World food day

विश्व खाद्य दिवस पर विशेष पहल – World Food Day

फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफ ए ओ) ने वर्ष 1979 से विश्व खाद्य दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व भर में फैली भुखमरी की समस्या के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ाना तथा भूख, कुपोषण और गरीबी के खिलाफ संघर्ष को मजबूती देना था। खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के स्थापना दिवस 16 अक्टूबर 1980 से प्रत्येक वर्ष वैश्विक स्तर पर ‘विश्व खाद्य दिवस’ (World Food Day) के रूप में मनाया जाता है। कृषि उत्पादकता और ग्रामीण आबादी के जीवन निर्वाह की स्थिति में सुधार करते हुए पोषण तथा जीवन स्तर को उन्नत बनाने के उद्देश्य से इस वर्ष का थीम जल ही जीवन है, जल ही भोजन है। किसी को भी पीछे न छोड़ें।’ (“Water is Life, Water is food. Leave no one behind.”) के प्रति जागरूकता लाने और प्रत्येक व्यक्ति तक पौष्टिक आहार पहुंचाने के उद्देश्य से यह दिवस ब्रह्माकुमारीज़ के कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग द्वारा मनाया जा रहा है।

जल संरक्षण, जीवन संरक्षण

जल ही जीवन है, हमारे भोजन के उत्पादन में जल की अहम भूमिका है। हमारे जीवन निर्वाह के लिए जल मुख्य स्रोत है, जिसकी आपूर्ति बहुत ही सीमित है। हम सब साथ मिलकर भोजन और पानी को बचाने का प्रयास करेंगे। पानी की समस्या को हल करने के लिए हम सरकारी, गैर सरकारी संस्थानों, विश्वविद्यालयों, व्यक्तिगत एवं सामूहिक अनुयोजन के साथ यह मुहिम चलाएंगे।

भोजन का महत्व

आज भी दुनिया भर में करोड़ों लोगों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है, जिसकी वजह से लोगों के शारीरिक तथा मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। भोजन मनुष्य का मौलिक अधिकार है और सभी को हक है कि वो अच्छा खाना खाएं जिससे उनका स्वास्थ्य ठीक रहे। एक निरोगी तथा स्वस्थ भारत के लिए सात्विक भोजन की आवश्यकता है। भारत को आध्यात्म का देश, देव भूमि कहा जाता है। हमारे देश में यह दिवस भारतीय परम्परागत कृषि के महत्व को दर्शाता है तथा भारतीय किसानों को सात्विक और पौष्टिक अन्न उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करता है। देश के उत्थान तथा पतन में अन्न की अहम भूमिका पर जोर देता है। ब्रह्माकुमारीज़ में अन्न शुद्धि को प्राथमिकता दी जाती है।

जीवन में सुख-शान्ति व समृद्धि प्राप्त करने के लिए स्वस्थ शरीर की नितांत आवश्यकता है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन तथा बुद्धि का वास होता है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए उचित निद्रा, श्रम, व्यायाम और संतुलित आहार अति आवश्यक है। हमें जीवन में यह समझ लेना चाहिए कि केवल भौतिक विकास से ही हमारा कार्य चलने वाला नहीं है। व्यक्ति के भौतिक विकास के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी जरूरी है। इसके लिए मनुष्य का आहार, विहार और विचार शुद्ध होना चाहिए। जीवन में सुख-शान्ति व समृद्धि प्राप्त करने के लिए अन्न-जल की उपलब्धता के साथ-साथ उनकी शुद्धि महत्वपूर्ण है। अनाज उत्पादन में भारत स्वनिर्भर बना है। हमारे अनाज के भंडार भरपूर हैं लेकिन एक स्वस्थ जीवन के लिए सुरक्षित भोजन तथा पौष्टिक आहार को उपलब्ध कराने में आज संगठित प्रयास की जरूरत है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए ब्रह्माकुमारीज के कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग द्वारा शाश्वत यौगिक खेती परियोजना प्रारम्भ की गई है।

शाश्वत यौगिक खेती

हमारे श्रेष्ठ कर्म ही हमारे श्रेष्ठ भविष्य का निर्माण करते हैं। समय की मांग को लेकर खेती में बेहतरीन उत्पादन बेहतर पोषण, बेहतर वातावरण और बेहतर जीवन के लिए ब्रह्माकुमारीज संस्थान से जुड़े हजारों किसानों ने शाश्वत यौगिक खेती पद्धति को अपनाया है। इस कृषि पद्धति में परमपिता परमात्मा से मन का भावनात्मक सम्बन्ध जोड़कर समस्त कृषि कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। इस कृषि पद्धति में समस्त जीवराशियों की सुरक्षा तथा प्रकृति के पाँचों तत्वों के प्रति आस्था का भाव समाहित है। इस कार्य में गाय की भी अहम भूमिका है। प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करते हुए कृषक परमात्मा की याद में अपने विचारों की उच्चता व शुद्धता पर विशेष ध्यान रखते हैं। जिससे परमात्म याद के वायब्रेशन सतोप्रधान वातावरण का निर्माण करते हैं। यौगिक कृषि में पोषक तत्वों से भरपूर अन्न का उत्पादन होता है। इस आध्यात्मिक कृषि द्वारा सात्विक अन्न का उत्पादन ही संसार परिवर्तन का आधार बनता है। यही नारा लेकर स्वर्णिम संसार की स्थापना में कृषक अपना योगदान दे रहे हैं।

जल संकट और बर्बादी की झलक

इस पृथ्वी पर 75% पानी है किन्तु उसमें से मात्र 1% पानी ही उपयोग लायक है। इस 1% पानी का 76% पानी खेती में उपयोग किया जाता है और इस खेती में उपयोग होने वाले पानी में से 50% से अधिक पानी बर्बाद होता है। भारत की आबादी दुनिया की आबादी का 18% है, जबकि पानी मात्र 4% है। हमारे देश में ज़मीन के नीचे के उपलब्ध पानी का 89% खेती में उपयोग होता है। वर्ष के 2017-2007, 61% जल स्तर में बीच देश में भूतक की कमी आयी है। 

स्पष्ट है कि हम लगातार भूजल निकाल रहे हैं, लेकिन जमीन में पानी कैसे संचित हो, इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिसके कारण देश का 40% हिस्सा सूखे की चपेट में आ चुका है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2030 तक हमारी पानी की मांग दोगुनी हो जाएगी। ऐसे में हमें पानी के उपलब्ध सीमित साधनों को जीवन रक्षा के लिए बचाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पानी की बर्बादी को हमें हर हाल में रोकना होगा अन्यथा फसल तो छोड़िये, पीने के लिए पानी मिलना भी मुश्किल होगा। नदी, झरने, झील, कुंए से यात्रा करते हुए पीने का पानी बोतल में बंद हो चुका है, अब इसे हम सिरिंज में नहीं ले जा सकते।

खेत में पानी बचाने के सरल उपाय

  • शाश्वत यौगिक कृषि को अपनाना
  • आच्छादन (Mulching)
  • समतलीकरण
  • क्षेत्रीय आधार पर फसलों का चयन
  • हल्की सिंचाई के महत्व को समझना
  • कृषि वानिकी को बढ़ावा
  • सूखा रोधी फसलों का चुनाव
  • सहफसली खेती
  • मोटे अनाज की फसलों को बढ़ावा

शहरों में पानी बचाने के कुछ सरल उपाय 

  • नल को खोल कर मंजन ब्रश ना करें, मग में पानी लेकर ब्रश करें
  • बाल्टी में पानी लेकर स्नान करें गाड़ियों को गीले कपड़े से पोछे, धुलाई करने में पानी बर्बाद ना करें
  • RO का वेस्ट वाटर पौधों की सिंचाई में काम लाएं
  • पानी की टंकी में सेंसर लगाएं
  • नल में सेंसर लगाएं
  • गृह वाटिका में सिर्फ नमी बनाये रखें
  •  सार्वजनिक स्थानों पर खुले नल को बंद कर दें
  • पानी को प्रदूषित होने से बचाएं

 

स्लोगन (Food Day Slogans)

मिलेट्स का महत्व: स्वास्थ्य के लिए अनमोल खाद्य

मिलेट्स, विश्व के खाद्य प्रणालियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये छोटे अनाज क्षेत्रीय फसलें होती हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाती हैं और स्वास्थ्य के लिए अनमोल होती हैं। हम जानेंगे कि मिलेट्स का क्या महत्व है और इन्हें अपने आहार में शामिल करने के क्या फायदे हो सकते हैं।

  1. पौष्टिकता का खजाना: मिलेट्स में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन्स और मिनरल्स की अद्भुत राशि होती है। ये आपके शरीर को सबसे आवश्यक पोषण प्रदान करते हैं और स्वस्थ जीवनशैली का समर्थन करते हैं।
  2. मधुमेह के खिलाफ लाभकारी: मिलेट्स खासकर डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होते हैं, क्योंकि इनमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और रक्त शर्करा को संतुलित रखने में मदद करते हैं। 
  3. वज़न नियंत्रण: मिलेट्स में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जिससे आपका वज़न नियंत्रित रहता है और आपको भूख की भावना कम होती हैं।
  4. दिल के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद: मिलेट्स में अच्छे गुणों वाले फैट्स होते हैं, जो दिल के स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करते हैं।
  5. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का समर्थन: इनमें मौजूद मिनरल्स और विटामिन्स शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
  6. खेती के लिए सही: मिलेट्स की खेती अन्य फसलों के साथ संबद्ध की जा सकती है, जिससे किसानों को अधिक आर्थिक लाभ होता है और भूमि का सुरक्षित रूप से प्रयोग किया जा सकता है।

इसलिए, हमें इसे अपने आहार में शामिल करना चाहिए। मिलेट्स न केवल स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं, बल्कि ये हमारी कृषि और आर्थिक विकास के लिए भी लाभदायक है।

आध्यात्मिक जीवन में अन्न का महत्व

भारतीय संस्कृति में आहार शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। आध्यात्म की दृष्टि से भी भोजन का अत्यधिक महत्व है। अन्न जीवन की मूलभूत आवश्यकता है तथा शरीर की रक्षा, पोषण, संवर्धन, सर्वोच्च आध्यात्मिक लक्ष्यों की पूर्ति का आधार है। अन्न पवित्र औषधि के रूप में हमारी सुरक्षा करता है। भोजन की प्रकृति का मन पर प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि आहार शुद्ध होगा तो मन भी शुद्ध होगा तथा जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन हमारा अन्न समग्र स्वास्थ्य, मनोदशा और ऊर्जा स्तर को प्रभावित करता है। हमारे भोजन में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल होने चाहिए। भोजन ऐसा हो जिससे मन पवित्र रहे। आहार संयम हो जाएगा तो वाणी का संयम भी हो जाएगा। जब वाणी का संयम हो जाएगा तब जागरूकता भी उत्पन्न होगी। जब जागरूकता आएगी तब दूसरों के प्रति दुर्भावना भी समाप्त हो जाएगी। धीरे-धीरे दुःखों से भी मुक्ति मिल जाएगी।

सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन

भगवद् गीता में कहा गया है कि अत्यधिक भोजन करने वाला, उपवास शील, अधिक जागने वाला, अधिक सोने वाला, अधिक कार्य करने वाला अथवा आलसी इनमें से कोई भी योगी नहीं हो सकता।

  1. सात्विक भोजन उसे कहते हैं जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता हो। जो रसयुक्त, चिकनाई से युक्त, मन को प्रसन्नता देने वाला, हृदय को भाने वाला, आयु को बढ़ाने वाला, स्वास्थ्य देने वाला तथा प्रेम बढ़ाने वाला हो। मन को खुशी तथा स्थिरता प्रदान करने वाला, सात्विक भोजन खुशहाल तथा सुखमय समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है।
  2. राजसिक भोजन जीवन में उत्तेजना लाता है, गति पैदा करता है। जो कड़वा, खट्टा, लवणयुक्त, अति गरम, उत्तेजक आहार है ऐसा भोजन क्रोध, दुःख, शोक, चिंता तथा रोग उत्पन्न करने वाला होता है। राजसिक भोजन खाने वाला व्यक्ति उम्रभर धन, पद-प्रतिष्ठा, मान-शान के पीछे दौड़ता रहता है उन्हें प्रेम करने की फुर्सत नहीं होती।
  3. तामसिक भोजन अर्थात् जो वासी, जूठा, ठंडा, अधपका, गंधयुक्त हो। ऐसा भोजन नींद, आलस्य, मानसिक बोझ, मनोविकार तथा अपराधिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। तामसिक भोजन करने वालों के जीवन में प्रेम का सर्वदा अभाव रहता है।

भोजन करते वक्त ध्यान रखने वाली बातें:

  • भोजन को विधिपूर्वक परमात्मा को भोग लगाकर स्वीकार करें। 
  • भोजन करने बैठें तो यह सोचें कि यह मेरे लिए भगवान का प्रसाद है।
  • परमात्मा ने जो कृपापूर्वक आज मुझे अन्न दिया है मैं उसका धन्यवाद करूं।
  • भोजन करने के दौरान मन पर किसी प्रकार का बोझ न लादें तथा मन प्रसन्न रहे। 
  • भोजन करते वक्त जितना हो सके मौन धारण करें।
  • दो घड़ी के स्वाद के पीछे अपना संयम ना खोये।
  • हमें आहार औषधि के रूप में स्वीकार करना है। उतना ही खाना चाहिए जो शारीरिक पोषण के लिए पर्याप्त हो।
  • भोजन स्निग्ध होना चाहिए। गर्म भोजन स्वादिष्ट होता है, पाचनशक्ति को तेज करता है और शीघ्र पच जाता है।
  • चलते हुए, बोलते हुए अथवा हँसते हुए भोजन नहीं करना चाहिए।
  • अत्यंत गर्म भोजन वल का ह्रास करता है। 
  • स्वादिष्ट अन्न मन को प्रसन्न करता है, बल व उत्साह बढ़ाता है तथा आयु की वृद्धि करता है।
  • बिना ‘भूख के खाना रोगों को आमंत्रित करना है।
  • अपनी प्रकृति के अनुसार उचित मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा फाइबरयुक्त भोजन ही करना चाहिए। कोई कितना भी आग्रह करें, बिना जरूरत के भोजन स्वीकार न करें।

शाकाहार का महत्व

शाकाहार वास्तव में योगाभ्यास का पूरक है। शाकाहार सबसे ज्यादा करुणामयी आहार है। जो लोग योगाभ्यास में जल्द से जल्द तरक्की करना चाहते हैं, उनके लिए शाकाहार अपनाना अति आवश्यक है। योगाभ्यास में एकाग्र होने के लिए, हमारा शांत और हलचल रहित होना जरूरी है। मांस न खाने से हमारी चेतनता में बढ़ोत्तरी होती है। हम सब जानते हैं कि हार्मोन्स का हमारे शरीर पर कितना प्रभाव होता है। जरा सोचिए कि जब वो पशु, पक्षी या मछलियों भोजन के लिए मारे या काटे जा रहे होते हैं, तो उनके शरीर में कितने सारे तनाव-संबंधी हार्मोन्स हैं और उनका मांस खाने से वो सभी नुकसानदायी हार्मोन्स हमारे शरीर में समा जाते हैं। जो भोजन हम खाते हैं, वो न केवल हमारे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर असर डालता है बल्कि हमारी आत्मिक चेतनता को भी प्रभावित करता है।

भोजन बनाते समय परमात्म याद का महत्व

अगर भोजन बनाते समय मन परमात्म याद में एकाग्र है तो यह मन की अत्यधिक शक्तिशाली अवस्था है। यह परमात्म याद के वायब्रेशन भोजन में भी समाते हैं और भोजन एक औषधि का रूप लेता है। भोजन पकाते समय मन शांत हो तथा रुचि से भोजन बनाएं। प्रभु प्यार में समाकर भोजन में शान्ति और ईश्वर की शक्ति का समावेश किया जाता है। जिससे भोजन भी चार्ज हो जाता है, परमात्मा से सम्बन्ध जुड़ता है, परमात्मा की आशीर्वाद तथा शक्ति भी प्राप्त होती है।

भोग का महत्व

जब हम कोई खाद्य पदार्थ भगवान को श्रद्धापूर्वक अर्पण करते हैं उसे भोग कहा जाता है। परमात्मा को भोग लगाने से वह प्रभु प्रसाद बन जाता है और प्रसाद उसे कहते हैं जहां प्रभु का साक्षात् दर्शन हो। स्वयं परमात्मा जिससे प्रसन्न हो जाता है। जिसे स्वीकार करने से जीवन में उच्च संस्कार प्रकट होते हैं और जीवन में सद्गुण बढ़ते जाते हैं। 

परमात्मा को भोग स्वीकार कराने से अन्न के ऊपर से किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव नष्ट हो जाता है। यह भोग तन और मन में शक्ति का संचार करता है तथा परिवार में समृद्धि लाता है। परमात्मा को भोग स्वीकार कराने से सदैव भंडारा भरपूर रहता है। परमात्मा को भोग लगाये बिना भोजन ग्रहण करना अर्थात् चोरी करना। यह भोजन जन्म जन्म की अतृप्त आत्माओं को तृप्ति प्रदान करता है। यह भोजन औषधि का काम करता है, जिसे ग्रहण करते-करते व्यक्ति अपने आप देवत्व को प्राप्त करता है।

खाध दिवस पर विशेष कविता 

Food day poem

नज़दीकी राजयोग मेडिटेशन सेंटर

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