकों में पढ़ने को मिलते हैं। बहुत कम ही लोग हैं जो जल बचाने के लिए इन तरीकों का उपयोग करते हैं।
  • वनों की कटाई
    पौधे केवल हमें ऑक्सीजन ही नहीं देते बल्कि भोजन तथा यह वर्षा के लिए भी जिम्मेदार होते हैं। यह देखा गया है कि कम पेड़-पौधों वाले क्षेत्रों की तुलना में अधिक हरियाली वाले क्षेत्र में वर्षा अधिक होती है। बढ़ते हुए उद्योगों के लिए एवं औद्योगिक संसाधनों के विस्तार के लिये अनियंत्रित रूप से भूमि का आवंटन, वनों की कटाई का प्रमुख कारण है
  • डंपिंग वेस्ट
    ज्यादातर उद्योग नदियों के किनारे स्थापित किए जाते हैं। नदियां भारत में जल का प्रमुख स्रोत है परंतु उद्योगों द्वारा अपना कचरा इन नदियों में बहा दिया जाता है। साथ ही साथ मनुष्य द्वारा भी अपने अपशिष्ट पदार्थ नदियों में फेंके जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप नदियां प्रदूषित हो जाती हैं और हमारे लिए पीने योग्य पानी नहीं रहता है। यद्यपि जल प्रदूषण और इसके प्रभाव से जीवन का अभाव के बारे में हमें प्राथमिक विद्यालय में समझाया जाता है, पढ़ाया जाता है परन्तु जल तथा इसके स्त्रोतों के संरक्षण, सदुपयोग व जल के अपव्यय के लिए आवश्यक कार्यशालाएं बहुत कम होती हैं, जिसके कारण भविष्य में पानी की कमी होने का खतरा मंडरा रहा है। वर्तमान समय जल को बचाने की व्यावहारिक समझ विकसित करने की शिक्षा पद्धति का अभाव है।

पानी की समस्या कम करने के लिए उपाय

राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए ‘जल संरक्षण’ को अपनी महत्वपूर्ण प्राथमिकता मानते हुए हमें निम्नलिखित आसान उपायों को करने के लिये जनजागरण अभियान चलाकर जल संरक्षण सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि जनसहभागिता से जल की बचत बड़े प्रभावी ढंग से की जा सकती है। इसीलिए आज के समय में भारत सरकार द्वारा पानी की बर्बादी को रोकने के लिए बहुत सारे नीति, नियम और आंदोलन जैसे कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। यदि लोग इनका अच्छे से पालन करें तो हमारे भारत में पानी की समस्या कभी नहीं होगी और आने वाली जनरेशन को भी पानी प्राप्त हो सकेगा।

  1. बच्चों, महिलाओं, पुरूषों को जल संरक्षण के महत्व व आवश्यकता से अवगत कराना चाहिए।
  2. एकजुट होकर जलाशयों को पुनर्जीवित करने की आज के समय की अति आवश्यकता है।
  3. खेतों में सिंचाई के लिए पक्की नालियों का निर्माण हो, पी.वी.सी. पाइपों का इस्तेमाल हो।
  4. बहाव क्षेत्र में पानी को संचित किया जा सकता है। इसके लिये बाँध बनाए जा सकते हैं ताकि यह पानी समुद्र में ना जा सके।
  5. बोरिंग, ट्यूबवेल पर नियंत्रण लगाया जाए। उन पर भारी कर लगाया जाए ताकि पानी की बर्बादी रोकी जा सके।
  6. पानी की उपलब्धता के गणित को समाज भी समझे। यह आम जन की जागरूकता तथा सहभागिता से ही सम्भव है। भू-जल संरक्षण के लिये देशव्यापी अभियान चलाया जाना अति आवश्यक है ताकि भूजल का समुचित नियमन हो सके।
  7. बाल्टी से स्नान / शौच आदि की आदत डालनी चाहिए।
  8. गाँवों में तालाबों को गहरा करके वर्षा जल संचित करना चाहिए।
  9. नगरों / महानगरों में घरों की नालियों का पानी गड्ढे में एकत्र करके इसे सिंचाई के काम में लेना चाहिए।
  10. घर की छत पर वर्षा जल का भंडारण करके इसे काम में लिया जाए।
  11. घरों, सार्वजनिक स्थानों पर नल की टोंटियों की सुरक्षा की जाए ताकि पानी की बर्बादी को रोका जा सके।
  12. समुद्री खारे जल को पेयजल व घरेलू उपयोग योग्य बनाने के लिये समुचित प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाए।
  13. गंगा-यमुना जैसी सदा नीर नदियों की नियमित सफाई सुनिश्चित की जाए तथा इन्हें प्रदूषण मुक्त बनाया जाए।
  14. वृक्षारोपण को हर स्तर पर प्रोत्साहित किया जाए।
  15. विद्यालय की पाठ्य-पुस्तकों में ‘जल संरक्षण’ एक विषय के रूप में पढ़ाया जाए ताकि बचपन से ही बच्चों में यह संस्कार स्वतः विकसित हो सके। इसे हर स्तर पर एक अनिवार्य विषय बना दिया जाए। निःसंदेह उपर्युक्त उपायों पर अमल करने से जल संरक्षण अभियान को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी तथा जल संकट से निपटने में यह एक सकारात्मक पहल होगी।

जल संग्रहण: एक सामूहिक उत्तरदायित्व
इसके लिये वर्षा जल का संग्रहण, संरक्षण तथा समुचित प्रबंधन आवश्यक है। यही एकमात्र विकल्प भी है। यह तभी संभव है, जब पूरा समाज जागरूक होकर इस संकट की गंभीरता को समझकर व्यावहारिक बनें। यह केवल सरकारों और प्रबंधन तंत्रों की जिम्मेवारी नहीं है क्योंकि पानी की आवश्यकता सभी को समान रूप से है और यदि इसका अपव्यय हमारे स्वयं के द्वारा हो रहा है तो इसे परिवर्तन करना हमारी नैतिक जिम्मेवारी व कर्तव्य है।

हमारे दैनिक दिनचर्या में पानी का उपयोग दांत साफ करने, नहाने, कपड़े साफ करने, शौचालय में, घर की साफ-सफाई में, वाहनों की सफाई में, खाना बनाने, बर्तन साफ करने, फसलों की सिंचाई करने, उद्योगों में, पशुओं को नहलाने व उन्हें पानी पिलाने आदि में करते हैं। भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 140 लीटर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एक दिन में प्रति व्यक्ति को 200 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए। भारत के करीब 85-90% गांव भू-जल से अपनी आपूर्ति करते हैं। पानी का संरक्षण व उसकी बचत, दोनों स्तरों पर जल संकट के स्थाई समाधान हेतु कार्य करने की आवश्यकता है। पानी के संरक्षण हेतु जहां तालाबों का पुनर्जीवित होना आवश्यक है, वहीं अति आवश्यक है कि वर्षा की प्रत्येक बूंद का हम संचयन करें। भारत यूं तो गांवों का देश है लेकिन वर्तमान में शहर भी तेजी से अपने पैर पसार रहे हैं। इसीलिए पानी बचाने का कार्य ग्रामीण व शहरी दोनों में रहने वाली आबादी को अपने-अपने ढंग से करना होगा। शहरों में जब 4 से 5 सदस्यों का एक परिवार प्रतिदिन 200 से 300 लीटर पानी की बचत करेगा तो तय है कि देश में अरबों लीटर पानी एक दिन में बचेगा। इसके लिए हमें बस अपने आपको व्यवस्थित करना पड़ेगा। जैसे कि अगर कोई व्यक्ति फव्वारे से स्नान करता है अगर वह बाल्टी में पानी लेकर स्नान करे तो करीब 100 लीटर पानी बचा सकता है।

निष्कर्ष
प्रकृति में पाए जाने वाली हर वस्तु को देखभाल करने की आवश्यकता होती है चाहे वह हवा हो, पानी हो, वन हो, प्रकृति से संबंधित कोई भी चीज हो, उसकी देखभाल जरूरी है। जिस प्रकार हमें अपने प्रिय हैं, हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए क्योंकि एक बार यदि हमने उन्हें खो दिया तो वह हमें वापस नहीं मिलते। उसी प्रकार प्रकृति भी हैं। हमें इसकी देखभाल करनी चाहिए और उससे मिलने वाली सभी सुविधाओं के लिए इसका आभार व्यक्त करना चाहिए। यदि हम उसकी देखभाल करेंगे तो हमें इससे प्राप्त होने वाली वस्तुएं निरंतर प्राप्त होती रहेंगी। हमें जल प्रकृति द्वारा प्राप्त होता है। जल के बिना हमारा जीवन संभव नहीं है। अतः हमें इसका अपव्यय रोकना चाहिए और इसका संरक्षण करना चाहिए ताकि हमारे आने वाली पीढ़ी पानी से कभी वंचित ना रहे।

यह सर्वविदित है कि भू-जल की 80% जलराशि हम पहले ही उपयोग में ला चुके हैं और शेष जल के दोहन का सिलसिला निरंतर चालू है। भविष्य में हमें इतना पानी नहीं मिल पाएगा, जितना हमारी मांग होगी। इस क्षेत्र में सरकार तो काम कर ही रही है लेकिन आम आदमी को भी इसमें सहयोग करने की आवश्यकता है। भारतीय संस्कृति में जल को जीवन का आधार माना जाता है। इसी कारण जल को संचित करने की परंपरा हमारे देश में शुरू से ही रही है । अतः समाज के हर व्यक्ति को अपने-अपने स्तर व सामर्थ्य के अनुसार जल संरक्षण अभियान में सहयोग करना चाहिए।

इस प्रकार जल संरक्षण में पूरे समाज को अपनी ओर से नई पहल करनी चाहिए। केवल सरकारी सहायता पर निर्भर नहीं होना चाहिए क्योंकि सरकारें तथा प्रबंधन तंत्र द्वारा समय प्रति समय भिन्न-भिन्न अभियानों, जनजागृति कार्यक्रमों, विज्ञापनों व अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से जागृति लाने का प्रयास करते हैं। परंतु इनको अमल में लाना हर एक की जिम्मेवारी है। जल प्राकृतिक संसाधन है जल को व्यर्थ व्यय से बचाकर, व इसे संरक्षित करके ही इसकी कमी की पूर्ति की जा सकती है। यह कोई ऐसी वस्तु नहीं है जिसे मनुष्य या चुनी हुई सरकारें अथवा प्रबंधन तंत्र आवश्यकतानुसार बनाकर तैयार कर सकें। इसीलिए अब समय की मांग है कि पूरा समाज इस अभियान से जुड़े तथा पंरपरागत जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करें। जल के संकट से बचने के लिए हर एक को अपनी व्यक्तिगत जिम्मेवारी को तय करना होगा।

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