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Shivbaba for noida - 2

शिवरात्रि का ईश्वरीय सन्देश

परमात्मा शिव साकार मनुष्य प्रजापिता ब्रह्मा के तन का आधार लेकर नई सतयुगी दुनिया की स्थापना का दिव्य कर्म करा रहे हैं। अब परमात्मा शिव आदेश देते हैं – मेरे प्रिय भक्तो, आप जन्म-जन्मान्तर से बिना यथार्थ पहचान के मेरी जड़ प्रतिमा की पूजा, जागरण तथा उपवास करके शिवरात्रि मानते आये हो। अब अपने इस अन्तिम जन्म में महाविनाश से पूर्व मेरे ज्ञान द्वारा अज्ञान निद्रा से जागरण कर मेरे साथ मनमनाभव अर्थात् योगयुक्त होकर विकारों का सच्चा उपवास करो। इस ज्ञान एवं योग बल से महाविनाश तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करो। यही सच्चा महाव्रत अथवा शिवव्रत है।
अब अति धर्मग्लानि का समय पुनः आ चुका है और पवित्र पावन परमात्मा शिव ब्रह्मा के साकार तन में प्रवेश करके अपना कल्प (5000 वर्ष) पूर्व वाला रूद्र-गीता – ज्ञान सुना रहे हैं। सभी मनुष्यात्माओं को सादर ईश्वरीय निमन्त्रण है कि शिवरात्रि के यथार्थ आध्यात्मिक रहस्य को जानकर और सहज राजयोग की शिक्षा द्वारा अपने तमोगुणी संस्कारों का शमन करके अविनाशी ईश्वरीय राज्य – भाग्य के वर्से का अधिकारी बनें और शीघ्र ही आने वाली सतयुगी नई दुनिया में देवपद को प्राप्त करें।

शिव – किसी मस्त योगी का नाम नहीं है
सभी महान विभूतियों की स्मृति को बनाये रखने के लिए उनके स्मारक चिन्ह, मूर्तियां अथवा मंदिर आदि बनाये जाते है परन्तु संसार में सब मूर्तियों में सर्वाधिक पूजा सम्भवतः शिवलिंग की ही होती है। विश्व में शायद की कोई देश होगा जहाँ शिवलिंग की पूजा किसी न किसी रूप में न होती हो। शिव का शब्दिक अर्थ है ‘कल्याणकारी’ और लिंग का अर्थ है – प्रतिमा अथवा चिन्ह | अतः शिवलिंग का अर्थ हुआ- कल्याणकारी परमपिता परमात्मा की प्रतिमा ।
प्राचीन काल में शिवलिंग हीरों (जो कि प्राकृतिक रूप से ही प्रकाशवान होते हैं) के बनाये जाते थे क्योंकि परमात्मा का रूप ज्योतिबिंदु है । सोमनाथ के प्रसिद्ध मंदिर में सर्वप्रथम संसार के सर्वोत्तम हीरे कोहनूर से बने शिवलिंग की स्थापना हुई थी । विभिन्न धर्मों में भी परमात्मा को इसी आकार में मान्यता दी गई है चाहे वे पत्थर, हीरों अथवा अन्य धातुओं की स्थायी रूप में मूर्तियां स्थापित न भी करें परंतु फिर भी पूजा-पाठ, प्रार्थना अथवा अन्य पवित्र अवसरों पर ज्योतिस्वरूप परमप्रिय परमात्मा की स्मृति के रूप में अपने घरों अथवा धार्मिक स्थानों मंदिरों और गुरुद्वारों आदि में दीपक अथवा ज्योति को अवश्य जलाते हैं। भारत में शिव के 12 प्रसिद्ध मठों को भी ज्योतिर्लिंग मठ कहा जाता है। इनमें से हिमालय स्थित केदारेश्वर लिंग, काशी में विश्वनाथ और सौराष्ट्र प्रदेश में सोमनाथ और मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में महाकालेश्वर अति प्रसिद्ध हैं ।
यद्यपि आज ईसाई, मुसलमान, बौद्ध तथा दूसरे मतों के लोग शिवलिंग की उतनी और उस रीति से पूजा नहीं करते हैं जैसे कि हिन्दू करते हैं फिर भी ऐसे बहुत से प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि वर्तमान समय में भी अनेक विभिन्न धर्मों वाले लोग शिवलिंग को धार्मिक महत्व देते हैं। उदाहरण के रूप में रोम देश में कैथोलिक लोग अण्डाकार रूप के पत्थर को आज तक भी पूजते हैं। अरब देश में पवित्र मक्का तीर्थस्थान पर मुसलमान यात्री आज भी इसी प्रकार के पत्थर को जिसे ‘संग-ए असवद्’ या मक्केश्वर कहा जाता है, चूमते हैं। जापान में रहने वाले बौद्ध धर्म के कई लोग जब साधना करने बैठते हैं तो अपने सम्मुख शिवलिंग जैसा एक पत्थर तीन फुट दूरी पर एवं तीन फुट ऊंचे स्थान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए रखते हैं। इजराइल तथा यहूदियों के दूसरे देशों में भी यहूदी लोग कोई समय रस्म के तौर पर शिवलिंग के आकार के पत्थर को छूते हैं। इसके अतिरिक्त प्राचीन और प्रसिद्ध देश मिस्र के फोनेशिया नगर, ईरान के शहर सीरिया, यूनान, स्पेन, जर्मनी, स्केडेनेविया, अमेरिका, मैक्सिको में पीरूहयती द्वीप, सुमात्रा और जावा द्वीप आदि -आदि के विभिन्न भागों में भी शिव की यह स्थल यादगार यत्र-तत्र विद्यमान है। यही नहीं बल्कि स्काटलैंड के प्रमुख शहर ग्लासगो में, तुर्किस्तान में, ताशकन्द में, वेस्टइंडीज के गियाना, लंका, स्याम, मॉरिशस और मैडागास्कर इत्यादि देशों में भी शिवलिंग का पूजन होता है।
अनेक धर्मों में मतभेद बढ़ जाने के कारण, अन्य देशों में शिवलिंग की लोकप्रियता पहले के समान न भी रही हो परंतु भारत में, जहाँ से इसकी पूजा आरंभ होकर बाहर गयी आज भी लोगों को यह अतिप्रिय है। श्री रामचंद्र जी को रामेश्वर में, श्रीकृष्ण जी को गोपेश्वर में तथा अन्य देवताओं को भी, उन सबका परम पूज्य ईश्वर को दर्शाने के लिए शिवलिंग की पूजा करते दिखाया है। अतः नि:संदेह स्वीकार करना पड़ेगा कि सारी सृष्टि की आत्माएं चाहे वे किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय की हों, एकमात्र परमप्रिय परमपिता परमात्मा ज्योतिर्बिन्दु शिव ही है ।

शिव के विषय में भ्रांतियां
वर्तमान समय में यद्यपि भारत में शिवलिंग की पूजा तो काफी व्यापक स्तर पर होती है फिर भी शिव के बारे में ऐसी बहुत सी कपोल-कल्पित कथायें प्रचलित हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि लोग अपने पूज्य परमात्मा शिव के विषय में भी कुछ नहीं जानते हैं। ये कथाएं अतिश्योक्ति, मिलावट तथा मनगढ़न्त वृत्तान्तों से भरपूर ही नहीं बल्कि ऐसी हैं जिनसे शिव पर मिथ्या दोष आरोपित होता है। इनमें शिव का पार्वती पर मोहित होना, दक्ष प्रजापिता का चन्द्रमा के साथ अपनी 27 कन्याओं का विवाह करना तथा बाद में उसे श्राप देना इत्यादि कहानियां, निरा गप्प नहीं तो और क्या है?
परमपिता शिव और उनकी रचना – ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के विषय में अज्ञानता होने के ही कारण लोग मतभेद में पड़कर इनके विषय में काम-वासना से भरपूर कलंक लगाते हैं और कभी विष्णु को परमात्मा सिद्ध करने में देवताओं और असुरों में युद्ध इत्यादि की दन्त कथाएं प्रचलित कर देते हैं । दूसरी ओर ध्यान देने योग्य बात है कि अज्ञानता के कारण ही भक्त लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता समझते आये हैं बल्कि तमोप्रधान बुद्धि होने के कारण कई तो शंकर को एक व्यक्ति समान मानकर शिव को शंकर का लिंग समझ पूजते आये हैं।

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A Leader Who Created Only Leaders – Dadi Prakashmani

Dadi Prakashmani, lovingly known as ‘Dadi,’ exemplified leadership that blended profound wisdom with motherly love. As the head of the Brahma Kumaris, she expanded the organization globally, establishing thousands of Rajyoga meditation centers. Her leadership was defined by humility, sweetness, and the ability to connect deeply with every soul she encountered.

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