
नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य
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हाल ही में हमारे दो वर्ष कोरोना महामारी में गुज़र गए, जिन्होंने हमें आने वाले वर्षों के लिए बहुत कुछ प्रेरणाएं दीं। बहुत लोग हिम्मत हार कर बैठ गए और बहुतों के दिल में आज भी मशाल जल रही है और जलनी भी चाहिए क्योंकि ज़िंदगी का सार हार और थक कर बैठ जाना नहीं है। ज़िंदगी का सार है – सामना करना, लड़ना, जीतना और अगर हार भी जाये तो भी फिर से उठना और फिर लड़ना।
फौजी को देखा है कभी? क्या सीख मिलती है उससे? क्या वो अपनी सेना के सैनिकों को जब दम तोड़ते या घायल होते देखता है, तो क्या वो स्वयं को भी अपनी दुश्मन सेना के सामने समर्पित कर देता है या हार मान कर बैठ जाता है? नहीं ना, वो ऐसा तो हरगिज़ नहीं करता। वो लड़ता है अपने आखिर दम तक। ऐसा ही हमें भी करना चाहिए।
अगर हमारे अपने हमें छोड़कर भी चले गए तो क्या उनके गम में स्वयं हार कर बैठना सही है? ये समझदारी नहीं है, क्योंकि हमारा जीवन भी तो कर्मक्षेत्र है उस सैनिक की तरह। वहाँ (उस युद्ध के मैदान में) हमला होता है दूसरे देश की सेना का और यहाँ हमला होता है स्वयं की सेना का। स्वयं की सेना माना अपने ही मन व बुद्धि जिसके राजा हम स्वयं हैं और ये हमारी प्रजा है। वहाँ हमला करने वाले हथियार हैं- बंदूक व तोप और यहाँ हमला करने वाले हथियार हैं- व्यर्थ व नकारात्मक संकल्प, क्योंकि यही तो हमें मार गिराते हैं। एक सैनिक तब तक नहीं हारता, जब तक वो स्वयं से ना हार माने, फिर चाहे सामने से कितना ही भयंकर हमला क्यों ना हो। ठीक ऐसे ही यहाँ भी एक आत्मा तब तक नहीं हारती, जब तक वो स्वयं से हार ना मान लें।
वहाँ के सैनिक की प्रतिदिन ट्रेनिंग होती है और साथ ही साथ उनके भोजन का ख्याल हर वक्त रखना होता है। अब सवाल आता है कि हमारी ट्रेनिंग और भोजन क्या है? आइए जानते हैं।
देखिये, हमारे मन का भोजन है ‘संकल्प’ और बुद्धि का भोजन है ‘ज्ञान’। हमारे मन का कार्य है ‘सोचना’। इसको हम रोक नहीं सकते परंतु हम इसको दिशा दे सकते हैं। इसकी दिशा हम हर रोज़ ज्ञानामृत का पान करने से बदल सकते हैं और ये ज्ञानामृत है ‘ईश्वरीय महावाक्य’, जिसका प्रत्येक दिन श्रवण करने से हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। वास्तव में यह ज्ञान ऐसा है जो हमें यथार्थ निर्णय लेने में मददगार बनाता है।
अब हमारी ट्रेनिंग है – हमारा योगाभ्यास। जितना हम मन और बुद्धि की ड्रिल करते हैं माना योग करते हैं, उतना हम तंदरूस्त बनते हैं। सरल शब्दों में कहें तो जितना हम अपने मन की तार परमात्मा से जोड़ते हैं, उतना ही हम शक्तिशाली बनते हैं। कोरोना काल को देखें, तो उनमें जो व्यक्ति स्वयं के मन से जीत गया वो कोरोना से भी जीत गया था और जो स्वयं से हारा था, वो कोरोना से भी हार कर दम तोड़ गया था।
कहते हैं किसी के वर्तमान को देख उसके भविष्य की कल्पना मत करना क्योंकि भविष्य में इतनी ताकत है कि वो कोयले को हीरे में बदल सकता है। तो क्या हमारा जीवन नहीं बदल सकता! समस्या आती ही जाने के लिए है, परंतु हम उसे सदाकाल का समझ कर हिम्मत खो देते हैं। पहले भी ना जाने कितनी महामारियां आई संसार में, तो क्या सभी सदाकाल के लिए रहीं? नहीं ना! वो 2,4,6 वर्षों में खत्म हो ही गयीं ना! सभी यही सिखाकर गयी कि समय भी अपना समय आने पर बदल ही जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं है जीवन में।
जो भी हमारे जीवन में होता है सब कल्याणकारी है, ये लाइन भी सदैव याद रखिये। और हाँ, ज़िंदगी कभी विद्यालय के अध्यापक की तरह सीधे-सीधे नहीं पढ़ाती, यह सदैव पहले परिस्थिति का उदाहरण देती, तत्पश्चात् समझाती है ताकि आपको सदाकाल के लिए इसके पढ़ाये हुए पाठ याद रह सकें।
तो अब आगे कभी परिस्थिति आये, तो यही स्मरण रखना कि ज़िंदगी अब फिर से नया पाठ, नये उदाहरण के साथ समझा रही है और विशाल बुद्धि बन, धैर्यता से समझने का प्रयास करना, फिर एक दिन आप फतह का झंडा निश्चित रूप से लहरायेंगे, ये हमारा विश्वास है।
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