
सच्चे रिश्ते वही होते हैं जहाँ आत्मनिर्भरता और भावनात्मक स्वतंत्रता हो। जानिए कैसे दूसरों को सहयोग करते हुए उन्हें सशक्त बनाएं।
May 17, 2025
परमात्म साथ से हमारी आत्मिक शक्तियाँ बढ़ती हैं
हर मानव आत्मा की एक सार्वभौमिक आवश्यकता है — आध्यात्मिक शक्ति, जो आज की दुनिया में बहुत कम हो गई है। यह देखा गया है कि हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बार-बार विभिन्न बातों से परेशान, विचलित, चिड़चिड़े, चिंतित या नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाते हैं। ये सभी आत्मिक शक्ति की कमी के संकेत हैं। हम देख रहे हैं कि ये परिस्थितियाँ दिन-प्रतिदिन हमारे व्यक्तिगत जीवन में बढ़ती जा रही हैं। इसके अलावा हम जीवन की ऊँच-नीच से भी गहरे तौर से प्रभावित हो रहे हैं — जब परिस्थितियाँ हमारे अनुसार होती हैं, तो हम अत्यधिक प्रसन्न और उत्साहित हो जाते हैं; और जब नहीं होतीं, तो दुखी और निराश हो जाते हैं। हम जल्दी से लोगों से आकर्षित हो जाते हैं अगर वे हमारे प्रति अच्छे व्यवहार करते हैं या हमें उनमें कोई विशेषता दिखती है; और उतनी ही जल्दी उनसे द्वेष भी कर बैठते हैं अगर वे हमारे अनुसार नहीं होते या उनमें कोई कमी होती है। आधुनिक दुनिया में जो भी सुंदर भौतिक उपलब्धियाँ हमारे पास हैं, उनसे हम बहुत अधिक जुड़ जाते हैं और बार-बार हमारे विचार वहीं घूमते रहते हैं। ये सभी संकेत हैं कि हमारी आत्मा की शक्ति कम हो गई है। दुनिया में अच्छाइयाँ भी हैं और बुराइयाँ भी — और हम इन दोनों से अलग-अलग तरीकों से प्रभावित होते रहते हैं। तो फिर कैसे इन प्रभावों से ऊपर उठें और आंतरिक रूप से अधिक शक्तिशाली बनें?
सबसे पहले, हमें गहराई से यह समझना होगा कि हमें इन सभी प्रभावों से ऊपर उठना है। क्योंकि हम अक्सर ये सोच लेते हैं कि इन सबसे प्रभावित होना तो स्वाभाविक है। लेकिन ईश्वर कहते हैं कि यह न तो आत्मा की मूल अवस्था है, और न ही यह उसका मूल संस्कार है। इसलिए हमें ऐसा तरीका चाहिए, जिससे हम आंतरिक रूप से अधिक निर्लिप्त और मज़बूत बनें। हमें यह अपेक्षा करना भी छोड़ना होगा कि परिस्थितियाँ, लोग या भौतिक वस्तुएँ हमें भीतर से पूर्ण बनाएँगी। इसकी जगह हमें ईश्वर को अपने साथ रखना होगा और उनकी सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति को निरंतर अपने अंदर आत्मसात करना होगा। तभी हम इन सभी को प्रभावित कर सकेंगे और उन्हें अपने तथा दूसरों के लिए सकारात्मक और लाभदायक बना सकेंगे ना कि स्वयं उनके प्रभाव में आकर भावुक और कमजोर बनेंगे। और यह तभी संभव है जब हम आत्म-अभिमानी बनें और योग द्वारा परमात्मा से जुड़ें और अपनी सकारात्मक आत्मिक ऊर्जा तथा ईश्वर की दिव्य ऊर्जा को परिस्थितियों, लोगों, भौतिक जगत, प्रकृति और आज की दुनिया की अनेक वस्तुओं तक पहुँचाएँ।
(कल भी जारी रहेगा…)
सच्चे रिश्ते वही होते हैं जहाँ आत्मनिर्भरता और भावनात्मक स्वतंत्रता हो। जानिए कैसे दूसरों को सहयोग करते हुए उन्हें सशक्त बनाएं।
परमात्मा, ब्रह्मांड की सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति हैं। उनके प्रेम और शक्ति से आत्मा को शांति, आनंद और दिव्यता का अनुभव होता है।
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