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September 10, 2023
कल के संदेश में हमने जाना कि, कैसे हम गलत धारणाओं में जीते हैं कि; हमारे जीवन में खुशी हमारी उपलब्धियों पर निर्भर करती है? आइए, ऐसी ही खुशी से संबंधित दो और मान्यताओं को चेक करें और सच्चाई को जानें।
मान्यता 2: मैं खुशियाँ खरीद सकता हूँ।
मान लीजिए हमारा मानना है कि, अपनी ड्रीम कार खरीदने से मुझे खुशी मिलती है। मैं सबसे महंगी कार खरीदकर उसका मालिक बन सकता हूं। लेकिन हमने अपने लिए सिर्फ एक फिजिकल कम्फर्ट खरीदा है। लेकिन अगर इसी ड्रीम कार में, एक लंबी यात्रा के दौरान, मुझे एक फ़ोन कॉल के ज़रिए कोई अप्रिय समाचार मिलता है जो मेरी ख़ुशी को ख़त्म कर देता है, तो अगर मेरी कार ही ख़ुशी दे रही होती, तो उस कॉल के बावजूद भी मेरी ख़ुशी बनी रहती। कॉल के बाद भी, मेरी महंगी कार फिजिकल कम्फर्ट देती रहती है। लेकिन यहां ये जानना जरूरी है कि, खुशी एक इमोशनल कम्फर्ट है नाकी कोई फिजिकल कम्फर्ट जो किसी फोन कॉल के बाद दर्द में वा हर्ट में चला जाए। अब यह समझते हैं कि, कार खरीदने पर हमें खुशी क्यों महसूस होती है? क्योंकि जब हम यह थॉट क्रिएट करते हैं कि – मैंने अपनी ड्रीम कार खरीदी, तो यह खुशी की भावना पैदा करती है। परंतु इसके लिए, एक पॉजिटिव थॉट क्रिएट करने के लिए; हमने एक वस्तु (कार) को स्टीमुलस के रूप में यूज़ किया।
सच्चाई: हमें चीज़ों में खुशी को तलाशना नहीं है। हर भौतिक चीज़ शारीरिक आराम देने के लिए बनाई गई है जबकि खुशी एक भावनात्मक आराम है।
मान्यता 3: परिवार और दोस्त मुझे ख़ुशी देते हैं।
आजकल हमारी एक्सेप्टेंस (स्वीकारने की शक्ति) और एक्सपेक्टेशन (चाहनाओं) के बीच झूलते हुए हमारे रिश्ते तनावपूर्ण होते जा रहे हैं। हम हमेशा इस बात पर फोकस करते हैं कि, हमें रिश्तों से क्या प्राप्तियां हो रही हैं बजाय इसके कि हम रिश्तों में क्या दे रहे हैं। एक दूसरे से हमारी उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं। हम लोगों को तभी स्वीकार करते हैं जब वे हमारे अनुसार बोलते हैं या फिर व्यवहार करते हैं। लेकिन क्या हम जानते हैं कि, यदि मैं अपनी ख़ुशी का आधार, दूसरों के द्वारा मेरी बात मानने के ऊपर है, तो वो कभी भी स्थाई नहीं रह सकती। जैसे ही कोई व्यक्ति एक बार मेरी बात सुनता है, तो मैं हर बार के लिए उससे अपनी एक्सपेक्टेशन क्रिएट करता हूँ। तो फिर यह ख़ुशी मुझसे अलग हो सकती है, और ये वापस तभी महसूस होती है जब वह व्यक्ति फिर से हमारी बात मानने लगते हैं। वरना मैं परेशान हो जाता हूं। सभी लोगों के पास सही और ग़लत की अपनी अपनी परिभाषाएँ हैं, इसलिए लोगों से एक्सपेक्टेशन रखने से हमारे रिश्ते हमेशा ख़राब ही होंगे और हमारी ख़ुशी को कम करेंगे।
सच्चाई: कोई भी हमें खुश या दुखी नहीं कर सकता। ख़ुशी हमारी आंतरिक भावना है, और यह हमारे रिश्तों की क्वॉलिटी की परवाह किए बिना यह हमारी इंटरनल क्रिएशन है।
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