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February 18, 2025
दुनिया की कई धार्मिक परंपराओं में, परमात्मा व ईश्वर को हमेशा एक पुरुष सत्ता के रूप में दर्शाया जाता है। लेकिन जिस तरह आत्मा का कोई लिंग नहीं होता; वह न तो स्त्री होती है और न ही पुरुष। उसी प्रकार परमात्मा, अर्थात् सर्वोच्च आत्मा का भी कोई विशेष लिंग नहीं होता। इसलिए, मैं एक आत्मा के रूप में, ईश्वर की आध्यात्मिक संतान के नाते उनसे बिना किसी भय या कठिनाई के जुड़ सकता हूँ, जबकि भौतिक दुनिया में किसी भी रिश्ते में शरीर के लिंग के कारण ऐसा हो सकता है।
हमें परम आत्मा या ईश्वर को गहराई से समझने की आवश्यकता है। परमात्मा हमारी सर्वोच्च माता भी हैं, जो हमें आध्यात्मिक पोषण देते हैं और जिनका प्रेम बिना किसी शर्त के स्वीकृति से भरा होता है। चाहे कुछ भी हुआ हो, मेरा स्वभाव या व्यक्तित्व कैसा भी हो, वे मुझे बिना शर्त स्वीकार करते हैं। यह एक ऐसा प्रेम है जो मुझे मजबूत बनाता है और साथ ही मुझे शुद्ध करता है।
इसी के साथ, परमात्मा सर्वोच्च पिता भी हैं; एक शक्तिशाली सत्ता, जो हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं और आत्मा को दिव्य गुणों और शक्तियों की विरासत देते हैं। बस, यह केवल एक मासूम बच्चे की तरह उनसे अपने अधिकारों को प्राप्त करने का प्रश्न है। परमात्मा में देखभाल, बड़ा दिल, शुभकामनाएँ, शक्ति, अधिकार और निडरता जैसे सभी गुण होते हैं, जो उन्हें एक संपूर्ण माता-पिता बनाते हैं, और जो एक ही समय में दोनों भूमिकाएँ निभाते हैं। आध्यात्मिकता हमें सिखाती है कि हम परमात्मा को अपने माता-पिता के रूप में स्वीकार करके एक नया आध्यात्मिक जन्म लेते हैं। यह जन्म हमारी चेतना में बदलाव के आधार पर होता है। हमें अपने नकारात्मक, अशुद्ध और दुखद अतीत को छोड़कर एक नई चेतना विकसित करनी चाहिए, जो वर्तमान में आध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर सकारात्मक, शुद्ध और आनंदमय हो। आत्मा के रूप में मेरी पहचान मेरे सोचने के तरीके को बहुत बदल देती है, लेकिन स्वयं को परमात्मा; जो हमारे माता और पिता हैं की संतान के रूप में देखना और दूसरों को भी उसी दृष्टि से देखना, मेरे भीतर और दूसरों के प्रति प्रेम और सम्मान पैदा करता है। और तब मेरे कार्यों और व्यवहार में सुंदर गुण प्रकट होने लगते हैं।
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