अंदर के 'मैं' का अहसास और अनुभव (भाग 1)

September 14, 2024

अंदर के ‘मैं’ का अहसास और अनुभव (भाग 1)

हम सभी अपना जीवन बहुत तेज़ी से जीते हैं, एक दृश्य के समाप्त होते ही अगले दृश्य में  चले जाते हैं, फिर पहले दृश्य को भूल जाते हैं और कभी-कभी उसकी यादों को दूसरे दृश्य में ले जाते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा या खुद से पूछा है कि हमारी पहचान, जिसे हम अपने कार्यों को पूरा करने के लिए उपयोग करते हैं, क्या वह हमारा प्रोफेशन या रोल या हम कैसे दिखते हैं, हमारे कपड़े, या फिर हमारा जेंडर, देश या जाति है जिससे हम संबंधित हैं? और जब हम ‘आत्म-परिचय’ शब्द का उपयोग करते हैं, तो हमारे मन में दो शब्द आते हैं; एक है ‘स्वयं’ या ‘मैं’। दूसरा है ‘पहचान’- यानि कि मैं, आत्मा, किससे पहचान कर रहा हूँ? अक्सर मैं उस चीज़ से पहचान कर रहा होता हूँ जो मैं वास्तव में नहीं हूँ या जो मैं दिखता हूँ लेकिन वास्तव में नहीं हूँ। हमारी शिक्षा, व्यक्तित्व और हम कैसे दिखते हैं ये सब हमने अर्जित किया है, लेकिन जो मैं वास्तव में हूँ, वह मैं अपनी शिक्षा प्राप्त करने से भी पहले था और मेरी शारीरिक विशेषताएँ बनने से पहले भी था। तो, हमें आज से खुद को इस बात के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए कि हम स्वयं को आध्यात्मिकता के दर्पण में देखना शुरू करें और असल ‘मैं’ या ‘स्वयं’ को देखना शुरू करें। यह वह ‘मैं’ है जो शारीरिक आँखों से तो अदृश्य है, लेकिन यही वह कोर है जिसे हम बीइंग कहते हैं। जैसे नारियल में, नरम अंदरूनी सतह या कोर या केंद्र हमें शक्ति देता है जबकि सख्त बाहरी हिस्सा खाने योग्य नहीं होता और कम महत्वपूर्ण होता है।

 

जो लोग अपने दिन की शुरुआत भौतिक दर्पण में स्वयं को देखकर करते हैं, उन्हें उपरोक्त कई शारीरिक विशेषताओं की याद दिलाई जाती है। परिणामस्वरूप, वे भूल जाते हैं कि अर्जित बाहरी हिस्से के पीछे एक आंतरिक हिस्सा भी है जो अदृश्य है और जिसे साफ करने और तैयार करने की आवश्यकता होती है। दरअसल यही वह हिस्सा है जो हर दिन मिलने वाले लोगों के दिलों से संपर्क में आता है। इसके अलावा, यही आंतरिक चेहरा लोगों पर तब प्रभाव डालता है जब वे अस्थायी रूप से हमारे पहने हुए कपड़ों और हमारी शारीरिक बनावट से प्रभावित हो चुके होते हैं। आखिरकार, मुस्कान शर्ट से अधिक महत्वपूर्ण है। अच्छे दिखने वाले सूट का क्या फ़ायदा अगर सूट पहनने वाला व्यक्ति अहंकारी और ईर्ष्यालु है? आत्मा के सार में जीवन जीने से ही हम दूसरों प्रति प्रेम और करुणा भरा व्यवहार रख पाते हैं और खुद को भी संतुष्ट रख पाते हैं।

(कल जारी रहेगा…)

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