March 9, 2025

क्या हमें भावुक होना चाहिए या नहीं? (भाग 3)

हमारे चारों ओर का संसार अनगिनत लोगों, परिस्थितियों, वस्तुओं और विभिन्न समस्याओं से भरा हुआ है, जिनका हमें समय-समय पर सामना करना पड़ता है। कई लोग यह तर्क देंगे कि भावुक होना और कभी खुशी में, या कभी दुःख में रोना स्वाभाविक है। साथ ही, अपनों के लिए किसी नकारात्मक या सकारात्मक परिस्थिति में आँसू बहाना हमेशा से ही होता आया है। लेकिन यह पूरी तरह सत्य नहीं है। आत्मा जन्म-पुनर्जन्म के चक्र में आते-आते कमजोर हो गई है। जब आत्मा इस देह की दुनिया में आकर अपने अभिनय की शुरुआत करती है, तो वह शक्तिशाली होती है और उसका सांसारिक जुड़ाव कम होता है। नतीजतन, वह कम भावुक लेकिन अधिक खुशहाल होती है। यह सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन जैसे-जैसे आत्मा कमजोर होती गई, वह अधिक भावुक और कम खुशहाल होती गई।  

 

खुद को इस भावनात्मक निर्भरता से मुक्त करने की चाभी, सबसे पहले इस सत्य को स्वीकार करने में है कि अत्यधिक भावुक होना, वास्तव में कोई स्वतंत्रता नहीं है। यह बात हम पिछले दो दिनों के संदेशों में समझा चुके हैं। अब अगला कदम है, अपनी चेतना को बदलकर स्वतंत्रता प्राप्त करना। इसके लिए सकारात्मक संकल्प क्रिएट करें और पूरे दिन अपने मन में दोहराते हुए उन्हें अपने कर्मों में लाएँ। उदाहरण के लिए: मैं एक प्रकाशमय सत्ता हूँ, एक आत्मिक ऊर्जा, जो शक्तियों से भरपूर है। मैं अपनी आँखों रूपी खिड़कियों द्वारा इस संसार को देखती हूँ। मैं प्रत्येक दृश्य, प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक वस्तु को आत्मिक शक्ति और आनंद प्रदान करती हूँ। मुझे दूसरों की ऊर्जा पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। मैं एक आत्मा हूँ, जो संपूर्णता से भरी हुई है। एक और उदाहरण: मैं असीम प्रेम से भरी एक आत्मा हूँ। मैं सभी से और हर चीज़ से दिल से प्रेम करती हूँ, लेकिन मैं उनपर आसक्त नहीं हूँ। इसलिए, मैं प्रेम में कभी आहत नहीं होती। मैं जीवन की हर नकारात्मक परिस्थिति में सकारात्मकता प्रदान करने के लिए, शक्ति का एक स्तंभ हूँ। इसलिए, मैं दुःख और अस्वीकृति में भी कभी आहत नहीं होती हूं।

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